भगवान धन्वंतरि हिंदू धर्म में एक पूजनीय देवता माने जाते हैं। उन्हें एक दिव्य चिकित्सक और स्वास्थ्य और उपचार के देवता के रूप में पूजा जाता है।
पुराणों की मानें तो धन्वंतरि भगवान विष्णु का ही एक अवतार हैं। मान्यता है कि वो समुद्र मंथन के दौरान अमृत का घड़ा लेकर समुद्र के भीतर से निकले थे।
धन्वंतरि को ऐसे देवता के रूप में पूजा जाता है जो हमें स्वास्थ्य, चिकित्सा का ज्ञान और दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं। प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान, आयुर्वेद के साथ उनका जुड़ाव उन्हें 'आयुर्वेद के पिता' के रूप में दिखाता है। अगर हम आयुर्वेद की पद्यति की बात करें तो कई तरह की चिकत्सा और आयुर्वेद की दवाइयों की खोज धन्वंतरि ने ही की थी।
चूंकि जिस दिन समुद्र मंथन से धन्वंतरि बाहर निकले थे उस दिन धनतेरस की तिथि थी और इसी वजह से आज भी धनतेरस को भगवान धन्वंतरि के जन्मदिन की तरह मनाया जाता है। आइए आपको बताते हैं भगवान धन्वंतरि के बारे में और उन्हें आयुर्वेद का देवता क्यों कहा जाता है, इसके बारे में विस्तार से।
भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति की पौराणिक कथा
आहार हम भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति की बात करें तो पुराणों में बताया जाता है कि उनकी उत्पत्ति समुद्र मंथन से जुड़ी है जहां देवताओं और असुरों ने विभिन्न दिव्य शक्तियों की प्राप्ति के लिए क्षीर सागर का मंथन किया गया था।
समुद्र मंथन के दौरान कई चीजें निकलीं और उन्हीं के बीच धन्वंतरि भी एक हाथ में अमृत कलश लेकर और दूसरे हाथ में औषधीय जड़ी-बूटियां लेकर समुद्र से बाहर आए। ऐसा कहा जाता है कि धन्वंतरि जो अमृत कलश लेकर निकले थे उसकी देवताओं और राक्षसों दोनों ने मांग की थी क्योंकि इससे अमृत्व का वरदान मिल सकता था। भगवान धन्वंतरि के अवतरण को आयुर्वेद की शुरुआत से जोड़ा जाता है क्योंकि उन्होंने कई औषधियों का ज्ञान करवाया। जिसका उद्देश्य शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करके बीमारियों को रोकना और ठीक करना होता है।
भगवान धन्वंतरि का स्वरुप कैसा है?
पारंपरिक कथाओं के अनुसार भगवान धन्वंतरि को चमकदार रंग के साथ चित्रित किया गया है, जो स्वास्थ्य और जीवन शक्ति का प्रतीक हैं। उनकी चार भुजाएं हैं, प्रत्येक हाथ में कुछ प्रतीकात्मक वस्तुएं हैं जो यहां बताई जा रही हैं-
अमृत का कलश- धन्वंतरि के एक हाथ में अमृत कलश है जो जीवन और दीर्घायु का प्रतिनिधित्व करता है।
औषधीय जड़ी-बूटियां - धन्वंतरि के दूसरे हाथ में उपचार में प्रकृति की शक्ति का प्रतीक हैं।
शंख- धन्वंतरि के तीसरे हाथ में शंख है जो पवित्र ज्ञान और पवित्रता के प्रसार का प्रतीक है।
चक्र- धन्वंतरि के चौथे हाथ में चक्र है जो बीमारी और खराब स्वास्थ्य से सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है।
आभूषणों और दिव्य पोशाक से सुसज्जित धन्वंतरि का दीप्तिमान रूप उस सद्भाव और संतुलन का उदाहरण है जिसे आयुर्वेद चिकित्सा सभी व्यक्तियों में देखना चाहती है।
भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का पिता क्यों कहा जाता है?
धन्वंतरि को आयुर्वेद का पिता कहा जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उन्होंने इस प्राचीन विज्ञान का ज्ञान ऋषियों को दिया था, जिन्होंने बाद में इसे ग्रंथों में संकलित किया। 'आयुर्वेद' शब्द का अर्थ जीवन और दीर्घायु का विज्ञान होता है, जो जड़ी-बूटियों, योग, आहार और जीवनशैली में बदलाव सहित प्राकृतिक तरीकों से बीमारियों की रोकथाम और उपचार पर ध्यान केंद्रित करता है।
भगवान धन्वंतरि ने चिकित्सा पर अपनी शिक्षा कई ऋषियों को भी दी और उन्होंने आयुर्वेद से बीमारियों की रोकथाम का इलाज ढूंढा। सुश्रुत संहिता को आयुर्वेद के मूलभूत ग्रंथों में से एक माना जाता है, जिसमें भगवान धन्वंतरि के आयुर्वेदिक ज्ञान की कई बातें बताई गई हैं। इसमें शल्य चिकित्सा तकनीक, औषधीय पौधे, विषहरण विधियां और उपचार भी शामिल हैं।
चूंकि आयुर्वेद चिकित्सा भगवान धन्वंतरि की शिक्षाओं में निहित है और समग्र दृष्टिकोण का उपयोग करके शरीर के भीतर संतुलन बनाए रखने का प्रयास करता है। यह संतुलन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण की अवधारणा के अनुरूप होता है। इन्हीं कारणों से धन्वन्तरि को आयुर्वेद चिकित्सा का जनक या पिता कहा जाता है और कुछ विशेष अवसरों पर इनकी पूजा भी की जाती है।
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धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा का महत्व
पांच दिवसीय दिवाली उत्सव के पहले दिन धनतेरस का पर्व होता है, जिसे भगवान धन्वंतरि के अवतरण दिवस के रूप में पूजा जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है।
धनतेरस को धन्वंतरि त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है यह पर्व भगवान से स्वास्थ्य, धन और समृद्धि का आशीर्वाद लेने का एक शुभ समय माना जाता है। भक्तों का मानना है कि इस दिन धन्वंतरि की पूजा करने से पूरे वर्ष अच्छा स्वास्थ्य बना रहता है और कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है। यही नहीं भगवान धन्वन्तरि की पूजा से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और खुशहाली आती है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान धन्वंतरि का जन्म समुद्र मंथन से आयुर्वेद चिकित्सा को बढ़ाने के लिए हुआ था इसी वजह से धनतेरस पर इनकी पूजा का विधान है।
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