इस देश में कई ऐसे मशहूर और पुराने मकबरे हैं, जिन्हें देखा जाना चाहिए। हालांकि, इनमें से हम कुछ मकबरों के नाम से वाकिफ हैं, जो वक्त से साथ-साथ पर्यटकों के पसंदीदा स्थल भी बन गए हैं। ऐसे इसलिए क्योंकि मुगलों द्वारा बनवाए गए मकबरे होते ही खास है, जिसकी खूबसूरती से कोई इंकार नहीं कर सकता।
हज़ारों लोग दूर-दूर से इन मकबरे की खूबसूरती को निहारने आते हैं। यह देखने में न सिर्फ मस्जिद की तरह लगते हैं, बल्कि इतिहास के पन्नों की भी याद दिलाते हैं। वहीं, कुछ मकबरे ऐसे हैं जिसका काफी ऐतिहासिक महत्व है, लेकिन इसके नाम से हर को वाफिक नहीं। जी हां, हम बात कर रहे हैं दिल्ली के सबसे पुराने शहर महरौली में स्थित मुहम्मद कुली खान के मकबरे के बारे में।
यह महरौली के महरौली आर्कियोलॉजिकल पार्क में मौजूद है, जो लगभग 200 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। महरौली पुरातत्व पार्क में मुगल और ब्रिटिश काल के 100 से अधिक संरचनाएं हैं। इसी पार्क में विशाल मकबरा भी मौजूद है। इसका इतिहास काफी रोचक रहा है, जिससे हम सभी को परिचित होना बहुत जरूरी है।
अधम खान के मकबरे के पास, सबसे दिलचस्प कहानी वाला कुली खान का मकबरा है। अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफरके शासन काल में बनवाया गया था। यह वो दौर था जब ब्रिटिश शासन भारत में आ गया था, उस वक्त यहां के गवर्नर जनरल थॉमस टी मेटकॉफ थे।
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मेटकॉफ उस वक्त इस मकबरे में छुट्टियां बिताने आते थे, लेकिन बाद में उन्होंने कुली खान के मकबरे को अपना घर बना लिया था। बाद में इसे यूरोपीय निवासियों की सौंदर्य शैली में फिर से डिजाइन करवाया गया था।
17वीं शताब्दी की शुरुआत में, मुहम्मद कुली खान के लिए मकबरे का निर्माण किया गया था। कुली खान अधम खान के भाई थे, जो मुगल सम्राट अकबर की नर्स महम अंगा के बेटे थे। पहले इसे मूल रूप से प्लास्टर से सजाया गया था। (ट्रैवल हैक्स की मदद से सफर को बनाएं आसान)
बाद में भारत के गवर्नर जनरल सर थॉमस थियोफिलस मेटकाफ ने लगभग 1853 में इसे एक निवास में बदल दिया था। साथ ही, इसका नाम बदलकर दिलकुश रख दिया था, जिसका मतलब था दिल की खुशी। सफवी ने अपनी किताब में लिखा है कि एमिली ने अपना हनीमून दिलकुशा में मनाया था।
हालांकि, बाद में मेटकाल्फ ने आस-पास की जगह को हनीमून स्पॉट से ‘डिलाइट ऑफ हार्ट’ कर दिया था। साथ ही, इस मकबरे को फिर से कुली खान के मनाम से जाना जाने लगा।
यह मकबरा एक ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है, जो बाहर से त्रिकोण के शेप में बनाया गया है। यहां पर यह मकबरा बनवाया गया था, वहां पर पानी के मार्ग, बगीचे भी बनवाए गए थे। मकबरे के मुख्यद्वार पर फारसी शैली में कुरान की आयतें लिखीं हुई थीं, जो लगभग अब धूमिल हो गई हैं। साथ ही, मकबरे के अंदर उत्कृष्ट नक्काशी की गई है, जिसे बारीक और चित्रित प्लास्टर से बनाया गया है।
मकबरे की बाहरी दीवारों पर गचकारी प्लास्टर के डिजाइन बने हैं, जो कि फारसी कलाहै। इसे बनाने के लिए नीले, हरे और पीले रंगों के चमकदार टाइल्स लगाए गए हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह मकबरा विशाल वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है।
कुली खाम का मकबरा सप्ताह के हर दिन खुलता है। यहां सभी पर्यटकों को सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक घूमने के लिए जाया जा सकता है।
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मकबरे को घूमने के लिए टिकट नहीं है। इस मकबरे की सैर करने के लिए आप अपने परिवार के साथ आसानी से जा सकते हैं।
मकबरा दिल्ली के महरौली शहर में स्थित है। यहां जाने के लिए आपको दिल्ली आना होगा और महरौली के लिए टेक्सी या बस लेनी होगी। वहीं, अगर आप दिल्ली में रहते हैं, तो महरौली तक मेट्रो से जा सकते हैं।
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