मंदिरों को सदियों से उन स्थानों में से एक माना जाता है जहां आपको मानसिक शांति मिलती है और आध्यात्मिक सांत्वना की प्राप्ति होती है। हम इस स्थान पर ईश्वर से जुड़ते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में हिस्सा लेते हैं।
इन मंदिरों की कुछ विशेषताएं हैं, जैसे मंदिर का शिखर, मंदिर की संरचना और शिखर पर लहराने वाला ध्वजा। आपने हर एक मंदिर में यह ध्वजा देखा होगा और इसके अलग रंग भी देखे होंगे।
यह झंडा, जिसे अक्सर मंदिर के शिखर पर फहराया जाता है, विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भों में गहरा महत्व रखता है। आइए इसके बारे में ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से विस्तार से जानते हैं कि मंदिर के शिखर पर ध्वजा क्यों लगाया जाता है और इसका महत्व क्या है।
मंदिर पर लगा झंडा आध्यात्मिक उत्थान और चेतना की उच्च अवस्थाओं का प्रतीक माना जाता है। यह आत्मा की उन्नति को दिखाता है। मुख्य रूप से हिंदू मंदिरों में लहराने वाला ये ध्वज अधर्म पर धर्म की विजय और सांसारिक चुनौतियों पर भक्तों की आध्यात्मिक विजय का प्रतीक माना जाता है।
मंदिर के शिखर पर मौजूद इस ध्वज को दैवीय उपस्थिति का प्रतीक भी माना जाता है। यह दर्शाता है कि मंदिर परिसर पवित्र है और परमात्मा की पूजा के लिए पूर्ण रूप से समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर के ऊपर लहराता हुआ झंडा देवताओं का ध्यान आकर्षित करता है और उनके आशीर्वाद और कृपा को आमंत्रित करता है।
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मंदिर के शिखर पर लगे ध्वज पर मंदिर के इष्ट देव से जुड़े विशिष्ट प्रतीक या रंग अंकित होते हैं। यह ध्वज एक पहचान चिह्न के रूप में कार्य करता है, जो उस पवित्र स्थान में पूजा की जाने वाले विशेष देवी-देवता की उपस्थिति को दिखाता है।
उदाहरण के लिए यदि मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है तो उस मंदिर में गरुड़ जी की छवि अंकित हो सकती है। वहीं शिव मंदिर में स्थापित ध्वज पर नंदी की तस्वीर हो सकती है। इन प्रतीकों को देखकर ही आप अनुमान लगा सकते हैं कि मंदिर मुख्य रूप से किसे समर्पित है।
ऐसा माना जाता है कि मंदिर के शिखर पर झंडा लगाने से मंदिर में आध्यात्मिक और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह धार्मिक समारोहों और अनुष्ठानों की औपचारिक शुरुआत का प्रतीक होता है। ध्वजा लगाने से मंदिर के आस-पास पवित्रता की आभा पैदा होती है और वातावरण शुद्ध होता है जिससे मंदिर के समग्र आध्यात्मिक माहौल में वृद्धि होती है।
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हिंदू मंदिरों में मुख्य रूप से नारंगी झंडे का प्रयोग किया जाता है जिसे त्याग का प्रतीक माना जाता है। इस रंग का झंडा उन लोगों से जुड़ा होता है जिन्होंने सांसारिक इच्छाओं को त्याग दिया है।
यह ध्वजा किसी के अहंकार को त्यागने और स्वयं को परमात्मा के प्रति समर्पित करने का एक शक्तिशाली प्रतीक बन जाता है। गौरवशाली नारंगी ध्वजा को देखकर मनुष्य व्यक्तिगत इच्छाओं और अहंकार पर काबू पाने की कोशिश करता है और निःस्वार्थ भावना से मंदिर के भीतर प्रवेश करता है।
मंदिर में लगा हुआ झंडा हर एक मंदिर के अलग नियमों के अनुसार बदला जाता है। कुछ मंदिरों में यह ध्वजा दिन में तीन बार बदला जाता है और कुछ मंदिरों में किसी एक विशेष दिन इसे बदलने का नियम है। वहीं जगन्नाथ पुरी का झंडा नियमित रूप से बदला जाता है। ऐसे ही किसी भी हनुमान मंदिर के ध्वज को मंगलवार के दिन अवश्य बदलकर उसके स्थान पर नया ध्वज लगाया जाता है।
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