पूजा करते समय भक्ति भावना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके साथ ही वास्तु और ज्योतिष के भी कुछ ऐसे नियम बनाए गए हैं जिनका पालन घर में समृद्धि का कारण बन सकता है।
वास्तु की मानें तो जिस प्रकार घर में मंदिर के लिए एक निश्चित दिशा और स्थान का होना जरूरी माना है, उसी प्रकार मंदिर के भीतर रखी मूर्तियों की भी एक सही दिशा है। ऐसी मान्यता है कि यदि मंदिर में मूर्तियां विशेष नियमों के अनुसार ही रखी होती हैं तो घर में हमेशा खुशहाली बनी रहती है और पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
वहीं अगर हम मूर्तियों को सही दिशा में नहीं रखते हैं तो ये घर में आने वाली समस्याओं का कारण भी बन सकता है। आइए ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ आरती दहिया जी से जानें कि घर के मंदिर में मूर्तियां स्थापित करते समय कौन सी दिशाएं सबसे ज्यादा उपयुक्त हैं।
हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पूजा करते समय भगवान का मुख और हमारा मुख सही दिशा में होना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि यदि गलत दिशा की ओर मुख करके पूजा की जाती है तो वो पूरी तरह से स्वीकार्य नहीं होती है।
पूजा पाठ करने से हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है, इसलिए सही दिशा में बैठकर किया गया पूजन ही अच्छा होता है। पूजा करते समय आपका मुख उत्तर दिशा में होना चाहिए। यह पूजन के लिए सबसे अच्छी दिशा मानी जाती है। आप पूर्व दिशा की ओर मुख करके भी पूजा कर सकते हैं, लेकिन कभी भी दक्षिण की ओर मुख करके पूजा न करें।
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शास्त्रों के अनुसार घर के मंदिर में भगवान का मुख हमेशा पूर्व दिशा की ओर होना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। पूर्व दिशा को सकारात्मक ऊर्जा की दिशा कहा गया है क्योंकि भगवान सूर्य इसी दिशा की ओर से उदित होते हैं।
ऐसी मान्यता है कि इस दिशा में भगवान की प्रतिमा का मुख करने से सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा घर के मंदिर में मूर्तियों के माध्यम से प्रवेश करती है और पूजा करने वाले को भी ऊर्जावान और सकारात्मक बनाती है। वास्तु के अनुसार घर का मंदिर हमेशा ईशान कोण (ईशान कोण में न रखें ये चीजें)में ही होना चाहिए।
अगर हम किसी देवी की स्थापना अपने घर के मंदिर में करते हैं तो दक्षिण मुखी प्रतिमा सबसे सुंदर फल देने वाली मानी जाती है। मान्यता है कि यदि मंदिर में माता का मुख दक्षिण दिशा की ओर है तो पूजा का पूर्ण फल मिलता है और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। वास्तु की मानें तो देवी की प्रतिमा का मुख कभी भी उतर दिशा की ओर न करें।
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जब किसी भी देवता की मूर्ति (घर के मंदिर में न रखें ऐसी मूर्तियां) स्थापित करने की बात आती है तब उनका मुख दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर भगवान का मुख होने से उनके भीतर सूर्य की रोशनी नहीं प्रवेश कर पाती है और भक्तों में भी सकारात्मक ऊर्जा नहीं आ पाती है।
कभी भी घर के मंदिर को किसी अंधेरी जगह में नहीं रखना चाहिए। सूर्य को आत्मा का कारक माना जाता है इसलिए मंदिर को सूर्य की रोशनी के आस-पास ही रखना सबसे ज्यादा उपयुक्त माना जाता है। यदि मंदिर और मूर्तियां अंधेरे स्थान पर रखी जाती हैं तो ये घर में वास्तु दोष का कारण बन सकता है।
यदि आप मंदिर और मूर्ति स्थापना की जगह और दिशा वास्तु के अनुसार निर्धारित करेंगी तो आपके जीवन में सदैव सुख समृद्धि बनी रहेगी।
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