रसगुल्ला एक ऐसी मिठाई है जिसके पीछे आप और हम अपने भाई-बहनों से ही नहीं लड़े, बल्कि दो राज्य भी आपस में लड़ पड़े। रसगुल्ले की बात ही कुछ ऐसी है। चाशनी में डूबे स्पंजी व्हाइट बॉल्स का स्वाद इतना अच्छा लगता है कि कोई भी उन्हें ज्यादा खाए रह ही नहीं सकता। वैसे तो रसगुल्ले आपको सभी जगह मिलेंगे लेकिन वो बड़े- बड़े स्पंजी रसगुल्लों का मजा ही अलग है।
कोलकाता और ओडिशा दोनों इस बात पर काफी सालों से लड़ते आए हैं कि रसगुल्ला कहां का है? यह लड़ाई इतनी लंबी चली कि कोर्ट तक जा पहुंची और फिर कोर्ट ने जियोग्राफिक इंडिकेशन के जरिए इसे सुलझाने का काम किया।
यह कैसे बना और कैसे अस्तित्व में आया इसके पीछे की बड़ी दिलचस्प कहानी है। इतना ही नहीं, यह डेजर्ट ब्रिटिश कुक के छक्के भी छुड़ा चुका है। अगर आप रसगुल्ले के इतिहास के बारे में जानने के लिए दिलचस्प हैं तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें और जानें उसके बारे में रोचक तथ्य।
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ओडिशा के लोग दावा करते हैं कि रसगुल्ले का इतिहास पुरी से है, जहां 700 साल पुरानी यह मिठाई एक रस्म का महत्वपूर्ण हिस्सा थी। ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ ने रथ यात्रा के दौरान यह मिठाई माता लक्ष्मी को देकर मनाया था, जब वह उनसे रूठ गई थीं। 11वीं सदी में इसे 'खीरा मोहन' नाम दिया गया, चूंकि यह एकदम सफेद हुआ करता था।
कुछ लोक कथाओं के मुताबिक, मंदिर के एक पुजारी ने देखा कि उनके गांव में लोग खराब होने पर फेंक दिया करते थे, तो उन्होंने लोगों को फटे हुए दूध से रसगुल्ले बनाने की कला सिखाई।
दिलचस्प बात यह है कि पहला (भुवनेश्वर के बाहरी इलाके में एक गांव) के ग्रामीणों के लिए यह एक वरदान के रूप में आया। इस छोटे-से गांव में मनुष्यों की तुलना में ज्यादा गाय ही थीं। ग्रामीणों ने छेना बनाने का तरीका सीख लिया और जल्द ही रसगुल्ले भी बनने लगे। आपको बता दें कि यह कोलकाता के फेमस सफेद रसगुल्ले की तुलना में थोड़े येलो-ब्राउन हुआ करते थे।
इसी तरह रसगुल्ले का दूसरा वेरिएंट खीरा मोहन का वेरिएशन ज्यादा बड़ा, स्पंजी और क्रीमी थी, जिसे बनाने का क्रेडिट ओडिशा के लोकल कन्फेक्शनर बिकलानंद कार को मिला। इस तरह ओडिशा के लोगों ने यह दावा किया कि रसगुल्ला उन्हीं की देन है और उस पर हक उन्हीं का है।
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पश्चिम बंगाल जो इस मिठाई के लिए बहुत लोकप्रिय है, भी यही दावा करता है कि रसगुल्ला उनका है।उनका दावा रहा कि इसे 1868 में कलकत्ता के एक सज्जन नबीन चंद्र दास द्वारा बनाया गया था और आज भी उनके परिवार की अगली पीढ़ियां उनकी लेगेसी को बढ़ा रही हैं।
दद बेटर इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, नबीन चंद्र दास के परपोते, धीमान दास, ने बताया था कि नबीन चंद्र दास ने पहली बार 1864 में जोरासंको में एक मिठाई की दुकान खोली थी। लेकिन कुछ टाइम बाद ही वो दुकान बंद करनी पड़ी लेकिन इसके बाद उन्होंने बागबाजार में एक और प्रतिष्ठान खोला। उन्होंने खुद ही मिठाइयों का आविष्कार करने की सोची। इसी दौरान उन्होंने छेने की बॉल्स को चाशनी में उबालने की कोशिश की, लेकिन वे टूट गए। बड़ी कोशिशों के बाद, उन्होंने रीठा का उपयोग करके, इसका समाधान निकाला। इससे छेना एकदम गुदगुदा और स्पंजी हो गया। इस तरह बंगाली रसगुल्ले का आविष्कार हुआ।
भारत में जब ब्रिटिशर्स का राज था, तो उस समय का एक किस्सा भी बड़ा दिलचस्प है। एक फेमस ब्रिटिश कुक विलियम हेरोल्ड को भारत भेजा गया, ताकि भारत के साथ युद्ध में वह थोड़ी मदद कर सकें। उनकी डिशेज इतनी स्वादिष्ट होती थीं कि उन्हें एक अफसर ने अपना पर्सनल कुक के तौर पर प्रमोट कर दिया। एक दिन अफसर ने उन्हें वैसा रसगुल्ला (घर में बनाएं स्पंजी रसगुल्ला) बनाने के लिए कहा, जो कभी उन्होंने खाया था।
चूंकि उस दौरान रेसिपी नहीं लिखी जाती थी, तो विलियम को गांव में हर किसी के घर जाकर रेसिपी पता करनी पड़ी। उन्होंने पूरा गांव घूम लिया लेकिन रसगुल्ले की सही रेसिपी कोई नहीं बता पाया। कई मुद्दत के बाद भी उन्हें रसगुल्ले की सही रेसिपी नहीं पता चली और थक हार के वह भारत छोड़कर चले गए। भारत छोड़ते वक्त वो अपने साथ 10 डिब्बे रसगुल्ले की लेकर गए थे।
बंगाल और ओडिशा के बीच कानूनी लड़ाई आखिरकार साल 2017 में समाप्त हो गई थी, जब 14 नवंबर को पश्चिम बंगाल को रसगुल्ला पर GI टैग प्रदान किया गया।
फैसला भले ही किसी पक्ष का आया हो, लेकिन रसगुल्ले से प्यार तो हर राज्य के लोगों को होगा। हमें उम्मीद है यह दिलचस्प कहानी आपको भी पसंद आई होगी। अगर यह लेख पसंद आया तो इसे लाइक और शेयर करना न भूलें। अगर आप ऐसे ही लजीज पकवानों के मजेदार किस्से जानना चाहते हैं, तो पढ़ते रहें हरजिंदगी।
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