हैदराबाद की हुसैन सागर झील भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सबसे शानदार जगहों में से एक है। यह झील आधुनिक वास्तुशिल्प चमत्कारों में से एक है। इस झील की खासियत है इसमें मौजूद एक विशाल बुद्ध प्रतिमा जो सभी पर्यटकों के बीच मुख्य आकर्षण का केंद्र है। लेकिन यह प्रतिमा देखने में जितनी सरल और सुरक्षित प्रतीत होती है इसका निर्माण वास्तव में उतना ही कठिन कार्य था। इसका निर्माण वस्तुशिल्पकारों के लिए वास्तव में एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन इस खूबसूरत झील के बीच आश्चर्यजनक रूप से स्थापित बुद्धा की प्रतिमा को स्थापित करने में लगभग 2 साल का समय लगा। आइए जानें इस झील और बुद्धा की मूर्ति से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में।
सबसे बड़ी अखंडित बुद्धा मूर्ति
हुसैन सागर बुद्ध प्रतिमा दक्षिण भारत के तेलंगाना के हैदराबाद में स्थित गौतम बुद्ध की दुनिया की सबसे ऊंची अखंड पत्थर की मूर्ति है। यह प्रतिमा हुसैन सागर द्वीप में लुम्बिनी पार्क में स्थित है और इस जगह पर नाव से पहुँचा जा सकता है। यह जगह वास्तव में दिखने में खूबसूरत होने के साथ पर्यटकों को भी आश्चर्य से भर देती है। यह मूर्ति एक ठोस मंच के ऊपर खड़ी हुई है, जिसकी ऊँचाई 15 फीट है जिसे हुसैन सागर झील के मध्य में बनाया गया था ताकि प्रतिमा को खड़ा करने में सहायता मिल सके। इस मंच को "रॉक ऑफ जिब्राल्टर" के रूप में जाना जाता है और हुसैन सागर झील के बीच में मूर्ति का निर्माण बेहद खूबसूरती से किया गया है। इस मूर्ति के निर्माण के लिए शहर की सड़कों को भी चौड़ा बनाया गया था।
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स्टैचू ऑफ़ लिबर्टी से मिली प्रेरणा
इस प्रतिमा का निर्माण 1983 और 1989 के बीच श्री स्वर्गीय एन टी रामाराव द्वारा किया गया था, जो उस समय आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत थे। इस प्रतिमा का विचार उन्हें अपनी न्यूयॉर्क यात्रा से आया था। वे स्टैचू ऑफ़ लिबर्टी की सुंदरता देखकर चकित थे और उससे प्रेरणा लेकर उन्होंने हुसैन सागर झील के बीच में बुद्धा प्रतिमा का निर्माण करवाया। भारत में प्रतिमा के निर्माण के लिए गौतम बुद्ध को प्रतीक के रूप में चुना गया था। प्रारंभ से ही प्रतिमा को पत्थर से निर्मित किया जाना निर्धारित किया गया था और एक लंबी खोज के बाद हैदराबाद के बाहर 40 मील की दूरी पर नलगोंडा के पास एक ठोस सफेद ग्रेनाइट चट्टान की खोज के बाद काम शुरू हुआ। अक्टूबर 1985 में एनटीआर ने संरचना पर काम का उद्घाटन किया। इसे एक साल से अधिक समय से डिजाइन किया गया था।
श्री एस.एम. गणपति स्थपति थे वास्तुकार
झील के बीचों बीच बुद्धा प्रतिमा का निर्माण वास्तव में एक अद्भुद कला का नज़ारा था। जिसका निर्माण वास्तुकार श्री एस.एम. गणपति स्थपति ने सैकड़ों श्रमिकों के साथ मिलकर किया। पाँच वर्षों के बाद और इसका खर्चा US $ 3 मिलियन था और प्रतिमा 58 फीट की थी और इसका वजन 350 टन था, जिससे यह बुद्ध की दुनिया की सबसे ऊंची अखंड मूर्ति बन गई।
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झील में मूर्ति के गिरने से हुआ हादसा
तब एनटी रामाराव के नेतृत्व वाली आंध्र प्रदेश की सरकार को 1989 में निष्कासित कर दिया गया था और अगले वर्ष यानी 1990 तक पत्थर की मूर्ति को ठोस मंच पर खड़ा करने के लिए तैयार किया गया था। इस प्रतिमा कोहुसैन सागरके किनारे तक पहुंचाया जाना था। एक ट्रेलर वाहन और यह जिम्मेदारी एबीसी लिमिटेड नामक एक स्थानीय कंपनी द्वारा ली गई थी। परियोजना पर काम कर रहे 10 इंजीनियरों की मानवीय भूल के कारण मूर्ति के फटने और झील में गिरने से एक बड़ा हादसा हुआ था। झील से मूर्ति को बाहर निकालने के लिए दो साल का कठिन मिशन किया गया था। अंत में 1 दिसंबर 1992 को झील के मंच पर सफलतापूर्वक मूर्ति स्थापित की गई।
झील के केंद्र में नहीं है मूर्ति
प्रतिमा को झील के केंद्र में खड़ा करने की योजना बनाई गई थी, लेकिन इंजीनियरिंग बाधा ने इसे मुश्किल बना दिया और यह एनटीआर मेमोरियल गार्डन के पास इसे स्थापित किया गया। 2006 में, दलाई लामा ने प्रतिमा का दौरा किया और अनुष्ठान करने के बाद इसे पवित्र किया और इस तरह इसे एक पवित्र तीर्थ का दर्जा दिया गया।
कुछ ऐसे ही रोचक तथ्यों के बारे में जानने और झील के अंदर स्थापित बुद्धा मूर्ति की भव्यता को देखने के लिए आपको भी इस जगह का दौरा जरूर करना चाहिए।
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Image Credit: wikipedia and unsplash
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