पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रतिदिन लोग मंदिर में जाकर भगवान की पूजा करते हैं, लेकिन यदि किसी कारणवश वो मंदिर नहीं जा सकते हैं तो मंदिर के शिखर के दर्शन ही लाभकारी हो सकते हैं।
शास्त्रों में भी इस बात का जिक्र भी है कि 'शिखर दर्शनम् पाप नाशम्' अर्थात मंदिर के शिखर मात्र के दर्शन से समस्त पापों का नाश हो सकता है। भक्तों को इससे मंदिर जाने का पुण्य प्राप्त होता है।
मान्यता यह भी है कि शिखर के दर्शन से उतना ही पुण्य मिलता है, जितना मंदिर में ईश्वर की मूर्ति के दर्शन से मिलता है। इसी वजह से मंदिर का शिखर काफी ऊंचाई पर स्थित होता है जिससे कोई भी उसके दर्शन आसानी से कर सकता है और शुभ फलों को प्राप्त कर सकता है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें मंदिर में शिखर दर्शन क्यों जरूरी माना जाता है और इससे क्या लाभ हैं।
किसी भी मंदिर में वो बाहरी हिस्सा जो सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित होता है उसे मंदिर का शिखर कहा जाता है। शिखर शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है पहाड़ की चोटी। किसी भी उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला में इसे शिकारा भी कहा जाता है।
शिखर क्षैतिज छत स्लैब की एक श्रृंखला से बना होता है जो धीरे-धीरे शीर्ष की ओर बढ़ता है और उसकी संरचना एक चोटी पर समाप्त होती है। मंदिर के शिखर को एक ध्वजा से प्रमाणित किया जाता है।
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जैसा कि धर्म शास्त्रों में भी जिक्र है कि शिखर का दर्शन पापों से मुक्ति दिलाता है, इसलिए जब भी हम मंदिर में दर्शन के लिए जाएं सबसे पहले उसके शिखर के दर्शन करने की सलाह दी जाती है।
इससे आपकी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ति भी हो सकती है और पूजा का पूर्ण फल भी मिलता हैं। वहीं ऐसा भी माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति मंदिर जाकर भी शिखर के दर्शन न करे तो पूजा का पूर्ण फल नहीं प्राप्त होता है। इस वजह से ही शिखर को ऊंचाई पर बनाने के साथ इसमें ध्वज भी लगाया जाता है जो भक्तों का ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।
यदि आप मंदिर में पूजन के लिए जाएं तो सबसे पहले इसके शिखर के दर्शन करें। इसके लिए सर्वप्रथम इसके ध्वज और कलश को प्रणाम करें। शिखर की तरफ देखते हुए अपनी आंखें बंद करें और अपने इष्टदेव का ध्यान करते हुए मनोकामनाओं की पूर्ति को प्रार्थना करें।
इससे आपको मंदिर में पूजा से भी ज्यादा पुण्य मिलता है। कई बार यदि आपका शरीर अशुद्ध है और आप मंदिर में नहीं जा सकती हैं तब भी बाहर से शिखर के दर्शन से पूजा का फल मिलता है।
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ज्योतिष में सलाह दी जाती है कि आप जब भी मंदिर के शिखर के दर्शन करें उसके मंत्रों का जाप करते हुए करें जैसे यदि आपके इष्ट देव भगवान शिव हैं तो शिखर दर्शन के समय आप ऊँ नम: शिवाय का जाप, विष्णु जी के भक्त ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय और देवी जी के भक्त 'मंत्र दुं दुर्गायै नमः:' का जाप करें जिससे आपकी मनोकामनाओं की पूर्ति हो सके।
जब भी आप मंदिर जाएं आपको सबसे पहले इसके शिखर के दर्शन करने चाहिए। उसके बाद मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व इसकी सीढ़ियों में झुककर प्रणाम करें और सिर ढककर मंदिर के भीतर प्रवेश करें।
जिस प्रकार शिखरदर्शन को उपयोगी माना जाता है वैसे हीमंदिर की सीढ़ियों को झुककर प्रणाम करने से भी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और ये सभी ईश्वर के प्रति सम्मान दिखाने के तरीके माने जाते हैं।
इस प्रकार ज्योतिष में मंदिर के शिखर दर्शन को विशेष रूप से फलदायी माना जाता है और ये ईश्वर के पास आपका संदेश पहुंचाने का एक जरिया भी माना जाता है।
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