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जून के दूसरे प्रदोष व्रत के दिन करें इस खास स्तोत्र का जाप, वैवाहिक जीवन में नहीं आएगी कोई परेशानी

हिंदू धर्म ने प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के साथ-साथ मां पार्वती की पूजा करने का विधान है। अब ऐसे में इस दिन मां पार्वती के स्तोत्र का पाठ करने का विधान है। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
Editorial
Updated:- 2025-06-20, 16:20 IST

हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है, जो भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इस दिन प्रदोष काल में पूजा का विशेष महत्व है। जून माह में आने वाला प्रदोष व्रत भक्तों के लिए अत्यंत शुभ फलदायी माना जाता है। प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत संतान प्राप्ति, रोग मुक्ति, धन-धान्य और मोक्ष के लिए भी फलदायी माना जाता है। अब ऐसे में जून प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष व्रत के दिन मां पार्वती के स्तोत्र का पाठ करने का विधान है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

जून प्रदोष व्रत के दिन करें पार्वती स्तोत्र का पाठ

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हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं और सभी देवी-देवता उनका वंदन करते हैं। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
'जानकी उवाच'
शक्तिस्वरूपे सर्वेषां सर्वाधारे गुणाश्रये।
सदा शंकरयुक्ते च पतिं देहि नमोsस्तु ते।।
सृष्टिस्थित्यन्त रूपेण सृष्टिस्थित्यन्त रूपिणी।
सृष्टिस्थियन्त बीजानां बीजरूपे नमोsस्तु ते।।
हे गौरि पतिमर्मज्ञे पतिव्रतपरायणे।
पतिव्रते पतिरते पतिं देहि नमोsस्तु ते।।
सर्वमंगल मंगल्ये सर्वमंगल संयुते।
सर्वमंगल बीजे च नमस्ते सर्वमंगले।।
सर्वप्रिये सर्वबीजे सर्व अशुभ विनाशिनी।
सर्वेशे सर्वजनके नमस्ते शंकरप्रिये।।
परमात्मस्वरूपे च नित्यरूपे सनातनि।
साकारे च निराकारे सर्वरूपे नमोsस्तु ते।।
क्षुत् तृष्णेच्छा दया श्रद्धा निद्रा तन्द्रा स्मृति: क्षमा।
एतास्तव कला: सर्वा: नारायणि नमोsस्तु ते।।
लज्जा मेधा तुष्टि पुष्टि शान्ति संपत्ति वृद्धय:।
एतास्त्व कला: सर्वा: सर्वरूपे नमोsस्तु ते।।
दृष्टादृष्ट स्वरूपे च तयोर्बीज फलप्रदे ।
सर्वानिर्वचनीये च महामाये नमोsस्तु ते।।
शिवे शंकर सौभाग्ययुक्ते सौभाग्यदायिनि।
हरिं कान्तं च सौभाग्यं देहि देवी नमोsस्तु ते।।
फलश्रुति
स्तोत्रणानेन या: स्तुत्वा समाप्ति दिवसे शिवाम्।
नमन्ति परया भक्त्या ता लभन्ति हरिं पतिम्।।
इह कान्तसुखं भुक्त्वा पतिं प्राप्य परात्परम्।
दिव्यं स्यन्दनमारुह्य यान्त्यन्ते कृष्णसंनिधिम्।।
।।श्री ब्रह्मवैवर्त पुराणे जानकीकृतं पार्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
गौरी मंत्र
ॐ देवी महागौर्यै नमः।।
ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा महागौरी यशस्विनीम्।।
पूर्णन्दु निभाम् गौरी सोमचक्रस्थिताम् अष्टमम् महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्।।
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्।।
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीयां लावण्यां मृणालां चन्दन गन्धलिप्ताम्।

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जून प्रदोष व्रत के दिन पार्वती स्तोत्र का पाठ करने का महत्व

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प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा के लिए समर्पित होता है। इस दिन माता पार्वती का ध्यान और उनके स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। प्रदोष काल में भगवान शिव माता पार्वती के साथ प्रसन्न मुद्रा में कैलाश पर्वत पर वास करते हैं। इस समय पार्वती स्तोत्र का पाठ करने से भक्त को शिव और पार्वती दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। पार्वती स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को शक्ति, ज्ञान और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह पाठ जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मकता लाता है।

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