सिर्फ सरनेम ही नहीं लड़कियों का नाम भी दिया जाता है बदल, जानें सिंधी शादियों का यह रिवाज

लड़कियों का सरनेम शादी के बाद बदल जाता है यह तो आपने सुना होगा, लेकिन क्या आपको पता है सिंधी शादियों में उनका नाम भी बदल दिया जाता है। 

Why sindhi girls change their names

सिंधी शादियों के रिवाज आम फिल्मी शादियों जैसे नहीं होते हैं। उदाहरण के तौर पर सिंधी शादियों में 7 की जगह 4 फेरे ही लिए जाते हैं। यहां पति के नाम और कुंडली के हिसाब से लड़की का सरनेम ही नहीं नाम भी बदल दिया जाता है। यह सिंधी कम्युनिटी के मुख्य रिवाजों में से एक माना जाता है। सरनेम तक तो ठीक था, लेकिन नाम भी बदल लेने का यह रिवाज बहुत पुराना है और सिंधी कम्युनिटी की पहचान का एक हिस्सा भी है।

मैंने खुद एक सिंधी शादी अटेंड की थी जिसमें ऐसा रिवाज देखकर थोड़ा सा अचंभा हुआ था। उस शादी में लड़की ने पहले से ही अपना नया नाम चुन रखा था। पंडित जी ने कुंडली और पति के नाम को देखकर नए नाम का अक्षर बता दिया था। हालांकि, उसने आधिकारिक डॉक्युमेंट्स और सोशल मीडिया पर अपना नाम नहीं बदला, लेकिन करीबियों के बीच उसका नया नाम ही प्रचलित हो गया। एक और सहेली को दोबारा पासपोर्ट बनवाना पड़ा क्योंकि उसने आधिकारिक दस्तावेजों में अपना नाम और सरनेम दोनों ही बदल लिए थे।

आखिर क्या है इस रिवाज का मतलब?

सिंधी शादी को तब तक पूरा नहीं माना जाता है जब तक दुल्हन का नया नाम पति के नाम के साथ जुड़ ना जाए। इस रिवाज को दुल्हन के नए जन्म के तौर पर देखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि शादी के बाद दुल्हन का नया जीवन शुरू होता है और उसे मायके की सभी यादों को छोड़कर आगे बढ़ना है। उसका घर पराया हो जाता है और पति का घर ही उसका नया बसेरा है। ऐसे में पुरानी सभी चीजों के साथ अपना नाम तक दुल्हन को छोड़कर आगे बढ़ना होता है।

sindhi weddings and rituals

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प्राचीन काल से चले आ रहे इस रिवाज में अब धीरे-धीरे बदलाव होने लगा है। जैसे कुछ लड़कियां इस रिवाज को निभाती तो हैं, लेकिन खुद की पहचान नहीं मिटातीं। इंदौर की प्रियंका लालवानी (बदला हुआ नाम) ने अपना नाम तो बदला, लेकिन आधिकारिक तौर पर अपनी पहचान नहीं। प्रियंका का कहना है, "मेरी मौसी के डॉक्युमेंट्स उनकी शादी के कई सालों बाद तक पूरी तरह से बदल नहीं पाए थे। मौसी को अपने बेटे के पास विदेश जाना था और उनका पासपोर्ट ही नहीं बन पाया। उसके लिए दो बार न्यूज़ पेपर में इश्तेहार छपवाना पड़ा कि इस महिला का नाम बदल गया है।"

ऐसी समस्याएं कई महिलाओं को फेस करनी पड़ती हैं। नाम बदलने की इस प्रक्रिया का मतलब है पूरी पहचान का बदल जाना। हालांकि, इसे एक रिवाज के तौर पर देखा जाता है पर कई लोग अब धीरे-धीरे इसे बस एक रस्म की तरह मानने लगे हैं।

rituals of name change

क्या वाकई नाम बदलने की है जरूरत?

अगर पौराणिक मान्यताओं के हिसाब से देखें, तो यह एक बहुत महत्वपूर्ण रिवाज माना जाएगा, लेकिन अगर 21वीं सदी के हिसाब से देखें, तो अब भारत में लीगल तौर पर नाम ना बदलने की बात भी होने लगी है। 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह घोषणा की थी कि शादी के बाद महिलाओं को पासपोर्ट में अपना सरनेम चेंज करवाने की जरूरत नहीं होगी। जब सरनेम को लेकर इतनी बात हो रही है, तो नाम को लेकर भी होनी ही चाहिए।

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प्रियंका अकेली ऐसी नहीं हैं जिन्होंने डॉक्युमेंट्स में अपना नाम ना बदलवाने का फैसला लिया। ऐसी कई और लड़कियां हैं जिन्हें यही सही लगता है। अब धीरे-धीरे इस रिवाज को लेकर लोग वोकल होने लगे हैं। आप सिंधी कम्युनिटी के रिवाजों से जुड़ी सोशल मीडिया पोस्ट देखेंगे, तो आपको अंतर साफ नजर आएगा। यही नहीं Quora और Reddit जैसे ऑनलाइन फोरम में भी लोग अपनी ओपीनियन देने लगे हैं।

सरनेम के साथ-साथ नाम भी बदलने के इस रिवाज को लेकर आपकी क्या राय है? हमें अपना जवाब आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

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