हिंदू धर्म में भगवान शनिदेव और शनि ग्रह दोनों का बहुत महत्व है। शनि महाराज एक हिंदू देवता हैं और वह सूर्य देव और छाया देवी के पुत्र हैं। कहा जाता है कि शनिदेव लोगों को उनके अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार फल देते हैं, इसलिए उन्हें न्याय के देवता और कर्मदाता कहा जाता है। आमतौर पर लोग शनिदेव के प्रकोप से डरते हैं क्योंकि उनके प्रभाव से राजा रंक बन जाता है। वहीं, जो लोग ईमानदारी और कड़ी मेहनत से काम करते हैं उन पर शनि महाराज कृपा बरसाते हैं। अगर आपकी कुंडली में शनि ग्रह की स्थिति ठीक नहीं है, तो आपको शनिवार के दिन व्रत करना चाहिए।
अगर आप शनिवार के दिन व्रत करना चाहते हैं, तो सबसे पहले प्रातकाल उठकर स्नानादि करने के बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर आपको शनि मंदिर जाना चाहिए। शनि मंदिर जाकर वहां पर विधि-विधान से शनि महाराज की पूजा करनी चाहिए। पूजा के दौरान आपको शनिदेव व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से शनि कृपा प्राप्त होती है और ग्रह शांत रखने में मदद मिलती है।इसलिए ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से शनिवार की व्रत कथा के बारे में जानते हैं।
शनिवार के दिन पढ़ें व्रत कथा (Shanivar Vrat Katha)
एक बार सभी नौ ग्रहों जैसे कि सूर्य, चंद्र, मंगल(मंगल दोष उपाय), बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु में बहस हो गई, कि सबसे बड़ा कौन है? वह सभी आपस में लड़ने के बाद देवराज इंद्र के पास पहुंच गए। इंद्रदेव असमंजस में पड़ गए। लेकिन उन्होंने सभी ग्रहें को सुझाव दिया कि राजा विक्रमादित्य ही इसका फैसला कर सकते हैं, क्योंकि वह न्याय के राजा हैं।
उसके बाद सभी विक्रमादित्य के पास गए और उन्होंने अपने आने का कारण बताया। राजा उनकी समस्या को सुनकर परेशान हो गए। फिर राजा ने सोच-विचार कर एक उपाय बताया। उन्होंने सुवर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से नौ सिंहासन का निर्माण करवाया। उन्हें क्रम के हिसाब से रख दिया गया।
पश्चात सबसे निवेदन किया गया कि क्रम के अनुसार सिंहासन पर आसन ग्रहण करें। शर्त भी रखा गया कि सबसे आखिर में सिंहासन पर आसन ग्रहण करेगा। वही सबसे छोटा माना जाएगा। वहीं शनिदेव सबसे बाद में आसन पर बैठे और सबसे छोटे कहलाए। शनिदेव क्रोध में आकर कहा कि यह सब राजा ने जानबूझकर किया है और राजा से कहा कि तू मुझे नहीं जानता है। सूर्य एक राशि में एक महीने, चंद्र सवा दो महीने दो दिन,मंगल डेढ़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, बुद्ध और शुक्र एक-एक महीने विचरण करते हैं, लेकिन मैं ढाई से साढ़े सात साल तक रहता हूं। मैंने बड़े-बड़े विनाश किए हैं। श्रीराम की साढ़ेसाती आने पर उन्हें 14 साल तक जंगल में भटकना पड़ा था।
क्रोध में आकर शनिदेव ने राजा को आप सभी को सावधान रहने की जरूरत है। इतना कहकर शनिदेव (शनिदेव मंत्र) वहां से चले गए। धीरे-धीरे समय बीतता गया और कालचक्र का पहिया घूमते हुए राजा की साढ़ेसाती आ गई। तब शनिदेव घोड़ों का सौदागर बनकर राजा के राज्य में गए। उनके साथ अच्छे नस्ल के बहुत सारे घोड़े भी थे। जब राजा को इसके बारे में पता चला, तो वह अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने के लिए भेजा। अश्वपाल ने कई अच्छे घोड़े खरीदें। इसके अलावा सौदागर ने उपहार में एक सबसे अच्छे नस्ल के घोड़े को राजा की सवारी करने के लिए दिया।
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राजा जैसे ही उस घोड़े पर बैठे वह सरपट होकर जंगल की ओर भागने लगे। जंगल के अंदर पहुंकर वह गायब हो गए। वह जंगल-जंगल भटकते रहें। फिर अचानक उन्हें एक ग्वाला दिखाई दिया। जिसने राजा की प्यास बुझाई। राजा ने खुश होकर अपनी अंगूठी उसे भेंट कर दी। फिर अपने नगर की तरफ चले गए। राजा फिर एक सेठ की दुकान पर पहुंचकर जल पिया और अपना नाम वीका बताया। भाग्यवश उस दिन सेठ की बहुत अच्छी आमदनी हुई थी। इसलिए इस खुशी में वह राजा को अपने घर लेकर गया।
सेठ के घर में एक जगह हार रखा था। कुछ ही देर में हार पूरी तरह से गायब हो गया। सेठ वापस आया तो उसे हार गायब दिखा। उसे लगा की वीका ने ही उस हार को चुराया है। सेठ ने वीका को कोतवाल से पकड़वा दिया और दंड रूप राजा उसे चोर समझ कर उसके हाथ-पैर कटवा दिए। अंपग अवस्था में राजा को फेंक दिया गया। तभी वहां से एक तेली निकल रहा था, जिसको वीका पर दया आ गई। उसने वीका को अपनी गाड़ी में बैठा लिया। वीका अपनी जीभ से बैलों को हांकने लगा।
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कुछ समय बाद राजा की शनि दशा समाप्त हो गई। फिर एक दिन वीका मल्हार गाने लगा। एक नगर की राजकुमारी मनभावनी ने मल्हार सुनकर मन ही मन प्रण कर लिया कि जो भी इस राग को गा रहा है, वह उसी से ही विवाह करेंगी। उन्होंने दासियों को खोजने के लिए भेजा, लेकिन वापस आकर उन सभी ने बताया कि वह एक अपंग आदमी है। राजकुमारी यह जानकर भी नहीं मानी और अगले दिन ही वह अनशन पर बैठ गई। जब लाख समझाने पर राजकुमारी नहीं मानी, तब राजा ने उस तेली को बुलवाया। वीका से विवाह की तैयारी करने के लिए भी कहा गया।
वीका से राजकुमारी का विवाह होआ। एक दिन वीका के सपने में शनि देव ने आकर कहा कि देखा राजन तुमने मुझे छोटा बताकर कितना दुख झेला है। राजा ने क्षमा मांगते हुए हाथ जोड़कर कहा कि हे शनि देव! जैसा दुख आपने मुझे दिया है, वह किसी और को ऐसा दुख न दें। शनि देव इस विनती को मान गए और उन्होंने कहा कि मेरे व्रत और कथा से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। शनिदेव ने कहा कि जो शनिवार के दिन मेरा नित्य ध्यान करेगा और व्रत रखेगा। चींटियों को आटा देगा। उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।
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