गुरु नानक जयंती पर पंजाब के इन प्रसिद्ध गुरुद्वारों के करें दर्शन

आने वाले 8 नवंबर को गुरु नानक जयंती मनाई जाएगी। इस अवसर पर चलिए पंजाब के प्रसिद्ध गुरुद्वारों के बारे में जानें, जहां आप दर्शन कर सकते हैं। 

 
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15वीं शताब्दी में भारत में एक ऐसे धर्म का उदय हुआ जो समानता, बहादुरी और उदारता की बात करता था। विनम्र संत गुरु नानक द्वारा स्थापित सिख धर्म, भारत के इतिहास में सबसे शक्तिशाली धर्मों में से एक साबित हुआ। आज सिख धर्म भारत में चौथा सबसे बड़ा धर्म है। इसी के साथ गुरुद्वारों को भी स्थापित किया गया। गुरुद्वारा कहे जाने वाले उनके पूजा स्थल पवित्र मंदिर हैं जो न केवल हमें आध्यात्मिक आराम प्रदान करते हैं बल्कि हमें यह भी बताते हैं कि सिख धर्म कैसे कायम हुआ?

गुरु नानक, जिन्हें बाबा नानक भी कहा जाता है, सिख धर्म के संस्थापक थे और दस सिख गुरुओं में से सबसे पहले गुरु थे। उनका जन्म दुनिया भर में कटक पूरनमाशी, यानी अक्टूबर-नवंबर में गुरु नानक गुरुपर्व के रूप में मनाया जाता है। आने वाले 8 नवंबर को गुरु नानक गुरु पर्व मनाया जाएगा।

अगर गुरु नानक जयंती पर आप कहीं जाने की सोच रहे हैं तो पंजाब हो आइए। वहां स्थित 5 प्रसिद्ध गुरुद्वारों के दर्शन आपको जरूर करने चाहिए। पंजाब में गुरुद्वारे का नाम सुनते ही सभी अमृतसर के सबसे चर्चित गुरुद्वारे स्वर्ण मंदिर के बारे में सोचते हैं, लेकिन पंजाब में इसके अलावा भी कई खूबसूरत और बड़े गुरुद्वारे हैं। आज इस आर्टिकल के जरिए चलिए आपको पंजाब के ऐसे ही प्रसिद्ध और बड़े गुरुद्वारे के बारे में बताएं।

1. श्री हरमंदिर साहिब स्वर्ण मंदिर, अमृतसर

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अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। यह सिखों के लिए सबसे ज्यादा पूजनीय स्थानों में से एक है और सबसे लोकप्रिय गुरुद्वारा है। गोल्ड से बने इस गुरुद्वारे में पहले गोल्ड नहीं था। श्री हरमंदिर साहिब जिसे दरबार साहिब के नाम से भी जाना जाता है, मूल रूप से पांचवें सिख गुरु द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया था।

अमृत का कुंड, गुरु राम दास नामक चौथे गुरु द्वारा स्थापित किया गया था और पांचवें गुरु ने पवित्र तालाब के बीच में एक मंदिर बनाने का फैसला किया। यह गुरुद्वारा सिखों के लिए बनाया गया पहला तीर्थ स्थल था ताकि वे एक साथ पूजा कर सकें।

इसकी नींव एक मुस्लिम संत ने रखी थी और कई प्रमुख सिख नेताओं की देखरेख में गुरुद्वारा पूरा किया गया था। समय के साथ, महाराजा रणजीत सिंह ने इसे सोने से बनाने का फैसला किया जिसके बाद इसे स्वर्ण मंदिर नाम मिला। आप भी गुरु नानक जयंती पर स्वर्ण मंदिर के दर्शन कर सकते हैं।

2. तख्त श्री केसगढ़ साहिब जी, आनंदपुर साहिब

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तख्त श्री केसगढ़ साहिब जी एक प्रसिद्ध गुरुद्वारा है जो आनंदपुर साहिब के ठीक बीच में स्थित है और देश के सबसे प्रतिष्ठित सिख संस्थानों में से एक है। इसकी नींव 1689 में रखी गई थी और यहीं पर खालसा पंथ का जन्म हुआ था। गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा खांडे दी पहुल की दीक्षा यहां 1699 में बैसाखी के पवित्र दिन पर हुई थी। यह पवित्र मंदिर स्थानीय लोगों के बीच बहुत महत्व रखता है।

