मंदिर की दहलीज पर पैर रखने की क्यों होती है मनाही, जानें ज्योतिष कारण

मंदिर में प्रवेश से लेकर पूजा तक के लिए कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं। मान्यता है कि यदि आप इन बातों को ध्यान में रखती हैं तो ईश्वर पूजन का पूर्ण फल मिलता है और खुशहाली बनी रहती है। 

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मंदिर का हर एक हिस्सा बहुत पवित्र माना जाता है और इसमें प्रवेश करने के कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं। मान्यता है कि यदि आप इन सभी नियमों का पालन करते हुए भगवान का पूजन करते हैं तो सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

ऐसे ही मंदिर का एक अहम हिस्सा होता है दहलीज, जिसे अक्सर प्रवेश द्वार में बनाया जाता है। विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं में यह प्रतीकात्मक महत्व रखती है। मंदिरों के संदर्भ में, यह भीतर के पवित्र स्थान और बाहरी दुनिया के बीच सामंजस्य बनाने का प्रतिनिधित्व करती है।

ज्योतिषीय रूप से दहलीज को एक ऐसा क्षेत्र माना जाता है जिसमें अद्वितीय ऊर्जा होती है और इससे ही मंदिर के भीतर किसी भी सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। ऐसा माना जाता है कि जब भी आप मंदिर के भीतर प्रवेश करते हैं तब आपको इस दहलीज पर पैर नहीं रखने चाहिए। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें इसके कारणों के बारे में।

दहलीज होती है ऊर्जा का मुख्य क्षेत्र

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ज्योतिषीय रूप से मानें तो मंदिर के दरवाजे और दहलीज को मुख्य ऊर्जा बिंदु माना जाता है। कोई भी मंदिर दैवीय कंपन से आकर्षित वह स्थान होता है जहां स्वयं देवताओं का वास होता है। किसी भी मंदिर में एक ऊर्जा क्षेत्र होता है जो उनकी दहलीज तक फैला होता है।

मंदिर की दहलीज की इस सीमा पर कदम रखने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बाधित होता है, जिससे व्यक्ति का आध्यात्मिक संबंध प्रभावित होता है। जब भी आप मंदिर के भीतर प्रवेश करते हैं तो आपके मन में ऐसी ऊर्जा का संचार होता है जो मन-मस्तिष्क के साथ शरीर को भी ऊर्जावान बनाने में मदद करता है।

वहीं दहलीज पर यदि आप कदम रखकर मंदिर के भीतर प्रवेश करते हैं तो ये दैवीय ऊर्जाओं का अपमान करना होता है।

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मंदिर की पवित्रता बनाए रखने के लिए दहलीज पर न रखें पैर

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मंदिर वह स्थान है दैवीय ऊर्जा का मुख्य क्षेत्र माना जाता है और हम आध्यात्मिक सांत्वना और आशीर्वाद की तलाश में इस पवित्र स्थान पर जाते हैं। आध्यात्मिक अनुभव को बढ़ाने के लिए, मंदिर परिसर में प्रवेश करने से पहले शुद्धिकरण अनुष्ठान जरूरी माना जाता है।

इसके लिए भक्त पैरों को धोकर ही मंदिर में प्रवेश करते हैं। वहीं दहलीज पर पैर रखने से बाहर की गंदगी का प्रवेश मंदिर में हो सकता है जो इस पवित्र स्थान की शुद्धता को बाधा पहुंचा सकता है। इसलिए स्वच्छता और शुद्धता को बनाए रखने के लिए मंदिर की दहलीज पर पैर रखने से मना किया जाता है।

दहलीज पर पैर न रखना ईश्वरीय क्षेत्र का सम्मान करना है

मंदिर की दहलीज पर पैर रखना मंदिर के भीतर रहने वाली दैवीय शक्तियों के अनादर के संकेत के रूप में देखा जाता है। एक सीमा बनाए रखने और इस पवित्र स्थान पर कदम न रखने से, व्यक्ति परमात्मा के निवास स्थान के रूप में मंदिर की पवित्रता के प्रति श्रद्धा को प्रदर्शित करते हैं।

यदि आप इस स्थान पर पैर रखकर मंदिर के भीतर प्रवेश करते हैं तो ये ईश्वर का अनादर करने जैसा होता है। इसलिए सम्मान और भक्ति को बनाए रखने के लिए मंदिर में प्रवेश करते समय दहलीज पर पैर रखने से बचना चाहिए।

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मंदिर की दहलीज पर पैर न रखना विनम्रता का प्रतीक

दहलीज पर पैर रखने से बचना विनम्रता और समर्पण का संकेत माना जाता है। यह मंदिर की पवित्रता को स्वीकार करने के लिए जरूरी है और यह इस बात का भी संकेत देता है कि मंदिर जैसे पवित्र स्थान पर प्रवेश करते समय आपने अपने मन के समस्त कुविचारों को बाहर छोड़ दिया है और आप साफ़ मन और शरीर के साथ मंदिर में प्रवेश कर रहे हैं। आपका यह कृत्य आध्यात्मिक संचार और आशीर्वाद के लिए अति आवश्यक माना जाता है।

नकारात्मक शक्तियों को मंदिर से बाहर रखती है दहलीज

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ऐसी मान्यता है कि किसी भी मंदिर की दहलीज बुरी या नकारात्मक शक्तियों को मंदिर से बाहर रखने के लिए एक बाधा के रूप में भी काम करती है। इस स्थान को पवित्र माना जाता है और सकारात्मक ऊर्जा का मुख्य केंद्र भी माना जाता है, इसलिए इस स्थान पर पैर न रखने की सलाह दी जाती है। यदि आप मंदिर में प्रवेश कर रहे हैं तो आप दहलीज को बिना पैर रखे हुए पार करके स्थानीय संस्कृति के प्रति सम्मान दिखाते हैं। यही नहीं आपको इस स्थान पर पैर रखने के साथ बैठने से भी मना किया जाता है, जिससे इसकी पवित्रता बनी रहे।

आपमें से अधिकांश लोग मंदिर के अंदर प्रवेश करने से पहले अपने जूते-चप्पल उतारने के बारे में तो जानते हैं, लेकिन ईश्वर के प्रति सम्मान करने के लिए दहलीज पर पैर रखे बिना मंदिर के भीतर प्रवेश करना जरूरी माना जाता है।

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Images:Freepik.com

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