
अरे उसने मुझे आंटी कैसे कह दिया? अरे क्या मैं आंटी दिखती हूं? तुम होती कौन हो मुझे आंटी कहने वाली? ऐसे न जाने कितनी बातें आपके सामने बार-बार आती हैं। न जाने कितनी महिलाएं इस शब्द को सुनकर नाराज हो जाती हैं और उनका गुस्सा उनके चेहरे पर ही दिखाई देने लगता है। लेकिन क्या सच में यह इतना बुरा शब्द है? क्या सच में किसी को भी आंटी कहना गाली है? मुझे आंटी कहो,लेकिन अगर तुमने मुझे आंटी कहा भी, तो क्या मुझे बुरा मानना चाहिए? सदियों की पितृसत्ता और वर्षों की मानसिक परंपराओं ने कई चीजों पर शर्मिंदा होना सिखाया है। सदियों से मुझे यह सिखाया है कि 'आंटी' शब्द को एक ताना या गाली की तरह इस्तेमाल करो, लेकिन अगर मेरे बालों की सफेदी और चेहरे की झुर्रियां अनुभव, समझदारी और दृष्टिकोण के साथ आई हैं तो 'आंटी' कहलाना बुरा कैसे हो सकता है? मेंटल हेल्थ से जुड़े एक इंटरव्यू में Population Foundation of India की Executive Director पूनम मुतरेजा ने Megha Mamgain, Managing Editor, Health & Lifestyle, Dainik Jagran Digital से बात करते हुए समाज के स्टीरियोटाइप्स पर दिए कुछ बेबाक जवाब। आइए आपको भी बताते हैं उनके साथ बातचीत के कुछ अंश। साथ ही, आप यहां देखें पूरा विडियो।
पूनम बताती हैं कि मुझे बहुत दुख होता है जब 'आंटी' शब्द को बुरा या अपमानजनक समझा जाता है। यह सोच पितृसत्तात्मक, असमान और महिलाओं के प्रति नकारात्मक मानसिकता को दर्शाती है। मुझे आंटी कहलाने में कोई समस्या नहीं है भले ही लोगों को लगता हो कि इसमें कोई नकारात्मक अर्थ है। मेरा 45 साल का अनुभव है और अब 70 वर्ष की उम्र में हूं और मुझे इस पर गर्व है। भले ही मैं अब भी खुद को वैसा ही महसूस करती हूं जैसा 20 या 30 की उम्र में करती थी जब मेरे काम और जीवन के प्रति जागरूकता बढ़ रही थी। तो यह तुम्हारी समस्या है, मेरी नहीं। मुझे आंटी कहो, सम्मान से कह सको तो अच्छा नहीं भी तो कोई बात नहीं।

आज हम बात कर रहे हैं महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य की और इस पर जेंडर का क्या असर पड़ता है। क्या महिलाएं पुरुषों से ज्यादा चिंतित रहती हैं, या यह पितृसत्ता ही है जिसने हमें ज़्यादा तनाव झेलने के लिए मजबूर किया है? पूनम मुतरेजा इस सवाल के जवाब पर कहती हैं- 'लैंगिक असमानता मानसिक स्वास्थ्य की जड़ है। समाज में महिलाओं के लिए बने नियम और अपेक्षाएं उनके मानसिक स्वास्थ्य को कुचल देती हैं। शुरुआत होती है लड़कियों को स्कूल न भेजने से, जल्दी शादी, जल्दी बच्चे और कई बार उनके लिए तय कर दिए गए जीवन से। महिलाओं के पास अपने शरीर, शिक्षा या मातृत्व के निर्णयों पर अधिकार नहीं होता। यही स्वायत्तता की कमी उनकी चिंता, थकान और अवसाद की जड़ बन जाती है।
जब जनसंख्या दर कम होती है, तो भी महिलाएं दोषी ठहराई जाती हैं। कभी कहा जाता है कि वे ज्यादा बच्चे पैदा करती हैं, कभी कहा जाता है कि अब वे 'कम बच्चे' पैदा कर रही हैं। कभी उन्हें बच्चे पैदा करने की मशीन कहा जाता है। आज कई देश महिलाओं से कह रहे हैं कि घर बैठो और बच्चे पैदा करो। लेकिन महिलाएं अब यह समझ चुकी हैं कि वो कोई बटन नहीं हैं जिन्हें दबाकर चालू या बंद किया जा सके। वास्तव में यह मुद्दा अलग है और लोगों के नजरिये को दिखाता है। महिलाओं के पास अपने शरीर पर अधिकार होना चाहिए बच्चा करना है या नहीं, यह पूरी तरह उनका निर्णय होना चाहिए।
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भारत में बहुत-सी महिलाएं हिंसा, मानसिक यातना और दबाव में जीती हैं। माता-पिता को अपनी बेटियों के जीवन में ऐसे जोखिम नहीं लेने चाहिए। अगर बेटी असंतुष्ट या प्रताड़ित है, तो उसे सहारा दो, उसे दोष मत दो। वह कहती हैं कि बेटियों के लिए थोड़ा-सा अपमान भी चिंता और अवसाद में बदल सकता है।
फेमिनिस्ट शब्द का इस्तेमाल इस तरह किया जाता है जैसे कि वह कोई गलत शब्द हो या किसी गाली की तरह से इसका इस्तेमाल होता है। पूनम बताती हैं कि कुछ महिलाएं हैं जो कहती हैं कि आप जानते हैं कि वह बहुत अच्छी हैं और वह अपने घर की देखभाल करती हैं और उनके घर में बहुत अच्छा खाना है और वह फेमिनिस्ट होने के बावजूद अपने बच्चों की देखभाल करती हैं। फेमिनिस्ट कहलाना किसी के लिए गाली नहीं, बल्कि सम्मान का प्रतीक है क्योंकि यह उस महिला की पहचान है जो समानता, आत्मसम्मान और अपनी आवाज के लिए खड़ी होती है।
महिलाओं से जुड़े स्टीरियोटाइप्स पर Poonam Muttreja ने कई बातें कीं और मेंटल हेल्थ से जुड़े कई सुझाव भी दिए। उनके साथ की गई बातचीत आप यहां वीडियो में डिटेल में देख सकती हैं।
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