April Second Pradosh Vrat Katha 2025: वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 25 अप्रैल से शुरू होकर 26 अप्रैल, 2025 तक है। प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि में संध्या काल, अर्थात सूर्यास्त के पश्चात के समय में किया जाता है, इसलिए इस माह का दूसरा प्रदोष व्रत 25 अप्रैल को ही मनाया जाएगा। इस बार यह खास व्रत शुक्रवार के दिन पड़ रहा है, इसलिए इसे शुक्र प्रदोष व्रत के नाम से भी जाना जाएगा। प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना के लिए समर्पित है। त्रयोदशी तिथि के प्रदोष काल में उनकी पूजा-अर्चना करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के अनुष्ठान से भक्तों की इच्छाएं पूर्ण होती हैं। पूजा के साथ-साथ इस दिन प्रदोष व्रत कथा का भी विशेष महत्व है। आइए इस लेख में हम आपको ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से इस विषय में विस्तार से बताते हैं।
गुरु प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha 2025)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में अंबापुर नामक गांव में एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी। पति के देहांत के बाद, वह दान मांगकर अपना जीवन निर्वाह करती थी। एक दिन, भिक्षाटन से लौटते समय, उसे दो छोटे असहाय बच्चे मिले, जिन्हें देखकर वह अत्यंत दुखी हुई। वह सोचने लगी कि इन बालकों के माता-पिता कौन होंगे। अंततः, वह उन दोनों बच्चों को अपने घर ले आई और उनका पालन-पोषण करने लगी। समय बीतने के साथ, वे बालक युवा हो गए। एक दिन, ब्राह्मणी उन दोनों युवकों को लेकर ऋषि शांडिल्य के आश्रम पहुंची। ऋषि को प्रणाम करने के पश्चात, उसने उन बालकों के माता-पिता के विषय में जानने की इच्छा प्रकट की।
तब ऋषि शांडिल्य ने कहा, 'हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ के राजा के राजकुमार हैं। गंदर्भ के राजा के आक्रमण के कारण इनका राज्य छिन गया है, जिसके फलस्वरूप ये अपने राज्य से निष्कासित हो गए हैं।" यह सुनकर ब्राह्मणी ने प्रार्थना की, 'हे ऋषिवर! कृपया ऐसा कोई उपाय बताएं जिससे उन्हें उनका राज्य पुनः प्राप्त हो सके।' इस पर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने भक्तिपूर्वक प्रदोष व्रत का पालन किया। कुछ समय पश्चात, विदर्भ के बड़े राजकुमार की भेंट अंशुमती से हुई।
दोनों विवाह के लिए सहमत हो गए। यह जानकर अंशुमती के पिता ने गंदर्भ के राजा के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों का समर्थन किया, जिससे राजकुमारों को विजय मिली। प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन राजकुमारों को उनका खोया हुआ राज्य वापस मिल गया। इससे प्रसन्न होकर, उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को अपने दरबार में एक विशेष स्थान प्रदान किया, जिससे ब्राह्मणी भी समृद्ध हो गई और भगवान शिव की परम भक्त बन गई।
प्रदोष व्रत कथा का महत्व (Pradosh Vrat Katha Significance)
प्रदोष व्रत के शुभ अवसर पर भगवान शिव की पूजा करने और कथा सुनने से सभी परेशानियां दूर होती हैं। जीवन में आने वाली पीड़ा, दुखों और सभी प्रकार की रुकावटों से छुटकारा मिलता है। इस व्रत को करने से अच्छे स्वास्थ्य और जीवन में संपन्नता की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष व्रत के प्रभाव से घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। प्रदोष व्रत आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है। उपवास और भगवान शिव के ध्यान से मन शांत और आत्मा शुद्ध होती है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को भी कम किया जा सकता है। प्रदोष व्रत की पूजा, बिना कथा पाठ के अधूरी मानी जाती है, इसलिए कथा का श्रवण या पाठ आवश्यक है। कथा सुनने से व्रत करने वाले की हर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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