हिंदू धर्म में सभी व्रत और त्योहारों का अपना अलग महत्व है। सभी त्योहारों को अलग तरीके से मनाने और ईश्वर की पूजा करने का विधान है। इन्ही व्रत त्योहारों में से एक है सकट चौथ यानी कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत। हिंदू पंचांग की गणना के अनुसार हर वर्ष सकट चौथ का व्रत माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस दिन गणपति भगवान की पूजा पूरे विधि विधान के साथ की जाती है। ऐसी मान्यता है कि यह व्रत करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
मुख्य रूप से यह व्रत महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत का श्रद्धा पूर्वक पालन करने वाली महिला की संतान को हर जगह पर विजय प्राप्त होती है और उसका स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है। आइए अयोध्या के जाने माने पंडित राधे शरण शास्त्री जी से जानें इस साल कब मनाई जाएगी सकट चौथ और इस व्रत का महत्व क्या है।
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सकट चौथ व्रत की कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से एक कथा के अनुसार एक नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया तो आंवा पका नहीं। परेशान कुम्हार नगर के राजा के पास गया और बोला कि न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा ने राज पंडित को बुलाकर कारण पूछा। राज पंडित ने कहा, हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा। ऐसा सुनकर राजा का आदेश हुआ और बलि आरंभ हो गई। इस प्रकार जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता था। इसी क्रम में कुछ दिनों बाद एक बुढ़िया के लड़के की बारी आई। बुढ़िया का एक ही बेटा था और वही उसका सहारा था। लेकिन राजा की आज्ञा के अनुसार उसकी भी बारी आ ही गई। ऐसे में दुखी बुढ़िया सोचने लगी कि उसका तो एक ही बेटा है और वो भी अगर बलि चढ़ गया तो उसका सहारा ही छिन जाएगा। तभी बुढ़िया ने अपने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब देकर कहा कि भगवान का नाम लेकर आंवा में बैठ जाना, सकट माता तेरी रक्षा करेंगी। लड़के ने ऐसा ही किया और जब आंवा खोला गया तो सभी आश्चर्य में पड़ गए क्योंकि आंवा पक गया था लेकिन लड़का सही सलामत बाहर आ गया। इस प्रकार जैसे सकट माता ने उसके बेटे की रक्षा की वैसी ही सभी व्रत करने वालों की संतान की रक्षा भी करती हैं।
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सकट चौथ व्रत को संकष्टी चतुर्थी, लंबोदर संकष्टी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ, तिलकुट चतुर्थी, संकटा चौथ और माघी चौथ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गणपति को मोदक का भोग लगाया जाता है और तिल चढ़ाया जाता है। गणपति का पूजन करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और संतान सुख की प्राप्तिहोती है। इस व्रत को नियम और श्रद्धा पूर्वक करने से परिवार में खुशहाली आती है और माता लक्ष्मी का आगमन होता है। इस व्रत से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है इसलिए इसे संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है।
इस प्रकार सकट चौथ में व्रत करने और गणपति जी का पूजन करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और संकटों से मुक्ति मिलती है।
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