Ramayana Unknown Facts: रावण की कैद में बंद सीता की मदद करने वाली त्रिजटा का युद्ध की समाप्ति के बाद क्या हुआ था?

रामायण और हमारे धार्मिक ग्रंथों के कई ऐसे पात्र हैं जिनसे आज भी दुनिया अनजान है। ऐसे ही चरित्रों में से एक है त्रिजटा। आइए आपको बताते हैं कि रामायण काल में माता सीता के साथ अशोक वाटिका में उनका साथ देने वाली राक्षस कुल की कन्या त्रिजटा का युद्ध समाप्ति के बाद क्या हुआ था।
image

रामायण, जो सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण महाकाव्य है, इसमें कई ऐसे पात्र हैं जो इसकी कथा को साकार करते हैं। यूं कहा जाए कि रामायण के कई अध्याय उनके ही चारों ओर घूमते हैं, इन्हीं में से एक है त्रिजटा। अगर हम रामायण के इस पात्र की बात करें तो त्रिजटा वैसे तो शारीरिक रूप से एक राक्षसी थीं जिसने अपने परिवेश के विपरीत जाकर निष्ठा, ज्ञान और करुणा का प्रतीक बनने का साहस किया। जिस समय रावण ने माता सीता को अशोक वाटिका में कैद करके रखा था उसी समय त्रिजटा ने माता सीता का पूरा साथ दिया और अपनी एक अहम् भूमिका निभाई। अशोक वाटिका में रावण द्वारा कैद की गई माता सीता के प्रति उनकी दया और समर्थन ही उन्हें इस महाकाव्य का एक अद्वितीय पात्र बनाते हैं। आइए आपको बताते हैं त्रिजटा के जीवन से जुड़ी कुछ बातें और इस बारे में कि राम जी के रावण के साथ युद्ध की समाप्ति के बाद उनका क्या हुआ था।

रामायण ग्रंथ में कौन थीं त्रिजटा?

ramayan trijada

त्रिजटा रावण द्वारा सीता की देखभाल और निगरानी के लिए नियुक्त की गई राक्षसियों में से एक थीं। आमतौर पर उस काल में सभी राक्षसियां माता सीता को डराने की कोशिश करती थीं और उन्हें रावण की बंदिनी के रूप में देखकर उनकी निंदा करती थीं, लेकिन त्रिजटा इसके विपरीत माता सीता का पूर्ण समर्थन करती थीं और अशोक वाटिका में उनका पूरा साथ दिया। वो अन्य राक्षसियों से अलग थीं जो माता सीता को डराने और उनका मनोबल गिराने की कोशिश करती थीं।

त्रिजटा ने हमेशा करुणा और समझ का प्रदर्शन किया। त्रिजटा एक वृद्ध और समझदार राक्षसी थीं, जिन्हें आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और स्वप्नों की व्याख्या करने की क्षमता के लिए जाना जाता था। धर्म के प्रति उनकी निष्ठा और माता सीता के प्रति उनकी सहानुभूति उन्हें अन्य राक्षसियों से अलग बनाती थी।

इसे जरूर पढ़ें: आखिर क्यों माता सीता को ठहराने के लिए रावण ने चुनी थी अशोक वाटिका?

अशोक वाटिका में क्या थी त्रिजटा की भूमिका?

रामायण काल में जब रावण ने माता सीता को अशोक वाटिका में कैद कर लिया, तो रावण को लगा कि सीता उसकी बात मान लेंगी। लेकिन सीता अपने पति भगवान राम के प्रति अटूट भक्ति और प्रेम पर कायम रहीं। उस समय कई बार रावण ने माता सीता को अपने शब्दों से प्रताड़ित किया। इस कठिन समय में, त्रिजटा ने हमेशा माता सीता की रक्षक के रूप में कार्य किया।

