मां के दूध को बच्चे के लिए सर्वश्रेष्ठ आहारा माना जाता हैं, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मां जो भी खाती है वह दूध के रूप में बच्चे का आहार बनता है। डॉक्टर्स भी इसी वजह से एक मां को हेल्दी डाइट लेने की सलाह देते हैं लेकिन ऐसे में क्या जब एक मां अपने बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग ना करा पाएं।
हाल ही में एक सर्वे हुआ है जिसमें बताया गया है कि न्यू मर्दस ब्रेस्टफीडिंग को छोड़कर फार्मूला फीडिंग की तरफ आकर्षित हो रही है और इसका सबसे बड़ा कारण वर्क प्लेस में ब्रेस्टफीडिंग कराने के लिए सपोर्ट और सुविधाओं की कमी होना है।
वर्किंग वुमेन और ब्रेस्टफीडिंग के संबंध में एक सर्वे कराया गया। ProEves और Medela India द्वारा किए गए सर्वे से पता चला कि एफएमसीजी, विनिर्माण, आईटी, आईटीईएस, ई-कॉमर्स, फाइनेंशियल सर्विसेज जैसे विभिन्न क्षेत्रों के तहत 38 अग्रणी संगठनों ने बताया कि जब महिलाएं अपनी मैटरनिटी लीव से वापस अपने वर्किंग प्लेस पर जाती हैं तो उन्हें ब्रेस्टफीडिंग में किसी तरह का सपोर्ट नहीं मिलता है जो उनके लिए एक चुनौती बन जाता है।
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इस सर्वे के तहत कुछ फैक्ट्स मिले जो यह बताते हैं कि कंपनिया अपनी महिला कर्मचारियों के लिए कितना प्रतिशत सपोर्ट कर रही हैं।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मदर्स से पहले छह महीनों के लिए अपने शिशुओं को ब्रेस्टफीडिंग कराने की सिफारिश की है और बच्चे के लिए स्वस्थ नींव बनाने के लिए दो साल तक ब्रेस्टफीडिंग जारी रखी है। ब्रेस्टफीडिंग कराने के लिए माताओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम 2017 को पिछले 12 सप्ताह से 26 सप्ताह तक मातृत्व अवकाश अवधि बढ़ाने के लिए भारत सरकार द्वारा पारित किया गया था।
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