भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है। संविधान नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है, जैसे कि समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार। यह अल्पसंख्यकों के अधिकारों, पिछड़े वर्गों के अधिकारों और महिलाओं के अधिकारों की भी रक्षा करता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं आज भी हमारे देश के कुछ हिस्सों में ऐसी पारंपरिक सभाओं, जैसे सालिसी सभा, खाप पंचायत, कंगारू अदालतें या ग्राम अदालतें का आयोजन होता है, जिसमें किसी शख्स के अपराधी पाए जाने पर उसे तालिबानी तरीकों से सजा दी जाती है।
ऐसा करने वाले कोई और नहीं उसी गांव या समाज के तथाकथित मुखिया या सरपंच होने का झूठा दावा करने वाले लोग होते हैं और अपने कानूनी अधिकारों से वंचित लोग इसे न्याय प्रक्रिया का हिस्सा मानते हैं, जिसका भारतीय कानून में कोई स्थान नहीं है।
पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना का क्या है मामला
पश्चिम बंगाल में हाल ही में एक घटना घटी है, जिसमें जमालुद्दीन सरदार नाम के एक व्यक्ति को एक महिला को प्रताड़ित करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। उसे 10 दिन की पुलिस कस्टडी में रखने का अदालत का फैसला हुआ है। असल में, दक्षिण 24 परगना के सोनारपुर थाना अंतर्गत प्रताप नगर इलाके में पारिवारिक विवाद सुलझाने के नाम पर आयोजित सालिसी सभा में एक महिला को जंजीर से बांधकर अत्याचार करने के मुख्य आरोपी जमालुद्दीन सरदार है। एक्सट्रामैरिटल अफेयर के आरोप में एक महिला को कंगारू अदालत में पीटा गया। यह मामला कंगारू कोर्ट से संबंधित है, जिसे पहले भी विवादास्पद घटनाओं के कारण जाना जाता है। आइए समझते हैं कि सालिसी सभा या कंगारू कोर्ट क्या होती है?
क्या है सालिसी सभा
सालिसी सभा एक पारंपरिक न्याय प्रणाली है, जो भारत के कुछ हिस्सों में, खास तौर पर ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में, प्रचलित है। यह स्थानीय समुदायों के बीच विवादों को सुलझाने और न्याय करने के लिए उपयोग की जाने वाली एक पारंपरिक और अनौपचारिक संगठन या संस्था होती है। सालिसी सभा की प्रक्रिया औपचारिक अदालतों की तुलना में अधिक अनौपचारिक होती है। इसमें कानूनी प्रक्रिया, वकीलों और औपचारिक नियमों की जरूरत नहीं होती है। वहीं, कंगारू कोर्ट एक ऐसा गैर-कानूनी या अनौपचारिक न्यायालय होता है, जो किसी अपराध या दुराचार के आरोपी व्यक्ति का मुकदमा चलाता है, खासकर बिना उचित प्रमाण या प्रक्रिया के।
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गैर-कानूनी है सालिसी सभा
यह शब्द 19वीं शताब्दी के ऑस्ट्रेलिया में प्रचलन में आया था, जहां इसका इस्तेमाल उन अनौपचारिक न्यायालयों का वर्णन करने के लिए किया जाता था, जो बसने वालों द्वारा आदिवासी लोगों पर मुकदमा चलाने के लिए आयोजित किए गए थे। इन न्यायालयों को अक्सर निष्पक्ष और अन्यायपूर्ण माना जाता था, इसलिए कंगारू कोर्ट शब्द का प्रयोग न्यायिक प्रणाली की किसी भी गैर-कानूनी या अनुचित प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए होने लगा।
सालिसी सभा का निर्णय अक्सर जल्दी और प्रभावी रूप से लिया जाता है, लोगों का मानना है कि विवादों का जल्दी समाधान होता है। सालिसी सभा स्थानीय संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों का सम्मान करती है, जिससे समुदाय के लोग इसके निर्णय को स्वीकार करते हैं। हालांकि, ऐसा करना गैर-कानूनी है।
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