हर साल राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस धन्वंतरि जयंती या धनतेरस के दिन मनाया जाता है। इस साल राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस 13 नवंबर को है। राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस की शुरुआत साल 2016 में हुई थी। पहला आयुर्वेद दिवस 28 अक्टूबर 2018 को धनतेरस के दिन मनाया गया था। आयुर्वेद कई सालों से हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए अपनी अच्छी भूमिका निभाता आ रहा है। आयुर्वेद चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए हर साल राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है। आइए जानें इस दिन का धन्वन्तरि जी से क्या संबंध है और धन्वन्तरि के जन्म की कथा क्या है।
धनतेरस पर क्यों मनाते हैं राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस
भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद और आरोग्य का देवता माना जाता है। राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस हर साल धनतेरस के दिन मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। समुद्र मंथन से निकले भगवान धन्वंतरि के हाथों में अमृत का कलश था। इसी वजह से दिवाली के दो दिन पहले भगवान धन्वंतरिके जन्मदिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है और आयुर्वेद के देवता कहे जाने वाले भगवान धन्वंतरि के जन्मदिन यानी धनतेरस के दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के उद्देश्य
- आयुर्वेद को मुख्य धारा में आगे बढ़ाने का प्रयास करना
- आयुर्वेद की ताकत और इसके अनूठे उपचार सिद्धांतों पर ध्यान देना।
- आज की पीढ़ी में आयर्वेद के प्रति जागरूकता की भावना पैदा करना और समाज में चिकित्सा के आयुर्वेदिक सिद्धांतों को बढ़ावा देना।
- इस बार आयुर्वेद दिवस का मुख्य विषय है-कोविड-19 के लिए आयुर्वेद
धन्वन्तरि के जन्म और आयुर्वेद दिवस की कथा
धनतेरस के दिन को धन्वन्तरि जयंती के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन धनतेरस पर धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। धन्वन्तरि को हिन्दू धर्म में एक देवता के रूप में माना जाता है। धन्वन्तरि एक महान चिकित्सक के रूप में अवतरित हुए थे जिन्हें देव पद प्राप्त हुआ था। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये भगवान विष्णु के अवतार समझे जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार इनका अवतरण समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। धन्वन्तरि जी कार्तिक मास की त्रोयदशी यानी कि धनतेरस वाले दिन अमृत का कलश लेकर समुद्र से बाहर आये थे। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था। धन्वन्तरि को भगवान विष्णु का 12 वां अवतार कहा जाता है जिनकी चार भुजायें हैं। धन्वन्तरि ऊपर की दोनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। इन्हें आयुर्वेद की चिकित्सा करने वाले वैद्य या आरोग्य का देवता कहा जाता है। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। आयुर्वेद चिकित्सा का भी जन्म धन्वन्तरि के समुद्र मंथन से निकलने के साथ ही हुआ, इसी वजह से धन्वन्तरि के जन्म या अवतरण दिवस वाले दिन ही राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है।
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Image Credit: free pik and Pinterest
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