हमारे देश में आज भी ट्रांसजेंडर समुदाय से लोगों की रूढिवादी सोच जुड़ी हुई है। हाल ही में तेलंगाना उच्च न्यायालय की पीठ ने सदियों पुराने किन्नर अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए किया रद्द और कहा, "यह निजता के अधिकार और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की गरिमा के अधिकार दोनों के लिए अपमानजनक है।"
ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए कही यह बात
तेलंगाना उच्च न्यायालय की पीठ ने सदियों पुराने किन्नर अधिनियम को पलटते हुए कहा, "यह निजता के अधिकार और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की गरिमा के अधिकार दोनों के लिए अपमानजनक है।" अदालत ने यह भी तर्क दिया कि यह अधिनियम पुराना हो चुका है और आधुनिक युग के साथ 'पूरी तरह असंगत' है। इसने आदेश दिया कि राज्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और सार्वजनिक रोजगार में भर्ती दोनों में आरक्षण स्थापित करे। इसके अलावा मुख्य न्यायाधीश उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति सी.वी. खंडपीठ भास्कर रेड्डी ने यह भी निर्देश दिया कि आसरा पेंशन योजना का लाभ ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भी दिया जाएगा।(LGBTQIA क्या है?)
1919 के किन्नर अधिनियम के बारे में जानें
1919 के किन्नर अधिनियम में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को "सड़क या सार्वजनिक स्थान पर महिला के कपड़े पहने हुए या आभूषण पहने हुए या गाते हुए, नृत्य करते हुए या सार्वजनिक मनोरंजन में भाग लेते हुए पाए जाने पर" बिना वारंट के गिरफ्तारी की अनुमति दी गई थी। 16 साल से कम उम्र के लड़कों के साथ उनकी कथित संलिप्तता(जनता द्वारा संदेह) के कारण हैदराबाद में 'किन्नरों' के "लड़कों का अपहरण करने या उन्हें नपुंसक बनाने", "अननेचुरल ऑफेंस" करने या दोनों में मदद करने का सार्वजनिक संदेह पैदा किया है।
हालांकि, राज्य ने अधिनियम के पक्ष में तर्क भी दिया और इसे सार्वजनिक व्यवस्था के हित में आवश्यक बताया। लेकिन निंदा की बात करें तो यह अधिनियम ट्रांसजेंडर लोगों के लिए भेदभावपूर्ण है। अदालत ने यह भी कहा कि " ट्रांसजेंडर समुदाय राज्य और देश में सबसे वंचित और भेदभाव झेलने वाले समुदायों में से एक है.." और यह भी कहा कि अधिनियम को रद्द करने से "उन्हें आगे लाने में काफी मदद मिलेगी और वह समाज की मुख्यधारा में शामिल होंगे"
तेलंगाना उच्च न्यायालय के अनुसार, जब भारत में ट्रांस अधिकारों की बात आती है, तो कानून हमेशा विवादास्पद रहा है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति के अधिकारों का संरक्षण करने वाले अधिनियम, 2019 सबसे प्रमुख है। कथित तौर पर ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से अधिनियमित, विशेष रूप से उनके कल्याण, आवास, शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य के संबंध में, इस अधिनियम को कार्यकर्ताओं द्वारा "कठोर और भेदभावपूर्ण" कहा गया है। न केवल 'ट्रांसजेंडर' की गलत परिभाषा के लिए, यह अधिनियम अपने ही नागरिकों के एक समूह के प्रति उदासीनता, उपेक्षा और गोपनीयता को भी दर्शाता है।
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Image Credit- telangana high court/ freepik
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