हमारे धर्म शास्त्रों में सभी संस्कारों के लिए कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक, नामकरण से लेकर अन्नप्रासन तक न जानें कितने ऐसे नियम हैं जिनका पालन मानव जीवन के लिए जरूरी माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि यदि आप इन नियमों का बखूबी पालन करते हैं तो घर में सदैव खुशहाली बनी रहती है। ऐसे ही पूजा-पाठ को लेकर भी कई विशेष नियम हैं और यही नहीं कुछ विशेष अवसरों पर पूजा-पाठ की मनाही भी होती है।
ऐसे ही एक मान्यता है कि यदि परिवार के किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो पूजा पाठ वर्जित होता है। दरअसल ये नियम शायद हम सभी मानते हैं और किसी परिवारीजन की मृत्यु के कुछ दिनों तक घर में पूजा-पाठ नहीं करते हैं, लेकिन इसके सही कारणों का हमें शायद पता नहीं होता है। आइए योर एस्ट्रो स्पीक के फाउंडर डॉ राहुल सिंह जी से जानें शास्त्रों में लिखी इस बात के पीछे के कारणों के बारे में विस्तार से।
मृत्यु के बाद 12 दिन का समय सूतक काल
हिंदू धर्म में किसी की मृत्यु के 12 दिन बाद तक के समय को सूतक काल माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस समय अंतराल में वो व्यक्ति आत्मा के रूप में आस-पास मौजूद होता है जिसकी मृत्यु हुई है।
सूतक काल में किसी भी शुभ काम को करने की मनाही होती है और पूजा-पाठ भी न करने की सलाह दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान परिवार के सभी लोगों को मृतक की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और गरुण पुराण का पाठ करना चाहिए।
परंपरागत रूप से, सूतक काल की अवधि सभी जातियों के लोगों के लिए अलग हो सकती है यह अवधि 10 से लेकर 30 दिनों तक होती है। अतः अपनी परंपरा के अनुसार उस निश्चित अवधि में घर में ईश्वर की पूजा नहीं की जाती है।
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सूतक काल का पालन क्यों है जरूरी
ऐसा माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद परिवार के लोग सूतक काल के नियमों का पालन नहीं करते हैं तो मृतक की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। गरुड़ पुराण के अनुसार जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो परिवार को बारह दिनों तक सूतक का पालन करना चाहिए। इस दौरान घर में पूजा -पाठ न करके किसी पंडित की उपस्थिति में गरुड़ पुराण का पाठकराना चाहिए और सात्विक धर्म का पालन करना चाहिए।
अलग संस्कृतियों में अलग कारण
कुछ संस्कृतियों या धार्मिक परंपराओं में, यह माना जाता है कि शोक की अवधि के दौरान पूजा या अन्य धार्मिक अनुष्ठान करना उचित नहीं हो सकता है।
इसके कुछ विशेष कारण हो सकते हैं जैसे लोगों की मान्यता है कि शोक की अवधि के दौरान, पूजा-पाठ उत्सव या अन्य गतिविधियों में शामिल होने के बजाय मृतक की स्मृति को शोक और सम्मान देने पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। इसे प्रतिबिंब और शोक का समय माना जाता है और पूजा करने को भी इसके विरोधाभासी के रूप में देखा जा सकता है।
परिवार में किसी की मृत्यु से आध्यात्मिक अशुद्धता
कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु और उसके बाद के शोक की अवधि को आध्यात्मिक अशुद्धता का समय माना जाता है। इस समय के दौरान यह माना जाता है कि परिवार आध्यात्मिक रूप से दूषित है और पूजा करना या अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होना अनुचित है।
मृत्यु के तुरंत बाद की अवधि अक्सर भावनात्मक रूप से आवेशित होती है और परिवार के सदस्यों का प्राथमिक ध्यान दुःख से निपटने और एक दूसरे को सहायता प्रदान करने पर हो सकता है इस वजह से आपका ध्यान पूजा-पाठ में केंद्रित न हो। यही वजह है कि इस दौरान पूजा न करने की सलाह दी जाती है।
पितरों की पूजा का समय
ऐसी मान्यता है कि किसी परिवारीजन की मृत्यु होने पर यह समय भगवान् की पूजा की जगह पूर्वजों की पूजा को प्राथमिकता देने का होता है। हिंदू धर्म में, इस दौरान तर्पण आदि करने की प्रथा है और इससे पितरों को प्रसन्न किया जाता है।
कुछ हिंदू परमपराओं के अनुसार शोक की अवधि के दौरान सामान्य पूजा-पाठ पूजा करने से पितृ पूजा में बाधा आ सकती है, इसलिए इस दौरान ईश्वर की पूजा न करने की सलाह दी जाती है।
क्या कहता है विज्ञान
यदि हम विज्ञान की मानें तो ऐसा कोई नियम नहीं है कि आप उस घर में पूजा-पाठ नहीं कर सकते जहां किसी परिवारीजन की मृत्यु हुई हो। हालांकि ज्योतिष में इसका एक बड़ा कारण यही माना जाता है कि इस दौरान मन केंद्रित नहीं हो पाता है क्योंकि मृतक की स्मृति में ही मन मस्तिष्क संलग्न होता है, इसी वजह से ईश्वर की पूजा कुछ दोनों तक न करने की सलाह दी जाती है।
परिवार में किसी व्यक्ति की मृत्यु के कुछ दिनों बाद तक पूजा न करने के अलग-अलग तर्क हैं। हालांकि आपको किसी भी परंपरा का पालन करते समय अपनी संस्कृति और घर से बड़ों की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
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