नंदी का एक पैर क्यों उठा रहता है?

हिंदू धर्म में नंदी देव को कैलाश का द्वारपाल कहा जाता है। यह भगवान शिव के वाहन भी हैं। वहीं पुराणों के अनुसार नंदी भगवान शिव के अवतार भी हैं। 

Why one leg of Nandi remain raised

(why one leg of nandi remain raised) सनातन धर्म में सभी देवी-देवताओं के अपने-अपने वाहन होते हैं। जैसे भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ हैं, माता लक्ष्मी के वाहन उल्लू हैं। भगवान गणेश के वाहन मूषक हैं। उसी तरह भगवान शिव की सवारी नंदी हैं। आपने शिव मंदिरों में देखा होगा कि भगवान शिव के साथ-साथ बैल रूपी नदी की मूर्ति भी स्थापित है। भगवान शिव के साथ नंदी की पूजा करना बेहद जरूरी होता है। शिव जी नंदी के माध्यम से ही भक्तों की पुकार सुनते हैं। क्या आप जानते हैं नंदी का एक पैर क्यों उठा रहता है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

जानें नंदी का एक पैर क्यों उठा रहता है? (one leg of Nandi remains raised?)

nandi at home

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नंदी जी का पैर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। इतनी ही नहीं स्वयं नंदी जी को धर्म का प्रतीक हैं। इसलिए कहा जाता है कि भगवान शिव धर्म पर आरूढ़ हैं। नंदी जी ने धर्म रुपी दाहिने पैर को बाहर रखा है। अर्थात धर्म के महत्व को दर्शाता है। जबकि काम और मोक्ष रूपी पैर को अंदर रखते हुए यह संदेश दिया है कि धर्म का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होना चाहिए।

जानें नंदी कैसे बने शिव जी की सवारी? (how Nandi became the vehicle of Lord Shiva)

idol of nandi at shiv temple

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मचारी व्रत का पालन कर रहे ऋषि शिलाद को भय होने लग था कि उनकी मृत्यु के बाद उनका वंश समाप्त हो जाएगा। इस भय के चलते उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या भी की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शिलाद ऋषि को दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। तब शिलाद ऋषि ने शिव से कहा कि उसे ऐसा पुत्र चाहिए। जिसे मृत्यु ना छू सके और उस पर आपकी कृपा बनी रहे।

तब भगवान शिव (भगवान शिव पूजा) ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा कि उसे ऐसे ही पुत्र की प्राप्ति होगी और अगले दिन ऋषि शिलाद एक खेत से गुजर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि खेत में एक नवजात बच्चा पड़ा हुआ है। शिशु काफी सुंदर था। उन्होंने सोचा कि इतने प्यारे बच्चे को कौन छोड़कर चला गया है। तब शिवजी की आवाज आई कि शिलाद यही तुम्हारा पुत्र है।

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यह सुनकर ऋषि शिलाद बहुत प्रसन्न हुए और बच्चे को देखभाल करने अपने साथ लेकर चले गए। उस बच्चे का नाम नंदी रखा। एक बार की बात है कि ऋषि शिलाद के घर पर दो सन्यासी पहुंचे। उनका खूब आदर सत्कार हुआ। इससे प्रसन्न होकर सन्यासियों ने ऋषि शिलाद को दीर्घायु का आशीर्वाद दे दिया, लेकिन नंदी के लिए एक शब्द भी नहीं बोला। ऋषि शिलाद ने सन्यासियों से इसका कारण पूछा कि अपने मेरे पुत्र के लिए क्यों नहीं कुछ बोला। तब सन्यासियों ने बताया कि नंदी की उम्र कम है, इसलिए हमने इसे कोई आशीर्वाद नहीं दिया।

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यह बात नंदी ने सुन ली और ऋषि शिलाद से कहा कि मेरा जन्म भगवान शिव की कृपा से हुआ है और वे ही मेरी रक्षा करेंगे। इसके बाद नंदी भगवान शिव (भगवान शिव मंत्र) की स्तुति करने लगे और कठोर तपस्या भी किया। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और नंदी को अपना प्रिय वाहन बना लिया। इसके बाद से भगवान शिव के साथ नंदी की भी पूजा की जाने लगी।

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Image Credit- Freepik

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