वैष्णव साधकों के द्वारा सदियों से माथे पर तिलक लगाने की परंपरा रही है। माथे पर तिलक करने के बहुत से लाभ हैं। वैष्णव या हिंदू धर्म में लोग चंदन, हल्दी, केसर, कुमकुम और सिंदूर समेत कई सारी चीजों से निर्मित चंदन को तिलक के रूप में अपना माथे पर लगाते हैं। इसके अलावा हिंदू धर्म में पवित्र स्थान, तीर्थ और घाट की रज को बहुत शुभ और पवित्र माना गया है, इसलिए लोग अपने माथे पर इस रज को तिलक के रूप में धारण करते हैं।
क्या है गोपी चंदन और यह कैसे बनता है?
सभी रज में वृंदावन की रज को बहुत पवित्र माना गया है, इसे गोपी चंदन के नाम से जाना जाता है। इस गोपी चंदन को बनाने के लिए विशेष रूप से वृंदावन सीमा में सुनरख और परिक्रमा मार्ग पर खान की रज को निकालकर लाते हैं। इस वृंदावन की रज में केसर, इत्र और रंग मिलाकर गोपी चंदन बनाया जाता है और उसे बाजार में भक्तों के लिए उपलब्ध किया जाता है। गोपी चंदन को श्याम वंदिनी विहार चंदन भी कहा जाता है। गोपी चंदन समस्त गोपियों के चरणों की रज है, जिसे भगवान श्री कृष्ण ने अपने हथेली में धारण कर अपने पूरे शरीर में लगाया था। गोपियों के चरणों की धूल को ही गोपी चंदन कहा गया है।
गोपी चंदन का महत्व
स्कंद पुराण के मुताबिक लड्डू गोपाल जी और भगवान श्री कृष्ण के सभी रूपों को गोपी चंदन अर्पित किया जाता है। बता दें कि भगवान श्री कृष्ण और भक्त गण गोपी चंदन को अपने माथे पर धारण करते हैं। जो मनुष्य इस गोपी चंदन को अपने माथे में तिलक के रूप में धारण करते हैं, उन्हें व्रत, दान और तीर्थ भ्रमण का पुण्य मिलता है। प्रत्येक दिन जो मनुष्य गोपी चंदन धारण करता है उसे पापों से मुक्ति मिलती है और भगवान कृष्ण के गोलोक धाम की प्राप्ति होती है।
गोपी चंदन लड्डू गोपाल को क्यों प्रिय है?
गोपी चंदन लड्डू गोपाल को इसलिए प्रिय है, क्योंकि यह कान्हा से प्यार करने वाली गोपियों के चरण की धूल है। गोपी चंदन से जुड़ी एक कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्णद्वारका नगरी के डूबने के बाद वापस अपने धाम जा रहे थे, तब सभी गोपियां और राधा रानी उन्हें विदा करने आईं। कान्हा को जाता देख सभी गोपियां और राधा रानी बहुत दुखी थी और रो रही थी। गोपियों के प्रेम को देखते हुए कान्हा बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने कहा। इसपर गोपियों ने कहां हम आपको जाता हुआ नहीं देख सकते, इसलिए हम आपसे पहले जाना चाहती हैं। कान्हा गोपियों की बात मान लिए और उन्हें जाने को कहा। इसके बाद जब गोपियां धरती से अपने धाम कान्हा के पास जा रही थी, तब उनके चरणों की रज चंदन का रूप ले रही थी। कान्हा सभी गोपियों के चरणों की रज को अपनी हथेलियों में रखकर अपने देह में लगाते हैं। तभी से गोपियों के चरणों की धूल को गोपी चंदन का नाम दिया गया। चूंकि यह गोपियों के चरणों से निकली है इसलिए यह लड्डू गोपाल को बहुत प्रिया है और उनकी पूजा में विशेष रूप से इस्तेमाल किया जाता है।
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Image Credit- messo, india marat and freepik
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