हिंदू धर्म में किसी भी तीज-त्यौहार का अलग महत्व है। ऐसे ही पर्व में से एक है वट सावित्री अमावस्या। इस दिन अखंड सौभाग्य के लिए वट यानी बरगद की पूजा की जाती है और वट वृक्ष से पति की दीर्घायु का आशीष मांगा जाता है।
ज्येष्ठ माह की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है और पूरे विधि-विधान के साथ पूजन किया जाता है। स्त्रियां बरगद पूजन के साथ अपने पति की आयु बरगद के वृक्ष के समान ही लंबी होने का आशीष प्राप्त करती हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो स्त्री इस दिन पूजा करती है और बरगद की परिक्रमा करती है उसकी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। इस साल यह पर्व 19 मई को यानी आजमनाया जाएगा। आइए ज्योतिषाचार्य डॉ आरती दहिया जी से जानें वट सावित्री व्रत के दिन बरगद पूजा की सही विधि और पूजा के कुछ नियमों के बारे में।
क्यों की जाती है वट वृक्ष की पूजा
वट सावित्री अमावस्या के दिन सुहागिन महिलाएं बरगद वृक्ष के नीचे पूजा करती हैं और अपने सुहाग की लंबी उम्र का आशीष प्राप्त करती हैं। वट सावित्री व्रत को लेकर मान्यता है कि प्राचीन काल में सावित्री नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी और उनकी निष्ठा और पति परायणता को देखकर स्वयं यमराज ने उसके मृत पति को पुन: जीवनदान दे दिया था।
उस समय सावित्री के पति को जीवनदान वट वृक्ष के नीचे ही मिला था, तभी से यह मान्यता है कि जो भी स्त्री अपने पति की दीर्घायु के लिए बरगद के वृक्ष का पूजन करती है उसे भी सावित्री की ही तरह अखंड सौभाग्य का आशीष मिलता है।
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वट सावित्री के दिन कैसे करें बरगद की पूजा
- वट सावित्री अमावस्या के दिन आप जल्द उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर साफ़ वस्त्र धारण करें। इस दिन सोलह श्रृंगार करना जरूरी माना जाता है। इसके बाद जब आप तैयार हो जाएं तब पूजन की सामाग्री तैयार करें।
- पूजन सामाग्री के लिए आप चावल के आटे से तैयार पीठे में हल्दी मिलाकर तैयार कर लें और कच्चा धागा, पुए, फल, मिठाई आदि से थाली सजाएं और बरगद की पूजा के लिए तैयारी करें।
- वट वृक्ष के नीचे आप अच्छी तरह से सफाई करके भोग की सारी सामग्रियां अर्पित करें और पेड़ में सिन्दूर लगाएं। कच्चे धागे को बरगद के चारों तरफ घुमाते हुए इसकी 7 या 11 परिक्रमाएं करें।
- पूजन के समय आप बरगद के वृक्ष के पास सत्यवान एवं सावित्री की मूर्ति स्थापित करें। अब धूप, दीप, रोली, सिंदूर से पूजन करते हुए श्रृंगार की सामग्री और फल आदि अर्पित करें।
- बरगद पूजन के समय आपको सबसे प्रमुख फल खरबूजा जरूर अर्पित करना चाहिए। बांस के पंखे से सत्यवान-सावित्री को हवा करें और बरगद के पत्ते को अपने बालों में लगाएं।
- बरगद के वृक्ष के नीचे बैठकर इस व्रत की प्रचलित कथा सुनें और सबको सुनाएं। बरगद के वृक्ष में चावल के पीठे से आकृतियां बनाएं और उसमें सिंदूर का टीका लगाएं।
- बरगद के फल के साथ 11 भीगे हुए चने पानी के साथ घूंटें और पति की दीर्घायु की कामना करें। इस प्रकार किया गया पूजन आपके लिए फलदायी हो सकता है।
बरगद वृक्ष की परिक्रमा कैसे की जाती है
वट सावित्री व्रत में बरगद की परिक्रमा का विशेष महत्व है और इसके कुछ विशेष नियम भी हैं। आप इस वृक्ष की 7 या 11 परिक्रमाएं करें। हर एक परिक्रमा के बाद एक भीगा हुआ चना वृक्ष में चढ़ाएं, फिर दूसरी परिक्रमा शुरू करें।
ज्योतिष की मान्यताओं के अनुसार बरगद में तीनों देवताओं ब्रह्मा,विष्णु , महेश का वास होता है। इसलिए इस वृक्ष की परिक्रमा करने से त्रिदेव प्रसन्न होते हैं और व्रती महिला को शुभ आशीष प्रदान करते हैं।बरगद वृक्ष की परिक्रमा कच्चे सूत से या सूती कलावा से की जाती है और इसका विशेष महत्व होता है।
यदि आप वट सावित्री के दिन यहां बताई विधि के अनुसार बरगद की पूजा करती हैं और पति की दीर्घायु की कामना करती हैं तो आपकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण हो सकती हैं।
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