बिहार के कई प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है- गया का विष्णुपद मंदिर। यह मंदिर फल्गु नदी के तट पर स्थित है। ऐतिहासिक अभिलेखों के मुताबिक, विष्णुपद मंदिर का अस्तित्व सदियों पुराना है। बता दें, इस मंदिर के परिसर में भगवान विष्णु की मूर्ति के बजाय उनके पैर के छाप की पूजा होती है। यह मंदिर सनातन धर्मियों के लिए बेहद पूजनीय है। सालों भर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। विश्व भर से लोग यहां विष्णु भगवान के चरण स्पर्श करने आते हैं। इसी के साथ चलिए अब हम इस मंदिर के इतिहास के बारे में विस्तार से बताते हैं।
कैसे आया भगवान विष्णु के पैर का निशान?(Gaya Vishnupad Temple History)
पौराणिक कथा के अनुसार, गयासुर नाम के एक राक्षस ने घोर तप करके यह वरदान प्राप्त किया था कि जो भी उनकी ओर देखेगा उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। इस वजह से कर्म और उसके परिणाम की बेईमानी होती जा रही थी। यही देखकर भगवान विष्णु को सहन नहीं हुआ और प्रभु ने उस गयासुर के छाती पर अपने पैर रखकर उसे पृथ्वी की सतह से नीचे दबा दिया। इससे चट्टानी सतह पर उनके पैर की छाप रह गई और उस जगह को फिर मंदिर के रूप में बनाया गया। तभी से यह मंदिर विष्णुपद मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि गयासुर के नाम पर ही इस शहर का नाम भी 'गया' पड़ा है।
विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में क्या है?
गया के विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में एक शिला पर भगवान विष्णु का चरण चिन्ह है। 18 इंच लंबा यह निशान विष्णु भगवान के दाहिने पैर का है, जो चांदी की अष्ट भुजाओं वाले प्लेटों से बने बेसिन से घिरा हुआ है। इसके ठीक सामने माता लक्ष्मी की भी एक गोल्डन मूर्ति है, जिन्हें हर रोज श्रृंगार करके सजाया जाता है। भक्तों की भीड़ इस मंदिर में वर्ष भर आपको देखने को मिल जाएगा।
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विष्णुपद मंदिर क्यों मशहूर है?
विष्णुपद मंदिर, दुनियाभर में मशहूर एक अनोखा मंदिर है, जहां भगवान के पैरों के छाप की पूजा की जाती है। लोग यहां अपने प्रियजनों का पिंडदान करने के लिए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर एक भी दिन गयासुर को अपना भोजन नहीं मिला, तो वह फिर से दुनिया में वापसी कर सकता है। इसलिए यहां रोजाना पूजा की जाती है और वर्षभर इस मंदिर में तीर्थयात्रियों का जमावड़ा लगा रहता है। यह मंदिर फल्गु नदी के तट पर स्थित है।
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Image credit- Bihar Tourism site
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