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River Narmada Significance

Narmada River Significance: उल्टी दिशा में बहने वाली नर्मदा नदी के धार्मिक महत्त्व के बारे में कितना जानते हैं आप?

भारत को नदियों का देश कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यहां कई पवित्र नदियां प्रवाहित होती हैं जिनका विशेष महत्व है। वहीं इनमें से एक सबसे ख़ास नदी है नर्मदा, जिसका धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है।
Editorial
Updated:- 2024-12-20, 17:06 IST

नर्मदा नदी का धार्मिक महत्व इसके उद्गम स्थल से जुड़ा हुआ है। अगर हम इस नदी की बात करें तो नर्मदा भारत की पांच पवित्र नदियों में से एक है। अन्य चार पवित्र नदियां गंगा, यमुना, गोदावरी और कावेरी हैं। ऐसा माना जाता है कि इन पांच नदियों में स्नान करने से लोगों के समस्त पाप धुल जाते हैं।

रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ और पुराणों में भी नर्मदा का कई बार उल्लेख मिलता है। वायु पुराण और स्कंद पुराण के रेवा खंड में नर्मदा नदी के जन्म और महत्व की पूरी कथा का उल्लेख मिलता है। इस कारण नर्मदा को रेवा भी कहा जाता है। नर्मदा नदी के स्रोत को लेकर भी कई कथाएं प्रचलित हैं। नर्मदा नदी का धार्मिक महत्व भी बहुत ज्यादा है और यह भारत की अकेली ऐसी नदी है जो सभी नदियों की तुलना में उल्टी दिशा में बहती है। आइए यहां विस्तार से जानें नर्मदा नदी के धार्मिक और पौराणिक महत्व के बारे में।

नर्मदा नदी का उद्गम स्थान क्या है

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हिंदू धर्म में नर्मदा को एक पवित्र नदी माना जाता है। नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक है। अमरकंटक को पवित्र भूमि पर स्थित एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है, जहां नर्मदा, सोन और ज्वालावती जैसी पवित्र नदियों का उद्गम है। यह स्थान मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं के पूर्वी छोर पर स्थित है।

नर्मदा को भारत की सभी नदियों में सबसे प्राचीन नदी माना जाता है। नर्मदा के दोनों किनारों पर कई देवस्थान स्थित हैं। इसके अलावा, नर्मदा के तट पर कई ऋषियों जैसे अगस्त्य, भृगु, भारद्वाज, कौशिक, मार्कण्डेय, कपिल आदि ने तपस्या की थी। ऐसा कहा जाता है कि नर्मदा का तट एक पवित्र तीर्थ स्थल है, जहां आज भी आकर श्रद्धालु आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति का अनुभव करते हैं।

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भगवान शिव से हुई है नर्मदा नदी की उत्पत्ति

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नर्मदा नदी का उद्गम भगवान शिव से संबंधित है। इसलिए इसे शंकर जी की पुत्री या शंकरी भी कहा जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि नर्मदा के किनारे पाए जाने वाले पत्थर शिवलिंग के आकार के होते हैं। इन लिंग के आकार के पत्थरों को बाणलिंग या बाण शिवलिंग कहा जाता है। ये पत्थर हिंदू धर्म के लोगों द्वारा दैनिक पूजा के लिए अत्यधिक पूजनीय माने जाते हैं। तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर, जिसे राजा राजा चोल ने बनवाया था इसमें सबसे बड़े बाणलिंग को स्थापित किया गया है।
नर्मदा के किनारे कई महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल स्थित हैं जैसे अमरकंटक, ओंकारेश्वर, महेश्वर, महादेव मंदिर, नेमावर सिद्धेश्वर मंदिर, चौसठ योगिनी मंदिर और चौबीस अवतार मंदिर। ये सभी स्थान नर्मदा नदी की आध्यात्मिक महिमा को दर्शाते हैं।

नर्मदा नदी और भगवान शिव की पौराणिक कथा

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नर्मदा नदी की विशेषता यह है कि इसके तट पर तपस्या करने से व्यक्ति को हजारों गुना पुण्य की प्राप्ति होती है। एक तरफ जहां गंगा, यमुना और सरयू जैसी नदियों में स्नान करने से पुण्य मिलता है, वहीं केवल नर्मदा के दर्शन मात्र से ही वही पुण्य प्राप्त हो जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब भगवान भोलेनाथ मैकल पर्वत पर तपस्या में लीन थे, तब देवताओं ने उनकी आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया।

