जीवन में उतार-चढ़ाव आना बेहद स्वाभाविक है। लेकिन इन उतार-चढ़ावों से निपटने के लिए हम मानसिक रूप से कितने सक्षम हैं, यह अधिक अहम् है। आमतौर पर, इसके लिए बच्चों को बचपन से ही तैयार किया जाना जरूरी होता है। बचपन में भी बच्चों को कई तरह के रिजेक्शन का सामना करना पड़ता है, जिसका गहरा असर बच्चे के दिलों-दिमाग पर पड़ता है। ऐसे में पैरेंट्स की यह जिम्मेदारी होती है कि वे अपने बच्चों को इस तरह की सिचुएशन को स्मार्टली हैंडल करना सिखाएं। जब ऐसा होता है तो इससे बच्चों को आगे चलकर एक सुखी और सफल जीवन जीने में मदद मिलती है।
रिजेक्शन को एक मोटिवेशन के रूप में भी लिया जाता है। बस इसके लिए बच्चों को सिचुएशन सही तरह से उसे हैंडल करना आना चाहिए। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको ऐसे ही कुछ आसान तरीकों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें अपनाकर आप बेहद आसानी से बच्चों को रिजेक्शन हैंडल करना सिखा सकती हैं-
बच्चे पर ना हो दबाव
अक्सर बच्चे रिजेक्शन को इसलिए भी हैंडल नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उन पर परिवार के सदस्यों का बहुत अधिक दबाव होता है। इसलिए, आप बच्चे की खूबियों व गुणों को सराहें, ना कि उनका आकलन उनके द्वारा जीती गई ट्राफियों की संख्या स्कूल के ग्रेड के आधार पर हो। अच्छे गुण ताउम्र बच्चे के साथ रहते हैं और जब आप उसके गुणों की तारीफ करते हैं तो इससे वे अपेक्षाकृत कम दबाव महसूस करते हैं। इससे वे अधिक बेहतर परफॉर्म भी कर पाते हैं। साथ ही, एक अंधाधुंध जीत की रेस में दौड़ते नहीं है।
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ना करें नेगेटिव बातें
कई बार हम बच्चों को रिजेक्शन मिलने पर उनके व्यक्तित्व के नकारात्मक पहलुओं को गलत तरीके से उजागर करते हैं। कई बार पैरेंट्स बच्चों के सामने कई तरह की नेगेटिव बातें भी करते हैं। लेकिन ऐसा करने से बच्चों का मनोबल और भी ज्यादा कमजोर होता है। किसी भी कॉम्पीटिशन या मुख्य इवेंट से पहले उन्हें हमेशा यह समझाएं कि वे सिर्फ अपना बेस्ट देने का प्रयास करें। जीतना या हारना जरूरी नहीं है। बस आवश्यक है कि वे अपना बेस्ट दें। इससे बच्चों के मन में एक पॉजिटिविटी आती है (बच्चे को ऐसे जताए प्यार)।
रिजेक्शन को अवसर के रूप में देखें
अमूमन बच्चे रिजेक्ट होने पर खुद को दोष देना ही शुरू कर देते हैं। उन्हें लगता है कि वे किसी भी लायक नहीं है। ऐसे में यह पैरेंट्स का फर्ज होता है कि वे अपने बच्चे के मन में सकारात्मकता का संचार करें। उन्हें यह समझाएं कि इस रिजेक्शन ने उन्हें एक चांस दिया है कि वे खुद को और भी अधिक बेहतर बनाकर सबके सामने पेश करें। यह रिजेक्शन एक अवसर है उन्हें उनकी कमियों को पहचानने और बेहतर इंसान बनने का।
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असफलताओं की जिम्मेदारी लेना सिखाएं
जब आप बच्चे को रिजेक्शन लेना सिखाते हैं तो उन्हें असफलता के लिए जवाबदेही लेना सिखाएं। अपनी कमियों के लिए किसी और पर जिम्मेदारी डालने की कोशिश करने से उन्हें अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में समस्या का सामना करना पड़ता है। वहीं, जब वे अपनी असफलता की जिम्मेदारी लेते हैं तो इससे वे कहीं ना कहीं खुद को नई चीजें सीखने के लिए तैयार करते हैं। साथ ही, उन्हें जीवन में दोबारा रिजेक्शन का सामना ना करना पड़े, इसके लिए भी वे बहुत अधिक प्रयास करते हैं।
तो अब आप भी इन तरीकों को अपनाएं और अपने बच्चे को रिजेक्शन से हारना नहीं, बल्कि जीतने की कला सिखाएं। इस आर्टिकल के बारे में अपनी राय भी आप हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। साथ ही, अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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