हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से अमावस्या तक के समय को पितृपक्ष कहते हैं। इस दौरान पितरों का स्मरण करना, उनकी विधिवत पूजा-अर्चना करना और तर्पण करने की मान्यता है। इस समय सभी शुभ कार्य बंद हो जाते हैं। इस समय पितरों को तृप्त और उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी जातक की कुंडली में पितृदोष है, तो पितृपक्ष का समय इस दोष से छुटकारा पाने के लिए शुभ फलदायी माना जाता है। अब ऐसे में इस साल पितृपक्ष कब है, श्राद्ध की तिथि कब है, श्राद्ध का महत्व क्या है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
पितृपक्ष का आरंभ 17 सितंबर से होने जा रहा है और इसका समापन 02 अक्टूबर को होगा।
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श्राद्ध कर्म करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों पर आशीर्वाद बरसाते हैं। माना जाता है कि पितरों का आशीर्वाद जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता लाता है। यदि किसी कारणवश पितरों का श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितृ दोष लग सकता है। इस दोष के कारण व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसे कि बीमारी, आर्थिक समस्याएं, पारिवारिक कलह आदि। श्राद्ध कर्म करने से पितृ दोष का निवारण होता है। आपको बता दें, पितृपक्ष में विशेष पूजा, हवन, तर्पण, और ब्राह्मणों को भोजन करवाने की परंपरा है। इन अनुष्ठानों के माध्यम से आत्मा की शांति की कामना की जाती है।
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Image Credit- HerZindagi
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