भगवान् गणपति सभी भक्तजनों के बीच सर्वोपरि माने जाते हैं। इन्हें कई नामों से पुकारा जाता है जैसे गणपति,गजानन,दामोदर,विनायक और इन्हीं नामों में एक विख्यात नाम है एकदन्तधारी।आप सभी ने गणपति की प्रतिमा में सदैव एक दांत टूटा हुआ देखा होगा। इसीलिए इन्हें एकदन्तधारी नाम से पुकारा जाता है। गणेश जी के इस दांत टूटने के पीछे भी कई तरह की पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं। इन कथाओं के बारे में और गणपति के एक दांत होने के पीछे के रहस्य के बारे में नई दिल्ली के पंडित एस्ट्रोलॉजी और वास्तु विशेषज्ञ, प्रशांत मिश्रा जी बता रहे हैं कुछ बातें आइए जानें क्या है इसका रहस्य -
एक प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी ने गणेश जी का एक दांत गुस्से में तोड़ दिया था। कथा के अनुसार परशुराम शिव जी से मिलने कैलाश पर्वत आए थे, मगर उस वक्त भगवान शिव विश्राम कर रहे थे और बेटे गणेश को पहरा देने के लिए कहा था।
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भगवान गणेश ने पिता की आज्ञा का पालन किया और परशुराम को शिव जी से मिलने से रोक दिया, इससे क्रोधित होकर परशुराम ने अपने फरसे से गणेश जी का दांत काट दिया था। तब से गणपति को एकदंत कहा जाने लगा।
गणेश जी के दांत के बारे में एक और प्रचलित कथा यह है कि भगवान गणेश के बड़े भाई कुमार कार्तिकेय एक बार स्त्री पुरुषों के श्रेष्ठ लक्षणों पर ग्रंथ लिख रहे थे जिसमें गणेश जी ने इतना विघ्न उत्पन्न कर दिया कि कार्तिकेय उन पर रुष्ट हो गए और कुपित होकर गणपति का एक दांत ही तोड़ दिया। लेकिन जब भगवान शिव तक ये बात पहुंची तो उन्होंने समझाकर कार्तिकेय से गणेश को उनका दांत वापस लौटाने के लिए कहा।
कार्तिकेय ने शिव जी की बात तो मान ली साथ ही गणपति को ये अभिशाप भी दिया कि गणेश जी को अपना टूटा दांत हमेशा अपने साथ ही रखना होगा। अगर वो दांत को अपने से अलग करेंगे तो यही टूटा दांत उन्हें भस्म कर सकता है। तभी से गणपति एकदन्त कहलाए।
एक और पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि गणपति का दांत महाभारत की रचना के दौरान टूटा था। इसके पीछे कथा यह है कि जब वेदव्यास जी महाभारत की रचना कर रहे थे तो उसके लेखन के लिए उन्हें किसी कुशल लेखक की आवश्यकता थी और इसलिए उन्होंने प्रथम पूजनीय गणेश जी को याद किया। ऐसे में गणेश जी से इस शर्त के साथ लेखन के लिए आग्रह किया कि जब वेदव्यास महाभारत का कथावाचन करेंगे तो वह बीच में नहीं रुकेंगे और गणेश जी को वेदव्यास के बोलने की रफ्तार के अनुसार लिखना होगा क्योंकि बीच में रुकने से कथा में विघ्न पैदा हो सकता है।
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गणेश जी ने उनकी बात स्वीकार कर ली और महाभारत का लेखन कार्य शुरू कर दिया लेकिन बोलने की रफ्तार इतनी ज्यादा थी कि लिखते हुए गणेश जी की कलमही टूट गई और गणपति ने अपने एक दांत को तोड़कर ही कलम का रूप दे दिया। तभी से गणेश एकदंतधारी बन गए।
गणेश जी के एकदन्तधारी होने के पीछे के एक और रहस्य के बारे में यह बात सामने आती है कि उन्होंने एक असुर का वध करने के लिए जिसका नाम गजमुखासुर था और उसे वरदान प्राप्त था कि वह किसी भी अस्त्र व शास्त्र से नहीं मारा जा सकता है इसलिए गणपति ने जब ये देखा कि असुर अपने कृत्यों से ऋषियों और देवताओं को परेशान कर रहा है तब उसे मारने के लिए गजानन ने अपने एक दांत को तोड़कर उसका अस्त्र बना दिया और उसका वध कर दिया। तभी से गणपति एकदन्त धारी बने।
एकदंत गणपति, भगवान गणेश के 32 स्वरूपों में यह रूप बहुत शुभ होता है। इस रूप में गणेशजी का पेट अन्य स्वरूपों के मुकाबले काफी बड़ा होता है। इस स्वरूप में वे अपने भीतर ब्रह्मांड समाए हुए होते हैं और ऐसा माना जाता है कि वे रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करते हैं।
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Image Credit: unsplash
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