तख्त श्री केसगढ़ साहिब जी का एक समृद्ध और गौरवशाली इतिहास है। ऐसा माना जाता है कि आक्रमणकारी सेनाएं इस स्थान तक कभी नहीं पहुंच सकीं। यह सत्ता की पांच सर्वोच्च सीटों (तख्तों) में से एक है। यहां गुरु गोबिंद सिंह जी की खंडा- दोधारी तलवार जिसका इस्तेमाल उन्होंने अमृत तैयार करने के लिए किया था, उनका निजी खंजर- कटारा, उनकी अपनी बंदूक जो उन्हें एक अनुयायी द्वारा उपहार में दी गई थी, आदि अवशेष रखे हुए हैं।

3. गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब, पटियाला

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पंजाब में सबसे लोकप्रिय गुरुद्वारों में से एक, गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब, अपने चमत्कारी पानी के लिए काफी प्रसिद्ध है। स्थानीय लोगों का ऐसा विश्वास है कि यदि कोई बीमारी से पीड़ित व्यक्ति पूरी भक्ति और ध्यान के साथ तालाब में डुबकी लगाता है तो वह पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

आगंतुक यहां प्रार्थना करने के अलावा और भी कई गतिविधियों में भाग ले सकते हैं जैसे लोगों को खाना खिलाने में मदद करना या गुरुद्वारे को साफ रखने में। गुरु नानक जयंती में ही नहीं, यहां वैसे भी आकर पूरी श्रद्धा से आप पूजा कर सकते हैं।

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4. गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब,सरहिंद

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फतेहगढ़ साहिब सिख धर्म के इतिहास में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। ऐसा माना जाता है कि सिख धर्म के उदय से मुगल खुश नहीं थे और वह जोर जबरदस्ती से लोगों को धर्म बदलने के लिए मजबूर कर रहे थे। इसके चलते एक लंबा युद्ध चला। ऐसे ही एक युद्ध के दौरान गुरु गोबिंद सिंह का परिवार अलग-थलग हो गया। उनकी मां माता गुजरी अपने बच्चों फतेह सिंह और जोरावर सिंह से अलग हो गई।

इसी बीच मुगलों ने बच्चों को पकड़ लिया और उन पर धर्म बदलने के लिए जोर डाला। बच्चों ने जब ऐसा करने से इनकार किया तो उन्हें मार डाला। तब से बच्चों की शहादत को याद करते हुए और उन्हें सम्मान देने के लिए लोग इस गुरुद्वारे में आते हैं।

5. गुरुद्वारा दरबार साहिब तरनतारन, माझा

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यह उन गुरुद्वारों में से एक है जो विशाल और सुंदर होने के बावजूद यहां भीड़ नहीं होती। गुरुद्वारा दरबार साहिब तरनतारन को तरनतारन के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना पांचवें गुरु, गुरु श्री अर्जन देव ने की थी। इसमें दुनिया का सबसे बड़ा पवित्र टैंक है। तरनतारन सिख विद्रोहों का केंद्र हुआ करता था (गुरूद्वारे में जाने से पहले क्यों ढकते हैं सिर)।

दरअसल, जब पंजाब विभाजन के दौरान एक अलग राष्ट्र के रूप में घोषित होने के लिए काम कर रहा था, तो यह सुझाव दिया गया था कि तरनतारन राजधानी को राजधानी बनाया जाए। इसमें मौजूद सबसे बड़ा सरोवर देखने के लिए आपको भी इस गुरुद्वारे के दर्शन जरूर करने चाहिए।

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आपको इन गुरुद्वारों के बारे में जानकर कैसा लगा? अगर आप इनमें से किसी भी गुरुद्वारे में गए हैं या फिर किसी अन्य प्रसिद्ध गुरुद्वारे में जाने की योजना बना रहे हैं तो उसके बारे में हमें कमेंट कर बताएं।

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Image Credit: discoversikhism & wikimedia

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