जहां भगवान शिव-पार्वती के हुए थे फेरे वहां अंबानी कर सकते हैं अपने बेटे का विवाह

भगवान शिव-पार्वती के जहां फेरे हुए थे उस मंदिर में अंबानी अपने बेटे की शादी कर सकते हैं।

triyuginarayan temple shiv parvati

भगवान शिव-पार्वती के जहां फेरे हुए थे उस मंदिर में अंबानी अपने बेटे की शादी कर सकते हैं। ये मंदिर उत्तराखंड में है और इस मंदिर में भगवान शिव-पार्वती ने फेरे लिए थे। अंबानी अपने बेटे आकाश की शादी यही करना चाहते हैं ऐसी खबर है।

यहां बता दें कि मुकेश और नीता अंबानी की बेटी ईशा की बिजनेस टायकून आनंद पीरामल संग इस साल दिसंबर में शादी हो सकती है। उनके परिवारवालों ने प्री-वेडिंग बैश के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। मीडिया सूत्रों के अनुसार उदयपुर में ईशा अंबानी प्री-वेडिंग बैश करेंगी। बेटे आकाश अंबानी की सगाई पहले ही श्लोका मेहता से हो चुकी है।

मीडिया सूत्रों के अनुसार ईशा से पहले आकाश की शादी होगी। यानी बहू के आने से पहले बेटी की विदाई होगी। हाल ही में 21 सितंबर को ईशा और आनंद की सगाई इटली के लेक कोमो में हुई है। ऐसी खबरे हैं कि अंबानी अपनी बेटी ईशा की शादी के बाद बेटे आकाश के फेरे उस मंदिर में कराएंगे जहां भगवान शिव-पार्वती की शादी हुई थी।

तो चलिए आपको बताते हैं उत्तराखंड के उस मंदिर के बारे में जहां भगवान शिव-पार्वती का विवाह हुआ था।

यहां हुए थे शिव-पार्वती के फेरे

सावन के महीने में भगवान शिव की शादी हुई थी और यह महीना शिव को अतिप्रिय है। इस महीने में भगवान शिव और मां पार्वती शादी के पवित्र बंधन में बंधे थे। यह उत्तराखंड का त्रियुगीनारायण मंदिर है जिसे बहुत ही पवित्र माना जाता है।

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इस मंदिर का विशेष पौराणिक महत्व हैं क्योंकि यहां भगवान शिव-पार्वती ने फेरे लिए थे। साथ ही इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि जो जोड़ा यहां फेरे लेता है उसे भगवान शिव-पार्वती का सीधा आर्शिवाद मिलता है।

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त्रियुगीनारायण मंदिर

वेदों में उल्लेख है कि यह त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेतायुग से स्थापित है जबकि केदारनाथ और बदरीनाथ द्वापरयुग में स्थापित हुए थे। ऐसी भी मान्यता है कि इस स्थान पर विष्णु भगवान ने वामन देवता का अवतार लिया था। त्रियुगीनारायण मंदिर के अंदर सदियों से अग्नि जल रही है। भगवान शिव-पार्वती जी ने इसी पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर विवाह किया था। यह स्थान रुद्रप्रयाग जिले का एक भाग है।

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त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में ही कहा जाता है कि यह भगवान शिव और मां पार्वती का शुभ विवाह स्थान है। मंदिर के अंदर प्रज्वलित अग्नि कई युगों से जल रही है इसलिए इस स्थल का नाम त्रियुगी हो गया यानी अग्नि जो तीन युगों से जल रही है।

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यहां शिव पार्वती के विवाह में विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था जबकि ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे। उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है।

विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं। इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है। सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से हुआ था और इसलिए ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है। यहां दर्शन करने आने वाले यात्री प्रज्वलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ ले जाते हैं ताकि उनका वैवाहिक जीवन शिव और पार्वती के आशीष से हमेशा मंगलमय बना रहें।

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