महिलाओं की बीमारियां कई बार सिर्फ इसलिए बढ़ जाती हैं क्योंकि वो अपनी बीमारियों पर ध्यान नहीं देती हैं। ऐसा नहीं है कि महिलाओं की बीमारियां किसी खास वजह से होती हैं, लेकिन ध्यान ना देना और शरीर में होने वाले बदलावों को इग्नोर करना ठीक नहीं होता और कई बीमारियां तो बहुत परेशान कर देती हैं।
इस विषय के बारे में हमने सर्टिफाइड क्लीनिकल डायटीशियन, लेक्चरर, डायबिटीज एजुकेटर, मीट टेक्नोलॉजिस्ट और NUTR की फाउंडर लक्षिता जैन से बात की। लक्षिता जैन डाइट से जुड़ी कई रिसर्च का हिस्सा रह चुकी हैं और साथ ही साथ वो शरीर की बीमारियों और उनसे जुड़ी डाइट की जरूरतों पर लगातार जानकारी देती रहती हैं।
उनका कहना है कि कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जिन्हें बिल्कुल नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। महिलाएं अक्सर इन लक्षणों पर ध्यान नहीं देती हैं जो उनकी सबसे बड़ी गलती साबित हो जाती है।
महिलाओं में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों में हैं खाने-पीने से जुड़ी समस्याएं, यूटीआई, पीरियड्स की अनियमितता, एनीमिया, ओवरी में सिस्ट, पीसीओएस, ऑस्टियोपोरोसिस, थायराइड जो वजन बढ़ने की वजह से हुआ हो, थकान और मेमोरी लॉस, ब्रेस्ट कैंसर।
पतले दिखने का प्रेशर, अच्छा दिखने का प्रेशर आजकल इतना ज्यादा है कि लोगों में ईटिंग डिसऑर्डर बहुत ज्यादा होते जा रहे हैं। सबसे अजीब बात ये है कि लोगों को इसके बारे में पता ही नहीं होता है कि वो इस तरह की समस्या का शिकार हो रहे हैं। महिलाओं में ये समस्या बहुत ज्यादा बढ़ती जा रही है।
क्या करें?
अपनी आदतों या अपने दोस्तों की आदतों में ध्यान दें कि कहीं वो खाने-पीने से बार-बार मना तो नहीं करते हैं।
खाना खाने के बाद अगर उल्टी आती है, ज्यादा परेशानी होती है या फिर किसी तरह का पैटर्न दिख रहा है तो डॉक्टर से संपर्क जरूर करें।
दो तरह के ईटिंग डिसऑर्डर होते हैं-
बुलिमिया नर्वोसा- जहां महिलाएं खाने से बचती हैं या फिर खाने के बाद उल्टी कर देती हैं ताकि उनका वजन ना बढ़े। वो जरूरत से ज्यादा एक्सरसाइज करती हैं और ज्यादा खाने के बाद उपवास भी करती हैं। वो खाने के बाद उल्टी कर देती हैं और खाना शरीर से निकालने के अन्य कारण ढूंढती हैं।
एनोरेक्सिया- ये और भी खतरनाक साबित हो सकता है जहां पर लोग वजन बढ़ने से इतना घबराते हैं कि वो खुद को भूखा रखते हैं और तेज़ी से वजन कम करते हैं।
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अनियमित पीरियड से जुड़ी समस्याएं और ब्लीडिंग पैटर्न्स महिलाओं के लिए बहुत आम हैं और ये 13 साल की छोटी उम्र से शुरू हो सकते हैं। स्ट्रेस, डाइट, एक्सरसाइज आदि समस्याएं बहुत बड़ी साबित हो सकती हैं। ये सब कुछ अनियमित पीरियड्स की ओर ले जाते हैं। जैसे ही आप ये देखें वैसे ही गायनेकोलॉजिस्ट से संपर्क करें। अगर ये सिर्फ 1 महीने हुई है तो नॉर्मल हो सकती है, लेकिन अगर ये अनियमितता लगातार 2-3 महीने से चली आ रही है तो डॉक्टर से संपर्क करें।
क्या करें?
पीरियड की डेट, ब्लड की बदबू और आपको होने वाले दर्द के बारे में सोचें और ध्यान रखें। इसके बारे में डॉक्टर से बात करें और जानकारी लेने की कोशिश करें।
डाइट टिप:
अपनी डाइट में तिल, सूरजमुखी के बीज, कद्दू के बीज और अलसी के बीज शामिल करें।
एक चौंकाने वाला आंकड़ा ये है कि 70% भारतीय प्रेग्नेंट महिलाओं को खून की कमी होती है और एनीमिया उनकी समस्या का एक अहम कारण साबित होता है। ये गर्भपात का कारण भी बन सकता है।
क्या करें?
अपनी ब्लड रिपोर्ट में हीमोग्लोबिन और आयरन प्रोफाइल को जरूर चेक करें। अगर कोई गड़बड़ दिख रही है तो पहले डॉक्टर से संपर्क कर उसे अपनी पूरी मेडिकल हिस्ट्री से अवगत करवाएं।
डाइट टिप:
20 किशमिश पानी में भिगो कर सुबह लें। अगर आपको किशमिश सूट नहीं करती या डायबिटीज है तो अपने डॉक्टर से डाइट के बारे में पूछें।
अगर आपके पीरियड मिस हो रहे हैं तो डॉक्टर आपको अल्ट्रासाउंड की सलाह भी दे सकता है। सिस्ट आमतौर पर कोई समस्या पैदा नहीं करती है, लेकिन अगर इसके साथ हार्मोन का असंतुलन और पीरियड्स की अनियमितता शामिल हो तो ये PCOS में बदल सकती है। इससे इनफर्टिलिटी, पुरुषों की तरह बालों का उगना, वजन बढ़ना और पीरियड्स से जुड़ी समस्याएं शामिल होती हैं।
क्या करें?
ऐसे लक्षण दिखने पर डाइट को सुधार लें और डॉक्टर से संपर्क करें।
डाइट टिप:
अपने शरीर का 10% वजन कम करने की कोशिश करें और हार्मोनल इम्बैलेंस या पीरियड्स की समस्या को इग्नोर ना करें। अगर PCOS हो गया है तो डाइट और एक्सरसाइज के लिए प्रोफेशनल से बात करें।
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महिलाओं को हड्डियों की बीमारी होने का खतरा पुरुषों की तुलना में ज्यादा होता है क्योंकि महिलाओं में हार्मोनल समस्याएं ज्यादा होती हैं। मेनोपॉज के समय तो सीधे हड्डियों की डेंसिटी कम होती जाती है।
क्या करें?
विटामिन-डी, कैल्शियम और फास्फोरस लेवल चेक करवाएं। थायराइड की समस्या भी कैल्शियम लेवल की कमी का कारण बन सकती है।
डाइट टिप:
मेनोपॉज के दौरान या उससे पहले से हाई एस्ट्रोजन और कैल्शियम से भरे फूड्स खाना शुरू करें। फास्फोरस और विटामिन-डी से युक्त चीज़ों का भी सेवन करें।
आपके लिए ये ध्यान रखना जरूरी है कि किसी भी तरह से बीमारियों को और उनके लक्षणों को इग्नोर ना करें क्योंकि ये ज्यादा खतरनाक स्थिति साबित हो सकती है। ऐसा करने पर आपको परेशानी ज्यादा होगी। डॉक्टर से संपर्क जरूर करें और डाइट में कोई भी बड़ा बदलाव लाने से पहले अपनी मेडिकल हिस्ट्री देख लें।
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