वाल्मिकी रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जब श्री राम ने रावण का वध कर युद्ध में विजय प्राप्त की थी और माता सीता को रावण से मुक्त कराया था तब मात सीता को पुनः श्री राम के पास लौटने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी। हालांकि उस अग्नि परीक्षा का सत्य कुछ और ही था।
इसके बाद भी आजतक भी लोग यही मानते हैं कि श्री राम ने अपनी पत्नी माता सीता की परीक्षा लेकर उनपर अविश्वास दिखाया था। कई धारणाएं यह भी कहती हैं कि श्री राम को भी अग्नि परीक्षा देनी चाहिए थी क्योंकि वह भी माता सीता से दूर रहे थे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वाकई में माता सीता ने श्री राम की परीक्षा ली थी। आइये जानते हैं इस बारे में विस्तार से ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से।
माता सीता ने क्यों ली थी श्री राम की परीक्षा?
वाल्मीकि ऋषि ने रामायण में यह बताया है कि श्री राम द्वारा माता सीता की परीक्षा लेना एक महत्वपूर्ण उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक था। असल में श्री राम ने वनवास के आरंभ में ही माता सीता को अग्नि देव के पास सौंप दिया था ताकि वह सुरक्षित रहें, उन्हें कोई कष्ट न हो और उनकी मात्र प्रीति छाया को वनवास के दौरान अपने साथ लेकर घूम रहे थे।
वाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि माता सीता को स्पर्श करना तो दूर उनकी ओर देखने मात्र से रावण भस्म हो जाता और श्री राम की लीला अपूर्ण रह जाती है। इसी कारण से माता सीता ने अग्नि में प्रवेश कर वनवास खत्म होने तक की प्रतीक्षा की थी। यही कारण है कि माता सीता को हरते समय जब रावन ने उन्हें स्पर्श किया तो उसे कुछ भी नहीं हुआ।
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नाम मात्र की अग्नि परीक्षा के माध्यम से माता सीता पुनः श्री राम के पास लौट आईं और उनकी प्रीति छाया विलुप्त हो गई। वहीं, वाल्मीकि रामायण में यह भी बताया गया है कि माता सीता ने भी श्री राम की परीक्षा ली थी। जब हनुमान जी माता सीता के पास लंका पहुंचे थे तब माता सीता चाहतीं तो हनुमान जी की पीठ पर बैठकर श्री राम के पास आ सकती थीं।
मगर ऐसा उन्होंने दो कारणों से नहीं किया। पहला कारण ये कि माता सीता किसी भी पर पुरुष को स्पर्श नहीं करती थीं। भले ही हनुमान जी उनके पुत्र समान थे लेकिन उन्हें हनुमान जी की पीठ पर बैठकर आना पड़ता।
इससे मर्यादा का उलंघन होता। इसलिए माता सीता ने ऐसा नहीं और दूसरा कारण था श्री राम का अपमान एवं उनकी क्षमता पर संदेह।
अगर माता सीता हनुमान जी के साथ आ जातीं तो इससे समाज में यह धारणा स्थापित होती कि श्री राम अपनी पत्नी की रक्षा के लिए सक्षम नहीं है। माता सीता जानती थीं कि वह लाष्मी स्वरूप हैं और श्री राम भगवान विष्णु के अवतार, मगर मनुष्य लोक की मर्यादों को निभाते हुए समाज में श्री राम के नाम को स्थापित करने के लिए माता सीता नहीं आईं।
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यह एक प्रकार से माता सीता द्वारा श्री राम की परीक्षा ही थी कि वह बिना अपने प्रभुत्व क प्रयोग किये मनुष्य शरीर की मर्यादाओं में रहकर रावण का दहन करें और उन्हें मुख कर अपने साथ सम्मान पूर्वक अयोध्या ले जाएं। तो इस प्रकार माता सीता ने भी श्री राम की परीक्षा ली थी। इस बात का उल्लेख जैन रामायण में भी मिलता है।
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