इस दौरान उनके शरीर से कुछ पसीने की बूंदें गिरीं, जिससे एक सरोवर का निर्माण हुआ। इसी सरोवर से एक कन्या प्रकट हुई, जो अद्वितीय सौंदर्य की मूर्ति थी। इस बालिका का सौंदर्य देखकर देवताओं ने उसका नाम 'नर्मदा' रखा। 'नर' का अर्थ है सुख और 'मदा' का अर्थ है देना, इसलिए यह नदी आज भी 'नर्मदा' के नाम से जानी जाती है।

मैकल पर्वत से उत्पत्ति के कारण इसे 'मेखला सुता' भी कहा जाता है। जब यह नदी बहती है, तो इसके प्रवाह से 'रव' की ध्वनि उत्पन्न होती है, इसलिए इसे 'रेवा' भी कहा जाता है। नर्मदा नदी को मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कहा जाता है। यह नदी उत्तर और दक्षिण भारत के बीच पारंपरिक सीमा के रूप में भी कार्य करती है।

आखिर क्यों उल्टी दिशा में बहती है नर्मदा नदी

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नर्मदा नदी करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक है और इसे 'जीवनदायिनी' भी कहा जाता है। यह मध्य प्रदेश और गुजरात की मुख्य नदी है, जिसके किनारों पर लगभग 10,000 तीर्थ स्थल स्थित हैं। जहां भारत की ज्यादातर नदियां पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं, वहीं नर्मदा नदी एक ऐसी नदी है जो पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है और अरब सागर में मिलती है।
अगर हम नर्मदा नदी के उल्टी दिशा में बहने की एक पौराणिक कथा की बात करें तो नर्मदा राजा मेकल की पुत्री थीं। जब नर्मदा विवाह योग्य हो गईं, तो राजा मेकल ने घोषणा की कि जो भी गुलबकावली का फूल लाएगा, वही उनकी बेटी नर्मदा से विवाह करेगा। इस चुनौती को पूरा करने के लिए कई राजकुमार आए, लेकिन कोई भी यह अनोखा फूल नहीं ला सका। फिर राजकुमार सोनभद्र आए और उन्होंने इस शर्त को पूरा कर लिया।

इसके बाद नर्मदा और सोनभद्र की शादी तय हुई। लेकिन नर्मदा ने राजकुमार को एक बार देखने की इच्छा व्यक्त की। इसके लिए नर्मदा ने अपनी सहेली जोहिला को गहने पहनाकर सोनभद्र के पास संदेश लेकर भेजा। जब सोनभद्र ने जोहिला को देखा, तो उन्हें नर्मदा समझकर प्रेम प्रस्ताव रख दिया। जोहिला यह प्रस्ताव ठुकरा नहीं सकीं और सोनभद्र से प्रेम करने लगीं।

जब नर्मदा को यह बात पता चली, तो वह बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने आजीवन कुंवारी रहने का प्रण लिया। उसी समय से नाराज होकर नर्मदा विपरीत दिशा में बहने लगीं और आखिर में अरब सागर में जा मिलीं।

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नर्मदा नदी का धार्मिक महत्व

नर्मदा नदी को एक कुंवारी नदी के रूप में सदियों से पूजा जाता है। इसका धार्मिक महत्व इसलिए और बढ़ जाता है क्योंकि इसके जल में पाए जाने वाले पत्थर शिवलिंग की आकृति के होते हैं। इन पत्थरों को 'बाणलिंग या 'बाणेश्वर शिवलिंग' कहा जाता है और हिंदू धर्म में इन्हें अत्यंत पवित्र मानकर पूजा जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से उतना पुण्य प्राप्त होता है, जितना अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से मिलता है। यही कारण है कि नर्मदा को विशेष रूप से भगवान शिव की प्रिय नदी माना जाता है और इसे 'शंकर की बेटी' के रूप में भी पूजा जाता है। यही नहीं इसके किनारे मौजूद विभिन्न धार्मिक स्थलों जैसे ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग और महेश्वर इसके अस्तित्व को और ज्यादा बढ़ा देते हैं।

नर्मदा नदी का धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा होने के साथ इसके जल प्रवाह की उल्टी दिशा भी इसे अन्य नदियों से अलग बनाती है। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।

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