त्रिजटा ने देखा था रावण के पतन का सपना

रामायण में त्रिजटा का सबसे महत्वपूर्ण योगदान उनका एक स्वप्न था। ऐसा माना जाता था कि त्रिजटा को सपने के रूप में किसी घटना का पूर्वाभास हो जाता था। ऐसे में उन्होंने युद्ध के पहले से ही रावण की हार और राम के हाथों सीता की मुक्ति का स्वप्न देखा था। उन्होंने यह सपना अन्य राक्षसियों और सीता के साथ साझा भी किया, जिससे सीता के विश्वास और राम की विजय की आशा को बल मिला।

त्रिजटा अशोक वाटिका में बैठकर अक्सर सीता को आश्वासन देती थीं और अन्य राक्षसियों के तानों से उनकी रक्षा भी करती थीं। वह एक विश्वासपात्र और सहारा बनकर सीता जी को उनके कठिन समय में साहस और गरिमा के साथ संघर्ष करने में मदद करती रहती थीं।

युद्ध के बाद त्रिजटा का क्या हुआ?

trijata in ramayana

रामायण में युद्ध के बाद त्रिजटा के भाग्य का स्पष्ट रूप से वर्णन नहीं किया गया है। हालांकि, विभिन्न व्याख्याएं और मौखिक परंपराएं इस विषय पर कुछ जानकारी प्रदान करती हैं जैसे कि रावण की हार और सीता की अयोध्या वापसी के बाद, ऐसा माना जाता है कि त्रिजटा को रावण के दरबार से मुक्त कर दिया गया। सीता के प्रति उनकी निष्ठा और उनके धर्मपरायण आचरण ने उन्हें भगवान राम और सीता का आशीर्वाद दिलाया। कुछ कथाओं के अनुसार, त्रिजटा ने लंका में अपना जीवन त्याग दिया और आध्यात्मिक साधनाओं में लग गईं। उनकी बुद्धिमत्ता और धर्म के प्रति झुकाव यह संकेत देते हैं कि उन्होंने तपस्या और आध्यात्मिक ज्ञान का मार्ग अपनाया होगा।
कुछ लोक कथाओं में यह भी कहा गया है कि माता सीता ने कृतज्ञता के रूप में त्रिजटा को अयोध्या आमंत्रित किया। उन्हें एक मातृ स्वरूप में दिखाया गया है, जो सीता और राम के परिवार को मार्गदर्शन और आशीर्वाद देती रहीं।
त्रिजटा का चरित्र रामायण में एक विशिष्ट स्थान रखता है। यद्यपि यह महाकाव्य मुख्य रूप से राम और रावण के युद्ध के इर्द-गिर्द घूमता है, त्रिजटा की भूमिका मानवीय नैतिकता की बारीकियों को उजागर करती है।

इसे जरूर पढ़ें: Ramayan Facts: कौन थी विभीषण की बेटी जिससे डरता था रावण

आज भी मौजूद है त्रिजटा का मंदिर

त्रिजटा की दयालुता और अच्छे चरित्र का संकेत देता हुआ माता त्रिजटा का एक मंदिर आज भी वाराणसी में मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि जब युद्ध की समाप्ति के बाद माता सीता त्रिजटा को अपने साथ अयोध्या ले जा रही थीं, उसी समय उनके मन में ख्याल आया कि शायद उन्हें एक राक्षसी होने की वजह से अयोध्या में प्रवेश न मिले। इसी वजह से सीता जी ने त्रिजटा को काशी में ही शरण लेने की सलाह दी, जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सके। आज भी त्रिजटा का मंदिर काशी में मौजूद है जो उसकी उपस्थिति का संकेत देता है।

रामायण में राम और रावण के युद्ध के बाद त्रिजटा का क्या हुआ इसके ठोस प्रमाण कहीं नहीं मिलते हैं, लेकिन रामायण में और पौराणिक कथाओं में मिली जानकारी के अनुसार ये बातें उनके इस रहस्य के बारे में बताती हैं। अगर आपका इससे जुड़ा कोई भी सवाल है तो आप कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।

Images: Meta AI, Herzindagi.com

HzLogo

HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!

GET APP