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Naga Stotra Benefits,

नागपंचमी के दिन इन स्तोत्र और स्तुति का करें पाठ, नागदेव की होगी कृपा

कल यानी 9 अगस्त को नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व है, चलिए इस पर्व में पूजा के पढ़े जाने वाले स्तुति और स्तोत्र के बारे में जानते हैं।  
Editorial
Updated:- 2025-07-28, 16:39 IST

नागपंचमी का पर्व हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है, इस पर्व में नाग देवता की पूजा की जाती है। हर साल नाग पंचमी की यह पर्व सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। नाग पंचमी को लेकर हमारे एस्ट्रो एक्सपर्ट शिवम पाठक ने बताया है कि सभी जगह इस पर्व को मनाने को लेकर अलग-अलग मान्यता, विधि और विधान है। लेकिन सभी नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा कर उन्हें भोग के रूप में दूध जरूर अर्पित करते हैं। ऐसे में यदि आपने नाग पंचमी की पूजा कर ली है, तो आप पूजा के बाद नाग देवता की कृपा पाने के लिए इस स्तोत्र और स्तुति का जरूर पाठ करें।

नाग स्तोत्रम् (Naag Sarpa Stotram)

Nag Panchami Stotram,

ब्रह्म लोके च ये सर्पाः शेषनागाः पुरोगमाः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥1॥

विष्णु लोके च ये सर्पाः वासुकि प्रमुखाश्चये
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥2॥

रुद्र लोके च ये सर्पाः तक्षकः प्रमुखास्तथा ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥3॥

खाण्डवस्य तथा दाहे स्वर्गन्च ये च समाश्रिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥4॥

सर्प सत्रे च ये सर्पाः अस्थिकेनाभि रक्षिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥5॥

प्रलये चैव ये सर्पाः कार्कोट प्रमुखाश्चये ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥6॥

धर्म लोके च ये सर्पाः वैतरण्यां समाश्रिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥7॥

ये सर्पाः पर्वत येषु धारि सन्धिषु संस्थिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥8॥

ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पाः प्रचरन्ति च ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥9॥

पृथिव्याम् चैव ये सर्पाः ये सर्पाः बिल संस्थिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥10॥

रसातले च ये सर्पाः अनन्तादि महाबलाः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥11॥

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नाग देवता के लिए स्तुति मंत्र

Naga Devata Stuti

अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च। सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चैते वज्रवारका: ॥1॥

मुने: कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात्। विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डल ॥2॥

अनन्तो वासुकि: पद्मो महापद्ममश्च तक्षक:।  कुलीर: कर्कट: शङ्खश्चाष्टौ नागा: प्रकीर्तिता: ॥3॥

यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वर:। भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा ॥4॥

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Image Credit: freepik

 

 

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