अगर आप औरंगाबाद अजंता और ऐलोरा की गुफाएं देखने के लिए जा रही हैं तो साथ ही वहां एक ऐसा किला है जिसे देखने के लिए आपको जरूर जाना चाहिए। इस किले को देखने के बाद आपको भी यही लगेगा कि औरंगाबाद को टूरिस्ट्स के बीच मशहूर बनाने में अजंता और ऐलोरा की गुफाओं के साथ-साथ ये किला भी वजह रहा है।
औरंगाबाद को खासतौर से अजंता और ऐलोरा गुफाओं के लिए जाना जाता है लेकिन ऐतिहासिक दृष्टि से भी ये जगह बहुत ही खास है क्योंकि यहां चट्टानों को काटकर एक किला बना हुआ है जिसे देखने के लिए कई मीलों से भी टूरिस्ट्स आते हैं। इस किले का नाम दौलताबाद किला है।
तो चलिए आपको दौलताबाद किले के बारे में कुछ खास और दिलचस्प बातें बताते हैं।
औरंगाबाद का दौलताबाद किला
चट्टानों को काटकर दौलताबाद किला बनाया गया है जो उस वक्त के उत्तम वास्तुकला का नायाब नूमना है। अगर हम इंडिया के सबसे मजबूत और विशाल किलों के बारे में बात करें तो इसमें दौलताबाद किले का नाम भी आता है। दौलताबाद किला 200 मीटर ऊंची शंकुकार पहाड़ी पर बना हुआ है। इतनी ऊंचाई पर बने होने की वजह से ही दुश्मन सेना का यहां तक पहुंच पाना मुश्किल होता था।
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इस किले के अंदर और भी कई दूसरे स्मारक जैसे भारत माता मंदिर, चंद मीनार, जलाशय, चीनी महल, बाजार, बने हुए हैं।
दौलताबाद किले की खासियत
इंडिया के विशाल किलों में दौलताबाद किले का नाम आता है इसलिए इस किले के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यहां दुश्मन हमला करने से पहले हजार बार सोचता है। इस किले की खासियत है कि ये जिस पहाड़ी पर बना है उसके चारों ओर खाईयां हैं।
95 हेक्टेयर एरिया में फैले इस किले की सुरक्षा के लिए ऊंची दीवारें हैं जिन्हें कोट कहते हैं। मुख्य किले तक पहुंचने के लिए 3 अभेद दीवारों, एक जलशय, अंधेरे और टेढ़े मेढ़े मार्ग से लगभग 400 सीढ़ियों से होकर गुजरना पड़ता है।
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इस किले में बने 7 द्वार और उसकी दीवारों पर तोप रखी हुई हैं जिनमें से आखिरी द्वार पर रखे 16 फीट लंबे तोप को आज भी देखा जा सकता है। किले के अंदर भारत माता को समर्पित मंदिर है। किले में एक और बहुत रोमांचकारी जगह हाथी हौड़ पानी की टंकी है। जहां तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं।
दौलताबाद किले का इतिहास
दौलताबाद किले को भीलम नामक राजा ने 11वीं सदी में खोजा था। तब इस शहर को देवगिरि के नाम से जाना जाता था। काफी समय बाद मुहम्मद बिन तुगलक ने दौलताबाद का इस्तेमाल अपने राज्य का विस्तार करने में किया था। मोहम्मद बिन तुगलक के बाद भी कई शासक हुए।
ऐसा माना जाता है कि मुगल बादशाह अकबर के समय इस किले को मुगलों ने जीत लिया था और इसे मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया गया। 1707 ईस्वी में औरंगजेब की मौत तक इस किले पर मुगल शासन का ही अधिकार रहा जब तक ये हैदराबाद के निजाम के कब्जे में नहीं आया।
टिप्स
अगर आप मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, नासिक, इंदौर आदि शहरों से ताल्लुक रखती हैं तो यहां से आपको औरंगाबाद के लिए आसानी से बस सुविधा मिल सकती है। अगर आप दिल्ली से जा रही हैं तो आपको औरंगाबाद तक रेलवे की सुविधा मिल जाएंगी और फिर वहां से आप बस ले सकती हैं।
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