दिल्ली में भैरों नाथ के कई ऐसे मंदिर हैं जहां दर्शन करने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन पांडव द्वारा बनाए गए भैरों नाथ के ऐसे दो ही मंदिर हैं जहां भैरों नाथ को खुश करने के लिए उन्हें शराब चढ़ाई जाती है।
आपको अपने पहले भी ऐसे मंदिरों के बारे में बताया था जहां भगवान को खुश करने के लिए उन्हें खाने की अजीब चीजें चढ़ाई जाती हैं लेकिन आज हम ऐसे मंदिरों के बारे में बात करने वाले हैं जहां भगवान को खुश करने के लिए उन्हें शराब चढ़ाई जाती है।
चलिए जानते हैं क्या है पांडवों द्वारा भैरों नाथ के लिए मंदिर बनवाने के पीछे की कहानी और किस कारण से इनमें से एक मंदिर में चढ़ती है शराब। यहां आपको इन मंदिरों के बारे में कुछ खास बातें बताने से पहले आपको बता दें कि इन दोनों मंदिरों का इतिहास एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है और इसके पीछे भी एक कहानी है। चलिए जानते हैं कौन से हैं वो मंदिर और क्या है उनके पीछे की कहानी...
बटुक और किलकारी बाबा भैरों नाथ मंदिर
जिन मंदिरों को दिल्ली में पांडवों ने बनवाया था उनके नाम हैं बटुक भैरों नाथ मंदिर और किलकारी बाबा भैरों नाथ मंदिर। बटुक भैरों नाथ मंदिर भगवान भैरों को समर्पित है। यह मंदिर दिल्ली में नेहरू पार्क चाणक्य पुरी स्थित है। इस मंदिर का नाम दिल्ली के मुख्य मंदिरों में आता है।
इस मंदिर के बारे में ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर लगभग 5500 साल पुराना है। इस मंदिर की बनावट बहुत पुरानी नहीं है क्योंकि समय-समय पर इस मंदिर का पुनिर्माण किया जाता रहा है।
ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर पांडव के युग का है इसलिए इसकी मान्यता हजारों वर्ष पुरानी है। इतना पुराना मंदिर होने की वजह से यह दिल्ली शहर के प्राचीन मंदिरों की लिस्ट में से एक है।
इस मंदिर में साल भर भक्तों की बड़ी संख्या दर्शन के लिए आती है। खासतौर पर हर रविवार को इस मंदिर में भैरों बाबा के दर्शन के लिए बडी संख्या में भक्तों का तांता लग जाता है।
बटुक भैरों नाथ मंदिर में भगवान भैरों बाबा का सिर्फ चेहरा ही है और चेहरे पर बड़ी-बड़ी दो आंखें ही नजर आती हैं। बटुक भैरों नाथ मंदिर में शराब को प्रसाद के रूप में भगवान को चढ़ाई जाती है।
ऐसा कहा जाता है कि जो भी शराब भैरों की मूर्ति के ऊपर चढ़ाई जाती है, वो मंदिर के बहुत ही नीचे बने हुए कुएं में चली जाती है।
यह है वो वजह जिस कारण जुड़ा हुआ है दोनों मंदिरों का इतिहास
दिल्ली में भैरों नाथ के पांडवों द्वारा बनाये गये दो मंदिर हैं पहला बटुक भैरों नाथ मंदिर और दूसरा किलकारी बाबा भैंरो नाथ मंदिर। एक मंदिर चाणक्य पुरी में स्थित है तो दूसरा पुराने किला के बाहर और प्रगति मैदान के सामने स्थिति है। दोनों मंदिर का इतिहास एक दूसरे से जुडा हुआ है।
ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने अपने किले की सुरक्षा हेतु कई बार यज्ञ का आयोजन करवाया था लेकिन राक्षस यज्ञ को बार-बार भंग कर दिया करते थे।
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ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने सुझाव दिया कि किले की सुरक्षा हेतु भगवान भैरों किले में स्थिपित किया जाए।
तब भीम ने भैरों बाबा को लाने के लिए काशी यानि बनारस गए। भीम ने बाबा की अराधना की और बाबा से इन्द्रप्रथ चलने की विनती की। बाबा ने भीम के समक्ष एक शर्त रखी और कहां कि वह जहां भी उन्हें पहले रख देगें वे वहीं विराजमान हो जाएंगे और वे वहां से आगे नहीं जाएंगे।
भीम ने भगवान की यह शर्त मान ली और बाबा को अपने कंदे पर बिठा कर चल दिए।
यहां आकर बाबा भैरों ने माया कर दी और भीम को मजबूर होकर उन्हें अपने कंदे से नीचे उतारना ही पड़ा। तब भीम ने फिर से अराधना की और उनसे आगे चलने की विनती की लेकिन बाबा आगे नहीं गए।
ऐसे में भीम ने दोबारा विनती की और कहां कि वो अपने भाईयों को वचन दे कर आए हैं कि वो उन्हें इन्द्रप्रथ लेकर ही आएंगे। इसके बाद भी बाबा आगे नहीं गए और भीम को किले की सुरक्षा हेतु अपनी जटा काट कर दे दी और कहां कि इन्हें किल में विस्थपित करें और वो यहीं से किलकारी मार कर किले की सुरक्षा करेंगे। वहीं स्थान आज किलकारी बाबा भैंरो नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
यह है वो कहानी जिस कारण बटुक भैरों नाथ मंदिर और किलकारी बाबा भैरों नाथ मंदिर का इतिहास आपस में जुड़ा हुआ है।
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