अगर हम मां और बेटी के रिश्ते को देखें, तो हिंदी सिनेमा और टीवी सीरियल्स में इसे बहुत ही अलग तरीके से दिखाया जाता था। 80 के दशक तक मां और बेटी दोनों ही दुखियारी होती थीं। जैसा मां कहती थी, वैसा बेटी करती थी, 90 का दशक आते-आते मां ने अपने लिए आवाज उठाना शुरू किया, तो बेटी ने भी वही रुख अपनाया, सन 2000 के बाद से मां और बेटी दोनों दोस्त होती हैं यह कहानी वायरल होने लगी, मॉर्डन मां की मॉर्डन बेटी अपने तौर-तरीकों पर जिंदगी जीने लगी। कहने का मतलब यह है कि टीवी सीरियल हो या असल जिंदगी मां और बेटी का रिश्ता एक दूसरे की पहचान होता है।
मां का असर बेटी पर बहुत ज्यादा होता है। मां-बेटी का रिश्ता जितना गहरा होता है उतनी ही ज्यादा इसके बिगड़ने की गुंजाइश भी बनी रहती है। पर ऐसे कौन से कारण होते हैं जिससे मां और बेटी का रिश्ता बिगड़ने लगता है? आज इसके बारे में बात करते हैं।
इसे लेकर कई स्टडीज की गई हैं। AMITY यूनिवर्सिटी की एक स्टूडेंट निकिता सिंह ने International Journal of Creative Research Thoughts (IJCRT) में एक रिसर्च पेपर पब्लिश किया था। इस रिसर्च के हिसाब से मां के साथ रिश्ते का असर बेटी की सेल्फ एस्टीम पर होगा। बेटी किस तरह से अपनी दैनिक जिंदगी में बर्ताव करती है वह कहीं ना कहीं मां के साथ रिश्ते पर निर्भर करता है।
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क्या आपने कभी सोचा है कि बिना मां से बात किए हुए आपका दिन कैसा जाता है?
मां और बेटी के रिश्ते के डायनैमिक्स किसी भी उम्र में बदल सकते हैं और उनका अटैचमेंट सही होना बहुत जरूरी है। अगर उनका अटैचमेंट जरा भी बिगड़ता है, तो इसका असर मन स्थिति पर होता है।
अब उन बातों पर गौर करते हैं जिनके कारण असल में मां-बेटी के रिश्ते में दरार पड़ सकती है।
भले ही मां और बेटी दोस्तों की तरह रहते हों, लेकिन हर इंसान के लिए मी टाइम और बाउंड्रीज बहुत जरूरी होती हैं। मां-बेटी का रिश्ता तब टॉक्सिक बन जाता है जब उनके रिश्ते में बाउंड्री की कोई जगह नहीं रह जाती। उदाहरण के तौर पर अगर मां अपने हाथ में बेटी के सारे काम की जिम्मेदारी ले ले और उसे हर बात पर रोके टोके, तो यहां माइक्रोमैनेजमेंट से दिक्कत हो सकती है।
यकीनन कोई मां अपने बच्चे का बुरा नहीं चाहेगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जिंदगी का हर फैसला मां की इच्छा से ही हो। मां अपनी सलाह दे यह भी सही है, लेकिन अपना हर फैसला बेटी पर थोपने की कोशिश ना करे।
ऐसा ही बेटी के साथ भी हो सकता है। मां की अपनी अलग जिंदगी हो सकती है, ऐसे में बेटी यह उम्मीद नहीं कर सकती कि मां अपना हर काम छोड़कर बेटी के लिए हमेशा उपलब्ध रहे। ऐसे मामलों में रिश्ते में सेल्फिशनेस घर कर लेती है।
मां अगर 50 की उम्र में साइकिल चलाना सीखना चाहे या साड़ी छोड़कर जीन्स पहनने लगे, तो यह उसकी अपनी च्वाइस हो सकती है, लेकिन इस मामले में अगर बेटी बार-बार मां को रोके-टोके, तो यह सही नहीं होगा।
ऐसे ही बेटी अपने पैशन को करियर का रूप दे सकती है, लेकिन अगर मां उसके हर फैसले को गलत बता दे, तो भी यह गलत होगा। मां और बेटी के रिश्ते में हमेशा एक दूसरे के फैसलों को लेकर सपोर्ट होना चाहिए। अगर यह नहीं, तो रिश्ते में खटास पड़ने लगती है।
यह समस्या बहुत ज्यादा होती है उन लोगों को जिन्हें हर चीज में मीन-मेख निकालने की आदत होती है। नेगेटिविटी किसी भी तरह की हो सकती है। आपकी मां या बेटी आपकी बॉडी शेमिंग करे या अपीयरेंस को लेकर कुछ बोले, या फिर किसी और की ज्यादा तारीफ करे, आपको हमेशा गलत समझे या फिर आपकी परेशानी को सुनने की कोशिश ना करे।
नेगेटिविटी के लिए यह जरूरी नहीं कि ताना ही मारा जाए। आपको आपकी काबिलियत के हिसाब से काम ना दिया जाए वह भी नेगेटिविटी के तहत आ सकता है।
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अगर आपने टीवी सीरियल 'अनुपमा' की पांखी को देखा है, तो आपको पता होगा कि उसे सिर्फ एक ही तरह की चीजें समझ आती हैं। उसे अपनी जरूरत बाकी सबकी जरूरत से पहले दिखती है। एक रिश्ते में कॉम्प्रोमाइज करने की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे में कई बार रिश्ते को बचाने के लिए एक दूसरे की जरूरत के बारे में सोचना भी जरूरी है।
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