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Javed Akhtar

167 करोड़ के मालिक को कभी भूखे पेट काटनी पड़ी थीं रातें, 5 नेशनल अवॉर्ड और पद्मश्री जीत चुका है ये गीतकार

Javed Akhtar Story: पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे पुरस्कार जीत चुके जावेद अख्तर आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने ये मुकाम हासिल करने के लिए काफी लंबा संघर्ष किया है। आइए जानें, कैसे जावेद अख्तर ने बिना खाना खाए, बॉलीवुड में इतना बड़ा नाम कमाया?
Editorial
Updated:- 2025-01-19, 11:00 IST

Javed Akhtar Struggle Story: जावेद अख्तर का भारतीय सिनेमा में एक बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने लेखक, गीतकार और कवि के तौर पर अपने काम से बॉलीवुड को एक दिशा देने का काम किया है। उनकी कहानियों और डायलॉग्स से फिल्म हिट साबित हो जाती थी। अपने बेहतरीन काम के लिए जावेद अख्तर पांच बार नेशनल फिल्म अवॉर्ड तक जीत चुके हैं। इसके अलावा उन्हें पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है। जावेद अख्तर आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। जावेद अख्तर ने अपने जीवन में फर्श से अर्श तक का सफर देखा है।

आज जावेद अख्तर जिस मुकाम पर हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने खूब मेहनत की है। एक समय ऐसा भी था, जब उन्होंने भरपेट खाना तक नसीब नहीं होता था। इन सभी बातों का खुलासा जावेद अख्तर ने खुद किया है। आइए जानें, आखिर कैसे जावेद अख्तर ने जमीन से आसमान तक का सफर तय किया? 

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संघर्षों से भरा था जीवन

life was full of struggles

डॉक्यू-सीरीज 'एंग्री यंग मेन' के एक सेगमेंट में जावेद अख्तर ने फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े अपने संघर्षों के बारे में बात की थी। इस दौरान उन्होंने बताया था कि कैसे एक बार पैसों की कमी के चलते उन्हें भूखा रहना पड़ा था। जावेद अख्तर ने अपने जवानी के दिनों को याद करते हुए मुंबई में आने के बाद उनके शुरुआती संघर्षों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि उन्हें अक्सर ऐसा लगता है, वे उस विलासिता के लायक ही नहीं हैं, जो उन्हें मिल चुकी है। 

सहायक निर्देशक बनने का था सपना

Dream was to become an assistant director

डॉक्यू-सीरीज में जावेद अख्तर ने अपने शुरुआत दिनों के बारे में कहा, "मैंने फैसला कर लिया था कि मैं ग्रेजुएशन करने के बाद मुंबई जाऊंगा और सहायक निर्देशक के तौर पर काम करूंगा। मैं गुरु दत्त या राज कपूर के साथ काम करना चाहता था। मुझे पूरा विश्वास था कि कुछ सालों तक ऐसे काम करने के बाद मैं एक निर्देशक बन जाऊंगा।"

रेलवे स्टेशन पर सोना पड़ा

had to sleep at the railway station

लेखक और गीतकार ने अपनी कहानी को आगे बढ़ाते हुए बताया, "मैं सिर्फ 5 दिनों के लिए ही अपने पिता के घर पर था। मैं कुछ दोस्तों के साथ रहा। एक समय पर मैं रेलवे स्टेशनों, पार्कों, स्टूडियो, गलियारों में, बेंचों पर भी सोया हूं। एक वक्त पर मैं दादर से बांद्रा तक पैदल चलकर जाता था क्योंकि मेरे पास बस का किराया तक नहीं होता था। कभी-कभी तो मुझे 2 दिनों तक खाना नहीं मिलता था। इस पर मैं सोचता था, एक दिन जब मेरे ऊपर जीवनी लिखी जाएगी, तो उसमें ये सुनहरे पल जरूर होने चाहिए।"

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