श्री वृंदावन धाम भगवान कृष्ण की लीला स्थली है, वृंदावन का उल्लेख हरिवंश पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। श्रीमद्भागवत पुराण की कथा के अनुसार गोकुल में जब कंस का आतंक बढ़ गया, तब नंद बाबा पूरे गोकुल वासियों के साथ वृंदावन धाम में रहने के लिए आए थे।
वृंदावन में करीब 5000 से भी अधिक मंदिर हैं, कुछ मंदिर सैकड़ों साल से पुराने हैं, तो कुछ का निर्माण कुछ साल पहले हुआ है। 1515 में जब चैतन्य महाप्रभु वृंदावन आए थे, तब उन्होंने यहां की कई मंदिरों की खोज की थी। 1515 से लेकर अब तक में कई मंदिर नष्ट हो चुके हैं और कई नए मंदिरों के निर्माण हुआ है। ये तो रही वृंदावन धाम और वहां के मंदिरों की बात, लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि वृंदावन में कितने ठाकुर जी हैं, यदि नहीं तो आज हम आपको इस लेख में बताएंगे।
गोविंद देव जी जयपुर
ओमर के राजा मानसिंह ने वृंदावन में गोविंद देव जी का भव्य मंदिर बनवाया, जहां गोविंद देव जी 80 साल तक विराजे। लेकिन जब औरंगजेब के शासन काल में ब्रज धाम पर हमले हुए, तब गोविंद देव जी के भक्त उन्हें जयपुर ले गए। तब से गोविंद देव जी जयपुर के राजकीय मंदिर में विराजमान हैं।
मदन मोहन जू करौली
मुगल शासन के दौरान जब ब्रज के मंदिरों और धर्म स्थानों में हमले हो रहे थे, तब भक्त मदन मोहन जी को बचाने के लिए राजस्थान करौली ले गए। करौली के राजा गोपाल सिंह ने अपने महल के पास मदन मोहन जी के लिए एक भव्य मंदिर बनवाया और उन्हें वहां स्थापित किया।
गोपीनाथ जी जयपुर
गोपीनाथ जी की मूर्ति यमुना किनारे बंसीवट पर संत परमानंद भट्ट को मिली थी, जिसे उन्होंने सेवा के लिए मधु गोस्वामी को सौंप दी थी। बाद में रायसल के राजपूतों में गोपीनाथ जी के लिए वृंदावन में मंदिर बनाई, लेकिन औरंगजेब के शासन काल में हो रहे आक्रमण के चलते गोपीनाथ जी को जयपुर ले जाया गया। तभी से गोपीनाथ जी जयपुर की पुरानी बस्ती स्थित मंदिर में विराजित हैं।
जुगल किशोर जी पन्ना
जुगल किशोर जी की मूर्ति हरिराम जी को वृंदावन के किशोरवन में मिली थी। उन्हें वहीं प्रतिष्ठित किया गया, बाद में ओरछा के राजा ने वहां भव्य मंदिर बनवाया। सालों बाद जब औरंगजेब के शासनकाल में वृंदावन के मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, तब भक्त जुगल किशोर जी को ओरछा के पास पन्ना (मध्य प्रदेश) ले गए।
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राधारमण जी वृंदावन
श्रीला गोपाल भट्ट गोस्वामी को गंडक नदी में एक शालिग्राम शिला मिला था, जिसे वे वृंदावन ले आए और केशीघाट के पास एक मंदिर में उन्हें प्रतिष्ठित कर दिया। भक्तों के द्वारा शालिग्राम को वस्त्र धारण न करवा पाना और किसी दर्शनार्थी ने शालिग्राम को लेकर निंदा कर दी कि चंदन लगाए हुए शालिग्राम, कढ़ी में बैंगन पक रहा हो ऐसे लगते हैं। यह सुन गोस्वामी जी बहुत दुखी हुए, लेकिन सुबह होती ही शालिग्राम से राधारमण जी का दिव्य रूप प्रकट हुआ। मुगल हमलों के बाद भी वृंदावन में यह मूर्ति विराजमान रही और हमले के दौरान भक्त राधारमण जी की मूर्ति को छिपाकर रखे।
राधावल्लभ जी वृंदावन
राधावल्लभ जी की यह मूर्ति हरिवंश जी को दहेज में मिली थी, जिसे वृंदावन के सेवा कुंज में स्थापित किया गया और बाद में सुंदरलाल भटनागर जी द्वारा बनवाए गए लाल पत्थरों की पुरानी मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया। मुगल हमले के दौरान राधावल्लभ जी को राजस्थान ले गए और बाद में फिर मूर्ति को वृंदावन लाया गया और नवनिर्मित मंदिर में भगवान की स्थापना की गई।
बांके बिहारी जी वृंदावन
स्वामी हरिदास जी की भक्ति से प्रसन्न होकर बांके बिहारी जी निधिवन में प्रकट हुए, जहां स्वामी जी ने बिहारी जी को वहीं प्रतिष्ठित कर दिया। मुगल आक्रमण के दौरान भक्त उन्हें भरतपुर ले गए। बाद में वृंदावन के भरतपुर वाला बगीचा नामक स्थान में मंदिर निर्माण कर बांकेबिहारी जी को फिर से प्रतिष्ठित किया गया।
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Image Credit: Freepik, herzindagi
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