किस भारतीय प्रधानमंत्री ने दूसरे देशों से छपवाई थी अपनी करेंसी...जानें क्यों लेना पड़ा था ऐसा फैसला

Indian Historical Facts in Hindi: भारतीय इतिहास में एक ऐसा भी प्रधानमंत्री रहा है, जिसने इंडियन करेंसी को विदेशों में छपवाया। ऐसे में सवाल ये बनता है कि आखिर भारत को नोट छपवाने के लिए दूसरे देशों की मदद लेनी क्यों पड़ी? आइए जानें, आखिर क्यों भारत को विदेशों में नोट छपवाने पड़े थे? 
  • Nikki Rai
  • Editorial
  • Updated - 2025-03-10, 17:44 IST
Indian Historical Facts in Hindi

Which Indian Prime Minister Had His Currency Printed By Other Countries: 1997 के मौजूदा प्रधानमंत्री ने देश के लिए एक ऐसा गुपचुप फैसला लिया कि उसकी भनक काफी लंबे वक्त तक किसी को नहीं थी। यह वही साल था, जब भारत के इतिहास में पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने भारतीय करेंसी को विदेश में छपवाने का फैसला किया था। इस बात का पता किसी को नहीं था कि उनकी खुद की भारतीय किसी और देश से छपकर आ रही है। आइए जानें, आखिर किस भारतीय प्रधानमंत्री ने दूसरे देश से नोट छपवाए थे? आखिर क्यों 1997 में भारत को दूसरे देशों से नोट छपवाने पड़े?

किस प्रधानमंत्री ने विदेश में छपवाए भारतीय नोट?

Which Prime Minister got Indian currency notes printed abroad

प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने 08 मई 1997 को भारतीय नोट को दूसरे देश में छपवाने का फैसला किया। ऐसा भारतीय इतिहास में पहली बार हुआ था। कई सालों तक भारतीय करेंसी विदेश में छपी। दरअसल, 1997 में सरकार को लगा कि देश की आबादी बढ़ती जा रही है। आबादी के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियां भी बढ़ने लगी थीं। इसी समस्या से निपटने के लिए उस वक्त देश को ज्यादा करेंसी की जरूरत थी। उस वक्त के दोनों करेंसी छापाखाने देश की करेंसी की डिमांड को पूरा नहीं कर पा रहे थे।

इन देशों से छपवाई गई करेंसी

1996 में देश में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार थी। इस दौरान एचडी देवेगौडा प्रधानमंत्री बने। आजादी के पहली और आखिरी बार देश के बाहर से नोट छपवाने की नौबत आई थी। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से मंत्रणा के बाद केंद्र सरकार ने कनाडा, अमेरिका और यूरोपीय कंपनियों से नोट छपवाए गए। कई सालों तक इन्हीं देशों से नोट छपकर आते रहे। हालांकि, यह देश के लिए काफी महंगा साबित हुआ। बाहर से नोट छपवाने के लिए कई हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते थे।

सरकार की हुई आलोचना

criticism of the government

इतिहास के जानकारों की मानें, तो उस दौरान सरकार ने 360 करोड़ की करेंसी विदेश से छपवाने का फैसला किया था। इस पूरी छपाई पर करीब 9.5 करोड़ डॉलर का खर्च आया था। इस खर्च को देखते हुए, बाहर से नोट छपवाने के फैसले को जल्दी ही वापस लेना पड़ा। इसके बाद, ही सरकार ने देश में दो नई करेंसी प्रेस खोलने का फैसला किया। 1999 में मैसूर में और वर्ष 2000 में सालबोनी (बंगाल) में नई प्रेस खोली गई। इससे देश की करेंसी छापने की क्षमता में वृद्धि हुई। इस सबके बीच सरकार को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।

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Image Credit:Freepik/canva

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