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इंदौर के इन मंदिरों में भोलेनाथ के दर्शन के लिए जाएं, सावन में लगती हैं यहां भक्तों की भीड़

इंदौर में कई चमत्कारी मंदिर है, जिसका इतिहास हजारों साल पुराना है। देश भर से लोग सावन के महीने में यहां दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं।   
Editorial
Updated:- 2024-07-18, 16:25 IST

भारत में पूर्व से लेकर दक्षिण तक भगवान शिव के कई ऐसे मंदिर हैं, जिनका इतिहास पौराणिक काल से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर इतने ज्यादा फेमस हैं कि बिना किसी त्योहार के यहां हर दिन भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। इनमें से कुछ मंदिरों को लोग चमत्कारी कहकर भी पूजते हैं।

सावन में इन मंदिरों का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। क्योंकि लोग सावन में हर सोमवार मंदिरों में जाकर शिवलिंग को जलाभिषेक करते हैं। इंदौर में भी कुछ ऐसे मंदिर है, जहां लोगों की भीड़ हर दिन दर्शन के लिए आते हैं। आज के इस आर्टिकल में हम आपको इन मंदिरों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। 

शिव मंदिर

shiv mandir

माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी की शुरुआत में किया गया था। इसके बाद अठारहवीं शताब्दी में अहिल्या बाई होल्कर द्वारा फिर से इसे अपडेट किया गया। यहां महादेव को त्रिदेव के रूप में पूजा जाता है। क्योंकि भोलेनाथ के साथ-साथ माता पार्वती, गणेश जी और भगवान शिव के अवतार हनुमान जी और देवी दुर्गा के भी दर्शन होते हैं। 

मंदिर में स्थापित शिवलिंग को दुर्गेश्वर महादेव के नाम से पूजा जाता है। यहां तीन शिवलिंग स्थापित हैं। ये तीनों शिवलिंग त्रिदेव स्वरूप हैं। यह भगवान शिव के सबसे फेमस मंदिर में से एक है।

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इंद्रेश्वर महादेव मंदिर 

बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि इंदौर शहर भोलेनाथ का एक प्राचीन मंदिर है। माना जाता है कि शहर का नाम भी इसी मंदिर के नाम से रखा गया है। पहले शहर का नाम इंदूर पड़ा, फिर इसे बदलकर इंदौर कर दिया गया। यहां लोग भोलेनाथ पर इतना ज्यादा भरोसा करते हैं कि जब शहर में बारिश नहीं होती हैं, तो वह भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। मान्यताओं के अनुसार इंदेश्वर मंदिर में देवराज इंद्र से लेकर देवी अहिल्या बाई होलकर तक भगवान शिव की आराधना करने आया करती थी। 

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भूतेश्वर महादेव मंदिर

shiv temples

इस मंदिर का इतिहास मंदिर 300 साल पुराना बताया जाता है। माना जाता है कि यहां नर्मदा से निकले स्वयंभू शिवलिंग की स्थापना की गई हैं। यहां मंदिर के पास ही अंतिम संस्कार भी होता है। मुक्तिधाम की दीवार में एक खिड़की बनाई गई है, ताकि महादेव के सामने अंतिम संस्कार किया जा सके। माना जाता है कि यहां विराजे शिवलिंग को माता अहिल्या ने तप करके मां नर्मदा से हासिल किया था। 

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