हिन्दू धर्म शास्त्रों में ऐसे कई शब्द हैं जो बेहद अलग हैं और जिन्हें आमतौर पर साधु-संतों द्वारा या पुराने जमाने के लोगों द्वारा ही बोला जाता है। हिन्दू ग्रंथों में खाने पीने की चीजों के भी नाम काफी रोचक और भिन्न हैं। यहां तक कि खाने-पीने की चीजों के नामों को रामायण के आधार पर रखा गया है।
उदाहरण के तौर पर ग्रंथों में मिर्च को लंका कहा गया है। यानी कि अगर जहां हम बोलते हैं कि खाने में मिर्च ज्यादा है तो वहीं, साधु-संतों द्वारा ग्रंथों की भाषा में बोला जाता है कि खाने में लंका ज्याद है। ठीक ऐसे ही एक और खाने की चीज है 'नमक' जिसे हिन्दू धर्म ग्रंथों में रामरस कह कर बुलाया जाता है।
ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि आखिर क्यों नमक को रामरस कहा जाता है। इसके अलावा, यह भी बताया कि अन्य खाने की चीजों के हिन्दू धर्म ग्रंथों में क्या नाम हैं और किस आधार पर इन नामों को रखा गया है। तो आइये जानते हैं नमक और अन्य खाद्य पदार्थों के बारे में विस्तार से।
नमक का नाम रामरस कैसे पड़ा?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक दीन-हीन व्यक्ति राम जी की नगरी में पहुंचा। वह व्यक्ति कई दिनों से भूखा था। अयोध्या में जब उसने प्रवेश किया तब बहुत ऐसे लोग थे जिन्होंने उस व्यक्ति को खाने के लिए भोजन दिया लेकिन उसने किसी भी व्यक्ति के घर का खाना खाने से मना कर दिया।
श्री राम को पता चला कि एक व्यक्ति है जो अयोध्या में आया है और उसकी स्थिति बहुत दयनीय है लेकिन इसके बाद भी वह किसी के यहां से कुछ भी नहीं खा रहा, तब श्री राम उस व्यक्ति के लिए खुद अपने महल से भोजन लेकर उसके पास पहुंचे। श्री राम ने उस व्यक्ति को भोजन प्रदान किया।
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उस व्यक्ति ने श्री राम की ओर देखा और एक निवाला उठाकर खाया। श्री राम ने जब उससे पूछा कि उन्होंने भोजन दिया तो खा लिया लेकिन किसी और के यहान का खाना क्यों नहीं खाया तब उसने उत्तर दिया कि वह 100 योजन दूर यानी कि 1200 किलोमीटर चलकर आया राम दर्शनों के लिए।
यह सुन श्री राम की आंखों से आंसू आ गये और उनकी आंख के आंसू उस व्यक्ति के भोजन में जा गिरे। तब उस व्यक्ति ने श्री राम को बताया कि वह जो भोजन लाये थे उसमें स्वाद नहीं था लेकिन जब श्री राम के आंसू उसमें गिरे तो उया भोजन में रस आ गया जिसे उस व्यक्ति ने चाव से खाया।
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तभी से नमक को रामरस के रूप में जाना जाने लगा। शास्त्रों के अनुसार, नमक को पहले के समय में संस्कृत भाषा में 'लवण' कहत थे और त्रेता युग के बाद से इसे रामरस के नाम से जाना जाने लगा। इसके अलावा और भी शब्द हैं जिनके नाम पहले के समय में बहुत अलग हुआ करते थे।
पहले के समय में धर्म ग्रंथों के अनुसार, हल्दी को 'रंग बदल' कहकर बुलाया जाता था क्योंकि हल्दी को किसी भी खाद्य पदार्थ में डालने के बाद उसके रंग में परिवर्तन हो जाता है। पहले पके हुए चावलों को 'महाप्रसाद' कहा जाता था। इसके अलावा, रोटी को टिकर कहकर बुलाते थे।
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image credit: herzindagi
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