भारत देश में कई शहर ऐसे हैं, जो नदियों के किनारे बसे हैं। जब कभी भी गंगा मईया की धारा की बहने की बात होती है, तो ऐसा कहा जाता है कि यह उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है। आज हम आपको एक ऐसे शहर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो गंगा नदी के किनारे बसा है। लेकिन यहां पर कुछ दूरी तक गंगा नदी विपरीत दिशा यानी उल्टी बहती है। यकीनन यह जानकर आपको हैरानी हो सकती है। लेकिन यह सच है। बता दें कि हम किसी और नगरी नहीं बल्कि शिव नगरी काशी की बात कर रहे हैं। महादेव की नगरी में गंगा नदी का बहाव न केवल भौगोलिक रूप से रोचक है, बल्कि धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी बेहद खास है। चलिए पंडित आचार्य उदित नारायण त्रिपाठी से जानते हैं काशी में किस स्थान पर गंगा नदी उल्टी बहती है और इसके पीछे का कारण क्या है।
काशी में किस स्थान तक बहती है उल्टी गंगा?
शिव नगरी काशी में 1.5 किलोमीटर तक गंगा नदी का बहाव विपरीत दिशा की ओर होता है। नदी का यह बहाव स्थान मणिकर्णिका घाट से लेकर तुलसी घाट तक है। विपरीत दिशा में बहने वाली गंगा नदी का महत्व न केवल भौगोलिक कारणों से ही नहीं बल्कि धार्मिक कारणों से भी महत्वपूर्ण है। ऐसा कहा जाता है कि काशी में गंगा दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है। लेकिन जब गंगा नदी इस नगर की ओर प्रवेश करती है, तो उसका बहाव धनुष के आकार का हो जाता है। इस वजह से गंगा नदी पहले पूर्व दिशा में मुड़ती है फिर पूर्वोत्तर दिशा की तरफ। जब गंगा में पानी का बहाव तेज होता है तो दशाश्वमेध घाट के पास की जमीन के ज्यादा घुमावदार होने के कारण गंगा में भंवर बनने लगता है। इस भंवर से टकराने के बाद गंगा की लहरें डेढ़ किलोमीटर तक उल्टी बहती है।
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गंगा के उल्टे बहने के पीछे का धार्मिक कारण
काशी में गंगा नदी के उल्टा होने के पीछे का धार्मिक कारण यह है कि जब मां गंगा स्वर्ग से धरती पर प्रकट हुई तो उस दौरान वह एक ही स्थान पर जा रही थी। उसी समय वाराणसी के घाट पर भगवान दत्तात्रेय तपस्या कर रहे थे। जब गंगा जी उस स्थान से गुजरी तो इसी के साथ दत्तात्रेय के कमंडल और कुशा आसन भी गंगा के साथ डेढ़ किलोमीटर तक आगे निकल गए। इसके बाद मां गंगा वापस यानी उल्टा लौटकर भगवान दत्तात्रेय के पास पहुंची और उनकी वस्तुओं को वापस लौटकर उनसे क्षमा मांगी। ऐसा कहा जाता है तब से ही मां गंगा डेढ़ किलोमीटर तक उल्टा बहती है।
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