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मां का ये मंदिर है अनोखा, यहां किसी मूर्ति की नहीं बल्कि होती है ज्योत की पूजा

इंडिया में ऐसे मंदिरों की कमी नहीं है जहां माता के लाखों भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं लेकिन एक ऐसा मंदिर है जहां माता की ज्योत के दर्शन करने के लिए लाखों लोग घंटों लाइन में लगे रहते हैं।
Her Zindagi Editorial
Updated:- 2018-10-16, 18:19 IST

इंडिया में ऐसे मंदिरों की कमी नहीं है जहां माता के लाखों भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं लेकिन एक ऐसा मंदिर है जहां माता की की ज्योत के दर्शन करने के लिए लाखों लोग घंटों लाइन में लगे रहते हैं। 

हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा 30 किलोमीटर दूर ज्वाला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर को कई लोग ज्योत वाली मां का मंदिर भी कहते हैं। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि ज्योत की पूजा होती है। अगर नवरात्रों की बात की जाएं तो इन दिनों में इस मंदिर में दर्शन करने के लिए एक दिन पहले लाइन में लगना पड़ता है। 51 शक्तिपीठ में से एक इस मंदिर में नवरात्र में इस मंदिर पर भक्तों का तांता लगा रहता है। 

तो चलिए जानते हैं ज्वाला मंदिर से जुड़ी दिलचस्प बातों के बारे में। 

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अकबर ने की थी इस ज्वाला को बुझाने की कोशिश 

बादशाह अकबर ने इस ज्वाला को बुझाने की कोशिश की थी लेकिन वो नाकाम रहे थे। यहां तक कि ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अंदर से निकलती इस ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए लेकिन वे इस ज्वाला का पता नहीं कर पाए कि यह आखिर इसके निकलने का कारण क्या है। 

दरअसल ऐसा कहा जाता है कि अकबर के मन में मंदिर में जलती हुई ज्वाला को देखकर शंका हुई। उसने ज्वाला को बुझाने के लिए नहर का निर्माण करवाया। उसने अपनी सेना को मंदिर में जल रही ज्वाला पर पानी डालकर बुझाने के आदेश दिए। लाख कोशिशों के बाद भी अकबर की सेना मंदिर की ज्वाला को बुझा नहीं पाया। 

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जब अकबर ऐसा कर नहीं पाया तो उसने अपनी हार मान ली। देवी मां की अपार महिमा को देखते हुए उसने पचास किलो सोने का छतर देवी मां के दरबार में चढ़ाया लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। आज भी बादशाह अकबर का यह छतर ज्वाला देवी के मंदिर में रखा हुआ है। 

यहां तक कि वैज्ञानिक भी इस ज्वाला के लगातार जलने का कारण नहीं जान पाए हैं।

यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। यहां पर पृथ्वी के गर्भ से 9 अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रही हैं जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया।

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ज्वाला देवी पहुंचने का रास्ता 

अगर आप ट्रेन से यात्रा करना पसंद करती हैं तो पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन की सहायता से मारंडा होते हुए पालमपुर आ सकते हैं। पालमपुर से मंदिर तक जाने के लिए बस और कार सुविधा उपलब्ध है। अगर आप फ्लाइट से ज्वाला मंदिर तक पहुंचना चाहती हैं तो नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है जो कि ज्वालाजी से 46 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां से मंदिर तक जाने के लिए कार और बस सुविधा उपलब्ध है।

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ज्वाला मंदिर के साथ करें यहां के दर्शन 

ज्वाला मंदिर का मुख्य द्वार काफी सुंदर एव भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बाये हाथ पर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्जैवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए इस नहर को बनवाया था। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है जिसके अंदर माता ज्योति के रूम में विराजमान है। 

थोड़ा ऊपर की ओर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां गुरु गोरखनाथ पधारे थे और कई चमत्कार दिखाए थे। यहां पर आज भी एक पानी का कुण्ड है जो देखने में खौलता हुआ लगता है पर वास्तव मे पानी ठंडा है। 

 

ज्वालाजी के पास ही में 4.5 किमी की दूरी पर नगिनी माता का मंदिर है। 5 किमी की दूरी पर रघुनाथ जी का मंदिर है जो राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पि है। इस मंदिर का निर्माण पांडवो द्वारा कराया गया था। 

 

 

 

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