शाहजहां ने कभी न कभी यह ज़रूर सोचा या सपना देखा होगा कि अपनी बेगम यानि मुमताज के लिए एक आलीशान भवन का निर्माण करवाना है, शायद इसलिए विश्व प्रसिद्ध ताजमहल का निर्माण करवाया। मध्यकाल से लेकर आज तक ताजमहल एक ऐसी इमारत है जिसके जैसा कोई भी नहीं बना सका। ये तो एक उदहारण आपके सामने प्रस्तुत किया है हमने। अगर भारतीय इतिहास को पलटकर देखा जाए तो प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक भारत में ऐसी कई इमारत, भवन या मंदिरों को निर्माण हुआ, जिसके जैसा आज तक किसी से नहीं बना।
ठीक इसी तरह दक्षिण भारत के तमिलनाडु में बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण हुआ। प्राचीन समय में बना यह मंदिर दुनिया के सबसे अनोखे मंदिरों में एक है। तत्कालीन चोल शासक राजराज प्रथम ने विदेश यात्रा से पहले एक सपना देखा और ग्रेनाइट से तैयार दुनिया का पहला मंदिर बनवाने का निर्णय ले लिया। आज इस लेख में हम आपको इस मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में शायद आपको भी मालूम नहीं हो।
बृहदेश्वर मंदिर
तमिलनाडू के तंजौर में स्थित इस मंदिर का नाम है 'बृहदेश्वर मंदिर'। कई लोग इस मंदिर जो 'तंजौर का मंदिर' के नाम से भी जानते हैं। इस मंदिर का निर्माण राजाराज चोल प्रथम ने तक़रीबन 1004 से 1009 ईस्वी सन् के दौरान मंदिर का निर्माण कराया था। इतिहास में कहते हैं कि इस मंदिर को बनाने को लेकर राजाराज चोल ने श्रीलंका की यात्रा पर निकलने से पहले मंदिर निर्माण का सपना देखा था। उसके बाद राजाराज ने ग्रेनाइट से तैयार दुनिया का पहला मंदिर बनवाने का निर्णय ले लिया। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ग्रेनाइट एक तरह का कीमती पत्थर हुआ करता था प्राचीन काल में। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
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मंदिर के गुंबद को लेकर धारण
ग्रेनाइट से तैयार यह अद्भुत मंदिर तमिलनाडु से लेकर दक्षिण भारत के सबसे पवित्र और विशालकाय मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण और गुंबद का निर्माण कुछ इस तरह किया है कि सूर्य इसके चारों ओर घूम जाता है लेकिन, इसके गुंबद की छाया जमीन पर नहीं पड़ती है। अमूमन किसी भी मंदिर पर धूप पड़ते ही मंदिर की छाया जमीन पर दिखाई देती हैं लेकिन, इस मंदिर का नहीं। लोगों की माने तो इस गुंबद को लगभग 80 टन से अधिक पत्थर को काटकर बनाया गया है।(तमिलनाडु के 4 खूबसूरत डेस्टिनेशन्स)
तैरता हुआ मंदिर
जी हां, शायद ये शब्द सुनकर आप तोड़ा सोच में पड़ जाए लेकिन, इस मंदिर को तैरता मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण कुछ इस तरह किया गया है कि इस मंदिर में मौजूद किसी भी स्तंभ को पत्थरों से चिपकाया नहीं गया है। सिर्फ पत्थरों को काटकर एक-दूसरे के साथ फिक्स कर दिया गया है। इस भव्य मंदिर के निर्माण के लिए लगभग 13 हज़ार से भी अधिक ग्रेनाइट पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। एक तरह से सभी पत्थरों को पजल्स सिस्टम से जोड़ा गया है। आज भी सभी स्तंभ सही सलामत खड़े हैं।(दक्षिण-भारत के प्रसिद्ध शिव मंदिर)
13 मंजिला मंदिर
भारत के किसी भी राज्य में ऐसे बहुत कम ही मंदिर है जो 13 मंजिल हो लेकिन, बृहदेश्वर मंदिर एक ऐसा मंदिर जो 13 मंजिला मंदिर है। ऊंचाई की बात करें तो तत्कालीन समय में इस मंदिर को दुनिया का सबसे उंचा मंदिर माना जाता था। इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 66 मीटर है। मान्यता के अनुसार कावेरी नदी पर स्थित यह मंदिर लगभग 1000 सालों से भी अधिक समय से आज भी शान से खड़ा है।
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अन्य महत्वपूर्ण जानकारी
दक्षिण भारत में बृहदेश्वर मंदिर एक ऐसा मंदिर है जो बिना किसी नींव के खड़ा है। 2004 में आए सुनामी में भी यह मंदिर सही सलामत रहा। मंदिर के पत्थरों पर अद्भुत शिलालेखों और संस्कृत व तमिल भाषा में लिखे शब्द आसानी से देखे जा सकते हैं। मंदिर में लगभग 13 फीट ऊंचे शिवलिंग का निर्माण भी कराया गया है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर करना ना भूलें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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