हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को भगवान विष्णु की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती है और समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन पूरे विधि विधान के साथ व्रत रखने और पूजन करने का विधान है। प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि पड़ती है और पूरे साल में 24 एकादशी तिथियां होती हैं जिनका अपना अलग महत्व है। सनातन धर्म में हर एक महीने में पड़ने वाली एकादशी तिथि लाभदायक है और उसका अलग महत्त्व है।
उसी प्रकार पौष मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी जिसे सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है उसका व्रत करने और पूजन करने का विशेष महत्व बताया गया है। आइए प्रख्यात ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से इस साल कब मनाई जाएगी सफला एकादशी तिथि और इसका क्या महत्व है।
हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि एकादशी का व्रत करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। सफला एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही शुरू हो जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सभी प्रकार के पाप, दुख और दुर्भाग्य से मुक्ति दिलाने वाले इस व्रत का आरंभ महाभारत काल में युधिष्ठिर ने किया था। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत के महात्म्य के बारे में युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं बताया था। तभी से यह मान्यता प्रचलित है कि सफला एकादशी तिथि का व्रत करने से भगवान विष्णु अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसे दशमी तिथि की रात्रि से ही अन्न नहीं लेना चाहिए और तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए और द्वादशी तिथि में व्रत का पारण करना चाहिए।
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सफला एकादशी की कथा के अनुसार प्राचीन काल में चंपावती नामक नगरी में एक महिष्मान नामक का राजा हुआ करता था। उसके चार पुत्रों में सबसे बड़ा लुंपक बहुत ही पापी था। वह अक्सर अधार्मिक कार्यों में लिप्त रहता और देवी-देवताओं की निंदा किया करता था। एक दिन राजा महिष्मान ने लुंपक के गलत कार्यों से परेशान होकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। लुंपक जंगलों में जाकर पशुओं के मांस व फल आदि को खाकर जीवन निर्वाह करने लगा। एक बार वह पौष माह के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि पर ठंड के कारण मूर्छित हो गया और दूसरे दिन जब सफला एकादशी वाले दिन दोपहर को उसको होश आया तो भूख मिटाने के लिए लुंपक ने आस-पास के पेड़ों से गिरे कुछ फल को इकट्ठा करने के लिए चला गया और जब वह फलों को इकट्ठा करके पीपल के पेड़ के नीचे पहुंचा तो उसने अनजाने में ही उन फलों को पीपल के पेड़ के नीचे रखकर भगवान विष्णु से निवेदन किया कि ‘इन फलों से भगवान विष्णु संतुष्ट हों’. अंजाने में ही लुम्पक द्वारा कही गई इस बात से भगवान विष्णु की कृपा दिलाने वाली सफला एकादशी का व्रत संपन्न हो गया। जिसके बाद भगवान विष्णु की कृपा से लुंपक को राज्य, धन, संपत्ति, समेत सभी प्रकार के सुख प्राप्त हुए।
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इस प्रकार सफला एकादशी व्रत जीवन में सफल बनाने और सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला व्रत बन गया जिसे श्रद्धा पूर्वक करने से भगवान विष्णु की असीम अनुकंपा प्राप्त होने लगी।
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