एक तरफ हमारा समाज महिलाओं और लड़कियों को देवी की तरह पूजता है। पैर भी छू जाए तो उन्हें हाथ जोड़ता है। वहीं, दूसरी तरफ जब किसी महिला के खिलाफ अपराध होता है तो माथे पर एक शिकन की लकीर लाने के बाद उसे भूल जाता है। आज भी महिलाएं बराबर के अधिकारों के लिए हर दिन लड़ रही हैं। ऐसे में जब भी महिलाओं के अधिकारों और समाज में उनकी स्थिति की बात होती है तो मिसोजिनी शब्द का जिक्र सुनने में आता है।
मिसोजिनी शब्द का इस्तेमाल जेंडर इक्वेलिटी की बहस में इस्तेमाल खूब किया जाता है लेकिन, इस शब्द का असली मतलब क्या है यह बहुत कम लोगों को पता है। दरअसल, मिसोजिनी का सीधा मतलब महिलाओं के प्रति गहरी नफरत, घृणा और पक्षपात से है। आइए, यहां मिसोजिनी को डिटेल में उदाहरण के साथ समझते हैं और जानते हैं कि इससे कैसे बचा जा सकता है।
मिसोजिनी शब्द सिर्फ एक भावना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी सोच है जो सिर्फ पुरुषों की नहीं होती है। जी हां, यह ऐसी सोच है जिसमें महिलाओं को पुरुषों से कम समझा जाता है, उन्हें नीचा दिखाया जाता है। इतना ही नहीं, महिलाओं के प्रति हिंसा और भेदभाव की भावना भी बढ़ाता है।
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यह एक ऐसी गंभीर समस्या है, जो महिलाओं की सेल्फ रिस्पेक्ट यानी आत्म सम्मान, सुरक्षा और लाइफ की क्वालिटी पर असर डालती है। इसे समझना जरूरी है, जिससे इसका विरोध किया जा सके और इससे बचा भी जा सके।
मिसोजिनी हमारे सामने कई तरह से आ सकती है। लेकिन, इसका साफ उदाहरण हम शारीरिक हिंसा, यौन उत्पीड़न, गंदी भाषा का इस्तेमाल और महिलाओं के शरीर की बनावट के आधार पर कम समझना या उन्हें बराबर के अवसर नहीं देना।
महिलाओं के शरीर, क्षमताओं या उनके फैसलों पर नकारात्मक कमेंट्स करना या भद्दे मजाक बनाना। महिलाओं कीराय को महत्व नहीं देना या उन्हें बोलने से रोकना और उनकी बातों को नजरअंदाज करना।
सोशल मीडिया पर महिलाओं को टारगेट करना आजकल का ट्रेंड बन गया है। महिलाओं और लड़कियों की फोटोज पर भद्दे कमेंट करना, उन्हें ट्रोल करना, शारीरिक उत्पीड़न की धमकी देना या उनकी अचीवमेंट को कम नापना भी मिसोजिनी की पहचान है।
अगर आपको अपने आस-पास मिसोजिनी का अहसास होता है तो चुप न रहें। बिना घबराए और परेशान हुए उसके खिलाफ आवाज उठाएं। छोटा या बड़ा स्तर न देखें, क्योंकि अपनी बात रखना जरूरी है।
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अपनी कैपेसिटी यानी क्षमता को पहचानें और राय पर विश्वास रखें। ऐसा कई बार देखा गया है कि मिसोजनिस्ट लोग महिलाओं के आत्मविश्वास यानी कॉन्फिडेंस को तोड़ने की कोशिश करते हैं।
आजकल का समय खुद को हर दिन एजुकेट करने का है। ऐसे में जेंडर इक्वेलिटी और महिलाओं के अधिकारों के बारे में ज्यादा से ज्यादा पढ़ें। क्योंकि, जितनी ज्यादा जानकारी होगी उतना ही बेहतर तरह से आप मिसोजिनी जैसी सोच का सामना कर पाएंगी।
अगर आप ऑफिस, वर्कप्लेस या कहीं भी मिसोजिनी जैसी सोच का सामना करती हैं, तो अपनी बाउंड्री बनाएं। यानी ऐसे लोगों के दूरी बनाएं जो इस तरह की सोच रखते हैं और आपको असुरक्षित महसूस कराते हैं। बता दें, मिसोजिनी ऐसी सोच है जो सदियों से हमारे समाज में है और इसे अब खत्म करने की जरूरत है। यह तभी होगा जब सिर्फ पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी अपनी सोच बदलेंगी।
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