शब-ए-कद्र को अरबी भाषा में लैलातुल कद्र भी कहा जाता है। इस्लाम धर्म में रमजान के महीने की एक खास रात है। इसे "मुकद्दर की रात" या "भाग्य की रात" भी कहा जाता है। यह माना जाता है कि शब-ए-कद्र हजारों महीनों से बेहतर है।
शब-ए-कद्र की रात पर मुस्लिम समुदाय की मान्यता के मुताबिक, कुरान की आयतें पहली बार दुनिया में जिब्रील फरिश्ते के जरिए पैगंबर मुहम्मद पर उतारी गई थी। शब-ए-कद्र को अंग्रेजी में नाइट ऑफ डिक्री, नाइट ऑफ पावर और नाइट ऑफ वैल्यू भी कहा जाता है।
मुस्लिम मान्यताओं के मुताबिक शब-ए-कद्र
रमजान के पवित्र महीने में मुसलमानों के लिए सबसे खास रातों में से एक शब-ए-कद्र की रात होती है। यह अल्लाह की रहमत और बरकत की रात है। मुस्लिम मान्यताओं के मुताबिक, इस रात में अल्लाह की इबादत करने के साथ अपने गुनाहों की तौबा करते हैं और माना जाता है कि उनकी गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।
रमजान के महीने की आखिरी दस रातों की विषम संख्या (Odd Number) वाली रातों में से कोई एक रात लैलातुल कद्र की रात होती है। रमजान माह की 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं, और 29वीं रात में से 27वीं रात को लैलातुल कद्र की रात माना जाता है। 27वीं रात पर ज्यादा जोर दिया जाता है। साल 2024 में भारत में 6 अप्रैल को लैलातुल कद्र की रात होगी।
शब-ए-कद्र की रात में रोजेदारों को अल्लाह की इबादत, जिक्रो-अजकार, दुआ, कुरान की तिलावत करते हैं। इस रात ज्यादातर लोग अपने और साथ ही अपने बुज़ुर्गों वालिदैन के गुनाहों की भी अल्लाह से माफी मांगते हैं।
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शब-ए-कद्र की रात क्यों खास होती है
- रमजान के महीने में हर रात तरावीह की नमाज पढ़ी जाती है।
- रात की आखिरी नमाज तहज्जुद की नमाज भी पढ़ी जाती है।
- कुरान शरीफ की तिलावत और हदीस की आयतें, पारा और नफ्ल नमाज पढ़ी जाती है।
- इस रात में अल्लाह से दुआ करना और माफी मांगना बेहद खास माना जाता है।

शब-ए-कद्र की रात मुसलमानों के लिए एक बहुत ही खास रात होती है, क्योंकि इसमें इस्लाम मानने वाले लोग अल्लाह के करीब जाने का प्रयास करते हैं। कुछ लोग इस रात जकात यानी दान भी करते हैं। वे गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े और जरूरत की वस्तुएं दान करते हैं। वहीं, कुछ लोग अपने घरों और मस्जिदों को सजाते हैं। वे रंगीन रोशनी, फूल और सजावटी सामान का इस्तेमाल करते हैं।
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