हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष माह दसवां महीना हैष इस दिन सूर्यदेव और भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना करने का विधान है। ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान अगर श्रीहरि और सूर्यदेव की पूजा विधिवत रूप से किया जाए, तो व्यक्ति को मनोवांछित फलों की प्राप्ति हो सकती है। आपको बता दें, पौष माह में पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का विधान है। ऐसा करने से व्यक्ति को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उत्तम परिणाम भी मिलने लग जाते हैं। अब ऐसे में इस साल पौष माह का आरंभ कब होने जा रहा है। पितरों का श्राद्ध करने के नियम क्या है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
कब से शुरू है पौष माह ?
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल पौष माह का आरंभ 16 दिसंबर से हो रहा है और इसका समापन अगले साल 13 जनवरी को होगा। इसके बाद माघ माह का आरंभ हो जाएगा। इस दौरान सूर्यदेव, भगवान विष्णु और पितरों की पूजा विधिवत रूप से करने का विधान है।
पौष माह में पितरों के श्राद्ध के लिए किन नियमों का करें पालन?
पौष माह में रविवार के दिन व्रत जरूर रखें।
पौष माह में सूर्यदेव को चावल और खिचड़ी का भोग विधिवत रूप से लगाएं। साथ ही सूर्यदेव के मंत्रों का जाप विशेष रूप से करें।
पौष माह में शुभ तिथि यानी कि अमावस्या या फिर एकादशी के दिन पितरों का श्राद्ध, पिंडदान जरूर करें।
पौष माह में जरूरतमंदों को दान जरूर करें।
पौष माह में तामसिक चीजों का सेवन करने से बचना चाहिए।
पौष माह में अगर आप सूर्यदेव को अर्घ्य दे रहे हैं, तो तांब के लोटे से ही जल दें और मंत्रों का जाप जरूर करें। इससे ग्रहदोषों से छुटकारा मिल सकता है।
पौष माह में भगवान विष्णु भी अवश्य करें।
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पौष माह का धार्मिक महत्व क्या है?
ज्योतिष शास्त्र में पौष माह की पूर्णिमा पर चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में होने के कारण इसे पौष कहा जाता है। हिंदू धर्म में सूर्यदेव सभी ग्रहों के राजा हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस महीने सूर्य के भग स्वरूप की पूजा करने का विधान है। भग का अर्थ है ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य। पौष मास में भगवान भास्कर 11 हजार किरणों से तप कर सर्दी से राहत देते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस महीने सूर्यदेव की पूजा से स्वास्थ्य अच्छा रहता है और आयु भी बढ़ती है। इसके अलावा जातक को मान-सम्मान का भी आशीर्वाद मिलता है।
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Image Credit- HerZindagi
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