अंकशास्त्र में अंक 13 को लेकर लोगों में काफी भ्रम है। जहां एक तरफ इसे अशुभ माना जाता है, वहीं कई ज्योतिषी इसे बेहद शुभ मानते हैं. आज हम इसी बात पर गौर करेंगे कि क्या सच में अंक 13 अशुभ है और क्यों कई बड़ी इमारतों में 13वां फ्लोर नहीं होता है। अंक 13 का इस्तेमाल अक्सर आध्यात्मिक और तांत्रिक क्रियाओं में होता है, जो शायद इसके अशुभ माने जाने का एक कारण हो सकता है। आपको बता दें, दुनियाभर में सभी लोग ही इस 13 अंक को अशुभ मानते हैं। ज्योतिष के अनुसार, 13 अंक में राहु की ऊर्जा मानी जाती है। वहीं अगर 13 तारीख को शुक्रवार पड़ रहा है तो यह इसे अपशकुन माना गया है। आइए इस लेख में विस्तार से 13 नंबर के साथ-साथ शुक्रवार के दिन के बारे में जानते हैं। साथ ही 13 तारीख को हुई घटनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
जब 13 तारीख और शुक्रवार का दिन एक साथ पड़ते हैं, तो इन दोनों की नकारात्मक ऊर्जाओं का एक मेल माना जाता है, जिससे इसे और भी अधिक अपशकुन माना जाता है। बाइबिल के अनुसार, 'द लास्ट सपर' में 13 लोग शामिल थे, जिनमें से 13वें व्यक्ति ने यीशु को धोखा दिया था, जिसके बाद यीशु को सूली पर चढ़ाया गया। इस घटना के कारण 13 को अशुभ माना जाने लगा। एक नॉर्स मिथक के अनुसार, वालहेला में 12 देवता रात्रिभोज के लिए इकट्ठा हुए थे। जिसमें लोकी, जिन्हें आमंत्रित नहीं किया गया था। वे 13वें अतिथि के रूप में वहां पहुंचे और उन्होंने ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया जिसके कारण बाल्डर जो खुशी और प्रकाश के देवता माने जाते थे। उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद 13 को अशुभ माना जाता है। आपको बता दें 13 नंबर को असंतुलित और अपूर्ण कहा जाता है , इसलिए इस दिन कोई भी शुभ नहीं करना चाहिए। इससे व्यक्ति को अशुभ परिणाम नहीं मिलते हैं।
अंक ज्योतिष के अनुसार, जब 1 और 3 को जोड़ा जाता है 1+3 = 4, तो इसका योग 4 आता है। अंक 4 का संबंध ज्योतिष में राहु ग्रह से है। इसलिए, जिन लोगों का जन्म किसी भी महीने की 4, 13, 22 या 31 तारीख को होता है, उनका मूलांक 4 होता है और उन पर राहु का प्रभाव माना जाता है। 13 नंबर को आकस्मिकता और अचानक होने वाली घटनाओं से जोड़ा जाता है। राहु को भी ज्योतिष में अचानक होने वाले बदलाव और भ्रम का कारक माना जाता है।
आज 13 जून 2025 है, और यह शुक्रवार है, इसलिए इस दिन से जुड़ी घटनाओं को डेथ फ्राइडे के नाम से जाना जाता है।
इसे जरूर पढ़ें - क्या 13 नंबर सच में अशुभ होता है?
ऐसी मान्यता है कि मृतक की आत्मा मृत्यु के बाद 12 दिनों तक अलग-अलग योनियों को पार करती हुई पितृलोक पहुंचती है। 13वें दिन यह यात्रा पूर्ण होती है और आत्मा मुक्त हो जाती है। इसलिए, मृतक व्यक्ति की 13वीं होती है। जिसमें उसकी आत्मा की शांति के लिए मृत्युभोज कराया जाता है। 13वें दिन विशेष रूप से पिंड दान और श्राद्ध किया जाता है। इसलिए इसे अशुभ माना गया है।
इसे जरूर पढ़ें: क्या आप जानते हैं होटलों और बड़ी बिल्डिंगों में क्यों नहीं होता है 13 फ्लोर
अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं और अपना फीडबैक भी शेयर कर सकते हैं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
Image Credit- HerZindagi
यह विडियो भी देखें
Herzindagi video
हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, [email protected] पर हमसे संपर्क करें।