एकादशी तिथि में चावल खाने की क्यों होती है मनाही, जानें क्या कहता है शास्त्र

हिंदू धर्म शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल न खाने की सलाह दी जाती है। आइए इससे जुड़े कुछ तथ्यों और इसके ज्योतिष और वैज्ञानिक कारणों के बारे में। 

 

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हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो व्यक्ति भी व्रत और उपवास करता है उसकी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। वहीं शास्त्रों में लिखे नियमों के अनुसार इस दिन चावल खाने की मनाही होती है।

मान्यता यह भी है कि जो व्यक्ति इस दिन चावल खाता है उसे विष्णु पूजन का पूर्ण फल नहीं मिलता है। यहीं नहीं चावल का उपभोग करने वाला पाप का भागी बनता है। दरअसल शास्त्रों में ऐसी न जानें कितनी बातों का जिक्र है जिनका पता लगा पाना मुश्किल है और ज्योतिष एक्सपर्ट उन बातों की सच्चाई के बारे में बता पाते हैं।

ऐसी ही एक बात है एकादशी तिथि में चावल न खाना। आइए ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकांत वत्स जी से जानें एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित क्यों है और इसके उपभोग से क्या नुकसान हो सकते हैं।

एकादशी के दिन चावल खाने की मनाही क्यों

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शास्त्रों की मानें तो जो व्यक्ति इस दिन चावल का एक भी दाना खाता है उसे मुक्ति नहीं मिलती है और वो अगले जन्म में जीव का रूप धारण करता है। यदि हम शास्त्रों और ज्योतिष की बात करें तो इस दिन चावल खाने से व्यक्ति के लिए मुक्ति के द्वार बंद हो जाते हैं।

यहीं नहीं चावल खाना इस दिन पाप के समान माना जाता है और यदि आपके घर में कोई भी व्यक्ति एकादशी का उपवास करता है तो चावल के साथ तामसिक भोजन खाना भी वर्जित होता है।

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शास्त्रों में प्रचलित कथा

राधा कान्त वत्स जी बताते हैं कि शास्त्रों में प्रचलित एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में महर्षि मेधा ने एक बार यज्ञ में आए हुए एक भिखारी का अपमान कर दिया जिसकी वजह से माता दुर्गा अत्यंत नाराज हो गईं। माता को मनाने और प्रायश्चित के लिए महर्षि मेधा ने अपना शरीर त्याग दिया।

शरीर त्यागने के बाद उसके अंश धरती में समा गए और उस प्रायश्चित से प्रसन्न होकर माता दुर्गा ने महर्षि को एक आशीष दिया कि उनके अंग भविष्य में अन्न के रूप में धरती से उगेंगे। महर्षि के पृथ्वी पर दबे हुए अंश चावल और जौ अन्न के रूप में प्रकट हुए।

उस दिन एकादशी तिथि थी और तभी से चावल और जौ को जीव माना गया। यही वजह है कि एकादशी तिथि को चावल खाना जीव का उपभोग करने के समान माना जाता है और इस दिन चावल खाने की मनाही होती है।

एकादशी में चावल खाना मांसाहार के समान

eating rice is not good in ekadashi

पौराणिक कथा की मानें तो एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु का व्रत उपवास किया जाता है और जो व्यक्ति इस दिन चावल खाता है उसे मांसाहार खाने के समान माना जाता है। ऐसे व्यक्ति की कोई भी पूजा स्वीकार्य नहीं होती है।

क्या हैं वैज्ञानिक कारण

एकादशी के दिन चावल न खाने के वैज्ञानिक कारणों की बात की जाए तो चूंकि चावल में पानी की मात्रा अधिक होती है और पानी का जुड़ाव चन्द्रमा से होता है। चंद्रमा का प्रभाव पानी में अधिक होता है और व्यक्ति के शरीर का 70 प्रतिशत हिस्सा भी पानी ही होता है।

चंद्रमा मस्तिष्क और हृदय को प्रभावित करता है चूंकि इसे मन का कारक माना जाता है। चंद्रमा के प्रभाव की वजह से ही एकादशी के दिन चावल खाने से व्यक्ति को मानसिक और हृदय संबंधी बीमारियां हो सकती हैं।

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पुराणों में है इस बात का जिक्र

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यदि हम पुराणों की मानें तो उसमें भी एकादशी के दिन चावल न खाने की सलाह दी जाती है। मान्यता है कि जो इस दिन चावल खाता है उसे मृत्योपरांत मोक्ष नहीं मिलता है। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को विशेष रूप से महत्वपूर्ण बताया जाता है इसलिए इस दिन और भी कई काम नहीं करने चाहिए।

मुख्य रूप से इस दिन किसी भी तामसिक भोजन का भोग न करें। मदिरा का सेवन इस दिन भूलकर भी न करें। एकादशी के दिन तुलसी के पौधे में जल भी न चढ़ाएं क्योंकि इस दिन तुलसी जी भी निर्जला उपवास करती हैं।

यदि हम शास्त्रों की न भी मानें तब भी कुछ वैज्ञानिक कारणों से एकादशी तिथि के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।

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images: freepik.com, pixabay.com

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